सुप्रीम कोर्ट : वैवाहिक मामलों में मध्यस्थता के बारे में

blog-img

सुप्रीम कोर्ट : वैवाहिक मामलों में मध्यस्थता के बारे में
गलतफहमी, इसका मतलब समाधान निकालना

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बृहस्पतिवार को वैवाहिक मामलों में मध्यस्थता को लेकर एक अहम टिप्पणी की। न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि ऐसे मामलों में अक्सर लोग यह मान लेते हैं कि "मध्यस्थता" का मतलब दोनों पति-पत्नी को साथ रहने के लिए मजबूर करना है, जबकि असल में ऐसा नहीं है।

न्यायमूर्ति विश्वनाथन ने साफ तौर पर कहा, “हमने देखा है कि वैवाहिक मामलों में मध्यस्थता की अवधारणा को लेकर बहुत गलतफहमियां हैं। जैसे ही हम मध्यस्थता की बात करते हैं, पक्षकार यह मान लेते हैं कि हम उन्हें फिर से एक साथ रहने के लिए कह रहे हैं। जबकि हमारा उद्देश्य सिर्फ समाधान निकालना होता है, चाहे वे साथ रहें या नहीं।”

उद्देश्य है आपसी समाधान, साथ रहने पर ज़ोर नहीं 

सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी एक स्थानांतरण याचिका पर सुनवाई करते हुए की। पीठ ने यह स्पष्ट किया कि अदालत की मंशा सिर्फ यह होती है कि दोनों पक्ष आपसी सहमति से किसी हल पर पहुंचे, जिससे लंबी कानूनी प्रक्रिया से बचा जा सके। न्यायालय ने कहा कि मध्यस्थता सिर्फ एक विकल्प है जिससे दोनों पक्षों के बीच आपसी संवाद हो सके और कोई समाधान निकाला जा सके। यह ज़रूरी नहीं है कि उसका परिणाम पति-पत्नी के दोबारा साथ रहने के रूप में ही हो। 

सुप्रीम कोर्ट ने वाणिज्यिक अदालतें अधिनियम, 2015 का भी ज़िक्र किया, जिसमें मुकदमा दर्ज करने से पहले मध्यस्थता और समाधान की प्रक्रिया से गुजरना अनिवार्य है। पीठ ने कहा कि इसी तरह की सोच पारिवारिक मामलों में भी अपनाई जानी चाहिए, जिससे अदालतों पर बोझ कम हो और लोगों को जल्दी राहत मिल सके। न्यायमूर्ति विश्वनाथन ने कहा, “हम सिर्फ यह चाहते हैं कि मामले का शांतिपूर्ण समाधान हो। अगर आपस में बात करके कोई रास्ता निकल सकता है, तो अदालत को भी फैसला सुनाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी।”

सन्दर्भ स्रोत : विभिन्न वेबसाइट 

Comments

Leave A reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *



इलाहाबाद हाईकोर्ट :  लिवइन रिलेशनशिप
अदालती फैसले

इलाहाबाद हाईकोर्ट : लिवइन रिलेशनशिप , भारतीय मध्यवर्गीय मूल्यों के खिलाफ

हाईकोर्ट ने कहा-सर्वोच्च न्यायालय की ओर से वैधानिक बनाए जाने के बाद न्यायालय ऐसे मामलों से तंग आ चुका

इलाहाबाद हाईकोर्ट : पिता को प्राकृतिक
अदालती फैसले

इलाहाबाद हाईकोर्ट : पिता को प्राकृतिक , अभिभावक' मानने वाला कानून पुराना

कोर्ट ने कहा, "मां ही बेटी को मासिक धर्म, स्वच्छता और अन्य निजी मुद्दों पर सही मार्गदर्शन दे सकती है। 12 साल की बेटी की...

तेलंगाना हाईकोर्ट : खुला तलाक मुस्लिम महिला
अदालती फैसले

तेलंगाना हाईकोर्ट : खुला तलाक मुस्लिम महिला , का अधिकार, पति नहीं कर सकता अस्वीकार

यह फैसला मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।

बॉम्बे हाईकोर्ट : पत्नी कमाने वाली हो तब भी उसे
अदालती फैसले

बॉम्बे हाईकोर्ट : पत्नी कमाने वाली हो तब भी उसे , समान जीवन स्तर के लिए पति से भरण-पोषण का हक

जस्टिस देशपांडे ने पारित आदेश में कहा,"पत्नी को पति की आय से रखरखाव की अनुमति दी जानी चाहिए क्योंकि उसकी खुद की आय उसके...