छाया : दैनिक भास्कर
मध्य प्रदेश के सागर की बेटी यामिनी मौर्य ने वह कर दिखाया जो हर खिलाड़ी का सपना होता है। चीन में आयोजित एशियन जूडो चैंपियनशिप में उन्होंने स्वर्ण पदक जीतकर भारत का परचम लहराया और दुनिया को दिखा दिया कि मजबूत इरादा और निरंतर मेहनत किसी भी बाधा को मात दे सकती है। किसान परिवार से आने वाली यामिनी हमेशा से चुनौतियों के बीच रहीं, लेकिन उन्होंने न हार मानी और न हालात से समझौता किया।
यामिनी के पिता हरिओम मौर्य एक छोटे किसान हैं। घर की आर्थिक स्थिति हमेशा साधारण रही, मगर यामिनी के सपनों को कभी रोकने नहीं दिया गया। बचपन से ही सीमित संसाधनों में पढ़ाई करते हुए और सरकारी स्कूल के साधारण माहौल में भी उन्होंने खेल के प्रति अपनी लगन को बनाए रखा। छोटी उम्र से ही उन्होंने जूडो में आगे बढ़ने के लिए कठोर अभ्यास किया और आज उनका यही समर्पण उन्हें अंतरराष्ट्रीय मंच पर गोल्ड दिलाकर ले आया।
एशियन जूडो चैंपियनशिप में 18 देशों ने हिस्सा लिया था। यामिनी ने शुरुआत से लेकर अंतिम मुकाबले तक अपने चारों मैच शानदार अंदाज में जीते। फाइनल में उनका सामना कोरिया की टॉप रैंकिंग खिलाड़ी से था, लेकिन यामिनी ने दमदार तकनीक और भरोसेमंद खेल से जीत हासिल की। उनकी जीत के बाद हॉन्गकॉन्ग में तिरंगा लहराया और भारतीय दल व दर्शकों में खुशी की लहर दौड़ गई।
यामिनी ने 57 किलोग्राम वर्ग में भारत का प्रतिनिधित्व किया और पूरे टूर्नामेंट में आक्रामक व रणनीतिक खेल दिखाया। उनके परिवार में जश्न का माहौल है। माता पिता, प्रशिक्षक और सागर जिले के लोग यामिनी की सफलता को जिले का गौरव मान रहे हैं। सभी का कहना है कि उन्होंने अनुशासन, मेहनत और समर्पण की बदौलत वह मुकाम हासिल किया जिसे हर युवा खिलाड़ी पाना चाहता है।
सागर के सदर क्षेत्र की रहने वाली यामिनी ने अपनी स्कूली शिक्षा इमानुएल स्कूल से की और स्नातक की पढ़ाई डॉ हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय से पूरी की। आर्थिक चुनौतियों के बावजूद परिवार ने हमेशा उनका साथ दिया। यही कारण है कि जिले के लोग उम्मीद जता रहे हैं कि यामिनी आने वाले वर्षों में भारत को और भी स्वर्ण पदक दिलाएंगी और देश का नाम लगातार रोशन करती रहेंगी।
सन्दर्भ स्रोत : विभिन्न वेबसाइट



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