महिला बंदियों ने जलकुंभी से बुनी आत्मनिर्भरता की कहानी

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महिला बंदियों ने जलकुंभी से बुनी आत्मनिर्भरता की कहानी

भोपाल। “कर्म तेरे अच्छे हैं तो किस्मत तेरी दासी...” यह कहावत भोपाल सेंट्रल जेल की महिला बंदियों पर सटीक बैठती है। जेल प्रशासन की पहल से यहां की महिलाएं अपनी सजा के दौरान न केवल समय का सदुपयोग कर रही हैं, बल्कि आत्मनिर्भरता की नई राह भी बना रही हैं। 

महिला बंदियों ने बेकार समझी जाने वाली जलकुंभी से आकर्षक टोकरी, योगा मैट, टेबल मैट, दरियां और बॉटल बॉक्स बनाकर रोजगार का नया साधन तैयार किया है। यह पहल न केवल इनके जीवन में नई ऊर्जा भर रही है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी एक सराहनीय कदम साबित हो रही है। जेल की दीवारों के भीतर शुरू हुई यह पहल अब बदलाव की मिसाल बन चुकी है। इन महिलाओं ने यह साबित कर दिया है कि यदि इरादा मजबूत हो, तो सजा भी सीखने और आगे बढ़ने का अवसर बन सकती है। 

हुनर से मिली नई पहचान 

भोपाल सेंट्रल जेल अधीक्षक राकेश भांगरे के अनुसार, वर्तमान में 16 महिला बंदी इस कार्य में पूरी तरह दक्ष हो चुकी हैं। प्रशिक्षण के बाद अब ये महिलाएं ऑर्डर के अनुसार उत्पाद तैयार करती हैं।बाजार में इन वस्तुओं की मांग बढ़ने से उनका आत्मविश्वास भी दोगुना हुआ है। महिलाएं प्रतिदिन अपने कार्य से दो से तीन सौ रुपये तक की आमदनी कर रही हैं। 

पर्यावरण संरक्षण में योगदान

जलकुंभी आमतौर पर पर्यावरण के लिए हानिकारक मानी जाती है, लेकिन महिला बंदियों ने इसे रोजगार का साधन बना कर इसका सदुपयोग किया है। अधीक्षक भांगरे बताते हैं कि यह पहल महिलाओं को न केवल आत्मनिर्भर बना रही है, बल्कि उन्हें जेल के भीतर सजा का समय उपयोगी बनाने और बाहर की जिंदगी के लिए तैयार होने का अवसर भी दे रही है। 

राज्यभर में बढ़ी मांग 

महिला बंदियों द्वारा बनाए गए उत्पादों की मांग भोपाल, इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर, विदिशा और रायसेन सहित कई जिलों में बढ़ रही है। इसके अलावा, अन्य राज्यों से भी ऑर्डर प्राप्त हो रहे हैं। कई एनजीओ और सरकारी संस्थाएं सीधे जेल प्रशासन से संपर्क कर इन पर्यावरण-अनुकूल वस्तुओं की खरीदारी कर रही हैं।

सन्दर्भ स्रोत : पत्रिका समाचार पत्र 

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