विलुप्त होते मोटे अनाजों को सहेज रहीं फुलझरिया बाई

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विलुप्त होते मोटे अनाजों को सहेज रहीं फुलझरिया बाई

शहडोल। मिलेट संरक्षण और देसी बीज संरक्षण के लिए डिंडोरी जिला की आदिम जनजाति बैगा समुदाय की महिलाएं उत्कृष्ठ काम कर रही है। लहरी बाई की तरह ही फुलझरिया बाई द्वारा मिलेट के लुप्त हो रहे बीजों को बचाने और बढ़ाने के लिए किये जा रहे प्रयास प्रेरणादायी है। विलुप्ति के कगार से विभिन्न प्रकार के पारंपरिक बाजरा और अन्य फसलों को वापस लाने में फुलझरिया बाई ने सफलता प्राप्त की है साथ ही यह सुनिश्चित किया है कि उनके पूर्वजों के बाजरा, दलहन, तिलहन और सब्जी की फसलें बैगा किसानों द्वारा नियमित रूप से उगाई जाएँ।

परंपरागत खेती और मोटे अनाजों की विविधता बनाए रखने डिंडौरी में 2002 के बाद शुरू हुए बीज बैंक को गौरा कन्हारी निवासी फुलझरिया बाई आगे बढ़ा रही है। उन्होंने अपने पिता व भाइयों से जो सीखा उसे आने वाली पीढ़ी के लिए सहेज रही हैं। फुलझरिया बाई के पास 50 से अधिक प्रकार के मोटे अनाजों के बीजों का बैंक है। इन बीजों को वह हर वर्ष किसानों को बोनी के लिए देती है और फसल होने के बाद वह किसानों से फिर नए बीज संग्रहित कर लेती है। इसके अलावा अन्य जिलों व क्षेत्रों में भी पाए जाने वाले मिलेट्स का संग्रहण कर रही है।

दस महिलाओं की समिति करती है देखरेख

फुलझरिया बाई ने अपने इन्द्रा आवास में सामुदायिक बेबर बीज बैंक बना रखा है। यहां अलग-अलग कोठी बनाकर वह बीज संग्रहण करती है। इसके लिए महिलाओं की समिति बनी हुई है। इस समिति में 10-12 महिलाएं शामिल हैं। यही महिलाएं किसानों से मिलने वाले अनाज की साफ-सफाई करना, देखरेख करना व इन्हे व्यवस्थित रखने का काम करती है।

पिता से ली जानकारी

फुलझरिया बाई के पिता बैगा महापंचायत के मुखिया थे। उन्हें परंपरागत खेती के साथ ही मोटे अनाजों के संबंध में विशेष जानकारी थी। बैठकों व कार्यक्रमों के दौरान वह इसकी जानकारी लोगों को देते थे। उनसे ही फुलझरिया बाई को भी सीखने को मिला। मोटे अनाजों के साथ ही प्राचीन पद्धति से खेती के विषय में भी फुलझरिया बाई को काफी जानकारी है। अब वह बीजों का संग्रहण कर रही हैं।

सन्दर्भ स्रोत : पत्रिका

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