भोपाल। मध्यप्रदेश के पिपरिया तहसील स्थित रहस्यमयी हॉट स्प्रिंग ने अब वैज्ञानिक शोध का केंद्र बनकर नई चिकित्सा तकनीकों को जन्म दिया है। बरकतउल्ला विश्वविद्यालय (बीयू) की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अनीता तिलवारी की अगुवाई में किए गए इस शोध में यह पता चला है कि इस हॉट स्प्रिंग में मौजूद विशेष थर्मोफिलिक बैक्टीरिया से एक ऐसा बायोपॉलिमर (एक्सो पॉलिसैकेराइड या EPS) प्राप्त किया जा सकता है, जो त्वचा रोगों के इलाज में बेहद प्रभावी हो सकता है।
कुंड के गर्म पानी में पाया गया चमत्कारी तत्व
यह हॉट स्प्रिंग तापमान के हिसाब से एक अद्भुत प्राकृतिक संसाधन है, जहां पानी का तापमान 52 से 91 डिग्री सेल्सियस तक होता है। ऐसे तापमान में जीवित रहने वाले बैक्टीरिया पर किए गए शोध से एक खास बायोपॉलिमर निकाला गया, जो त्वचा पर सुरक्षात्मक परत बना कर संक्रमण से बचाव करता है और त्वचा की क्षतिग्रस्त कोशिकाओं को तेजी से ठीक करने में मदद करता है।
शोधकर्ता डॉ. अनीता तिलवारी ने बताया कि इस बैक्टीरिया से प्राप्त एक्सो पॉलिसैकेराइड का उपयोग एक नई स्किन-थेरेप्यूटिक दवा के निर्माण में किया गया है। यह दवा खास तौर पर त्वचा रोगों जैसे एक्जिमा, सोरायसिस, डर्मेटाइटिस और फंगल इंफेक्शन के इलाज में कारगर साबित हो सकती है।
सुरक्षित और प्राकृतिक उपचार का विकल्प
इस शोध के परिणामस्वरूप एक नया स्किन-थेरेप्यूटिक फॉर्म्युलेशन तैयार किया गया है, जो पूरी तरह प्राकृतिक स्रोतों से विकसित किया गया है। यह फार्मूलेशन कैमिकल-आधारित क्रीम और लोशन से कहीं अधिक सुरक्षित और प्रभावी हो सकता है। यह न केवल त्वचा को हाइड्रेटेड रखता है, बल्कि स्किन बैरियर को मजबूत करने और संक्रमण से बचाव में भी मदद करता है।
अंतिम चरण में पेटेंट प्रक्रिया
अनीता तिलवारी और उनके सहयोगी शोधार्थी रुचि चंदसूर्या और सनोबर कलाम ने इस तकनीक को पेटेंट करवाने के लिए आवेदन किया है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस तकनीक से भारत की बायोटेक और स्किनकेयर इंडस्ट्री में एक नया मुकाम हासिल हो सकता है। इसके अलावा, EPS आधारित यह तकनीक एंटी-एजिंग उत्पादों, घाव भरने वाली दवाओं, और मेडिकल जेल्स के निर्माण में भी उपयोगी हो सकती है।
कुंड का इतिहास और भविष्य
पिपरिया के हॉट स्प्रिंग के बारे में वर्षों से यह मान्यता रही है कि इसका गर्म पानी त्वचा रोगों के इलाज में फायदेमंद होता है, लेकिन अब वैज्ञानिक आधार पर इस सिद्धांत की पुष्टि की जा रही है। यह शोध पारंपरिक मान्यताओं को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से पुष्ट करता है और भविष्य में एक नया, सुरक्षित और प्राकृतिक उपचार विकल्प प्रस्तुत करता है। विशेषज्ञों के अनुसार, यह खोज न केवल चिकित्सा क्षेत्र के लिए एक बड़ी उपलब्धि है, बल्कि भारतीय चिकित्सा प्रणालियों और बायोटेक इंडस्ट्री में भी एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकती है।
सन्दर्भ स्रोत /छाया : डॉ. अनिता तिलवारी



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