नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने 'दहेज मृत्यु' के एक मामले में आरोपी की सजा रद्द करते हुए स्पष्ट किया कि बच्चे के जन्म के बाद होने वाले 'छूछक' समारोह में सोने के गहनों की मांग को दहेज की मांग नहीं माना जा सकता। अदालत ने कहा कि भारतीय दंड संहिता (आइपीसी) की धारा 304बी तभी लागू होती है, जब मांग विवाह से जुड़ी हो। बच्चे के जन्म के अवसर पर की गई किसी भी प्रकार की मांग को दहेज की परिभाषा में शामिल नहीं किया जा सकता।
जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस आर. महादेवन की खंडपीठ ने कहा छूछक समारोह के समय सोने के गहनों की मांग विवाह से संबंधित न होकर बच्चे के जन्म के अवसर पर की गई थी, जबकि धारा 304बी के तहत दहेज वही है जो विवाह के संबंध में दिया गया हो या देने पर सहमति. बनी हो। इसी आधार पर शीर्ष अदालत ने निचली अदालत द्वारा धारा 304बी के तहत दी गई सात साल की सजा रद्द कर दी। हालांकि, धारा 498ए के तहत दी गई एक वर्ष की सजा को बरकरार रखा गया। चूंकि आरोपी पहले ही इस अवधि से अधिक समय जेल में बिता चुका था, अदालत ने अतिरिक्त सजा देने की आवश्यकता नहीं समझी। पहले दी गई जमानत व सजा निलंबन का लाभ अंतिम आदेश के साथ - समाप्त कर दिया गया।
यह था मामला
आरोपी का विवाह नवंबर 1986 में हुआ। मई 1988 में पुत्र जन्म के बाद छूछक समारोह हुआ। 24 नवंबर 1988 को पत्नी और बच्चा कुएं में मृत मिले। मृतका के पिता ने प्राथमिकी में आरोप लगाया कि छुछक समारोह के दौरान सोने की अंगूठी और चेन की मांग को लेकर उसकी बेटी को प्रताड़ित किया जाता था।



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