छाया : एसओएस चिल्ड्रेन्स विलेजेस ऑफ़ इंडिया के फेसबुक अकाउंट से
भोपाल। प्रेरणा की कहानी हमेशा एक शिक्षक से ही शुरू होती है। एक शिक्षक, जो न केवल ज्ञान का स्रोत होता है, बल्कि जीवन को दिशा देने का काम भी करता है। ऐसी ही एक प्रेरणादायक कहानी है प्रतिभा श्रीवास्तव की, जिन्होंने अपने गुरु की प्रेरणा से दिव्यांग बच्चों के जीवन को संवारने का बीड़ा उठाया। 27 वर्षों से दिव्यांगों के लिए समर्पित, प्रतिभा श्रीवास्तव ने न केवल उनकी शिक्षा में सुधार किया, बल्कि उन्हें सरकारी नौकरियों तक पहुंचाने में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।
गुरु से मिली प्रेरणा
प्रतिभा के जीवन की दिशा एक शिक्षक ने बदली। जब वे जबलपुर में अपने घर के पास के एक शिक्षक, गुप्तेश्वर तिवारी से मिलीं, जो मूक-बधिर और दृष्टिबाधित बच्चों के लिए काम करते थे, तब उनकी ज़िंदगी ने एक नया मोड़ लिया। गुप्तेश्वर तिवारी जी ने ही उन्हें दिव्यांगों की सेवा करने की प्रेरणा दी, और इसके बाद उनकी पूरी यात्रा दिव्यांगों के साथ जुड़ी हुई रही।
शिक्षक से लेकर कोच तक
प्रतिभा ने 1996 में दिग्दर्शिका से एक वर्ष का स्पेशल एजुकेटर कोर्स पूरा किया। इसके बाद उन्होंने जबलपुर लौटकर विकलांग सेवा भारती स्कूल में अपनी सेवा देना शुरू किया। यहां उन्होंने बच्चों के साथ समय बिताया, उनके खेलों में भागीदारी बढ़ाई और उनके आत्मविश्वास को निखारा। उन्होंने बीएड स्पेशल एजुकेशन और एमए की डिग्री प्राप्त की और एमएड की तैयारी भी शुरू की। उनका मानना है कि विशेष बच्चों के साथ वक्त बिताना और उनके लिए कार्य करना एक तरह का आत्मसंतोष देता है। प्रतिभा श्रीवास्तव का योगदान सिर्फ शिक्षा तक सीमित नहीं रहा, बल्कि उन्होंने दिव्यांग बच्चों को खेलों में भी भाग लेने के लिए प्रेरित किया। 2007 में तन्खा मेमोरियल स्कूल में बतौर प्राचार्य काम करते हुए, उन्होंने बच्चों को खेलों में भागीदारी के लिए प्रेरित किया। 2015 में, भारतीय साइक्लिंग टीम को लेकर लास एंजेलिस का दौरा किया, और 2017 में आस्ट्रिया में आयोजित फ्लोर हॉकी टूर्नामेंट में भारतीय टीम के कोच के रूप में हिस्सा लिया। आज, उनकी मेहनत रंग ला रही है। उन्होंने अब तक 50 से अधिक दिव्यांग बच्चों की सफलता में मदद की है। इनमें से 10 बच्चे सरकारी और निजी क्षेत्र में नौकरी कर रहे हैं, और तीन बच्चों को सरकारी नौकरियां दिलाने में उनका योगदान रहा है।
परिवार का सहयोग
प्रतिभा श्रीवास्तव ने इस सफर में हमेशा अपने परिवार का समर्थन महसूस किया है। उनके पति ने हर कदम पर उनका साथ दिया। शादी के बाद जब वे अलग-अलग शहरों में शिफ्ट हुईं, तो उनके पति ने उनके काम में पूरी तरह से सहयोग किया। अब उनकी बेटी भी उनके कदमों पर चल रही है। अपनी 12वीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद, उनकी बेटी दिल्ली में सांकेतिक भाषा का कोर्स कर रही है और दिव्यांगों की सेवा में अपने कदम आगे बढ़ाने की दिशा में काम कर रही है।
एसओएस बालग्राम में करियर की नई ऊंचाई
2012 में जब प्रतिभा भोपाल आईं, तो उन्हें नौकरी पाने में कुछ समय लगा, लेकिन 2013 में एसओएस बालग्राम से जुड़ने के बाद उनका करियर नए मुकाम पर पहुंचा। आज वे एसओएस बालग्राम में सीनियर स्पेशल एजुकेटर और चाइल्ड प्रोटेक्शन पालिसी की फर्स्ट इन्सिडेंट पर्सन हैं। उनका मानना है कि यही वह स्थान है जहां उन्हें बच्चों के साथ काम करने और उनकी प्रतिभाओं को निखारने का भरपूर अवसर मिला है। प्रतिभा श्रीवास्तव न केवल एक प्रेरणा स्रोत हैं, बल्कि समाज में बदलाव लाने वाली एक सशक्त महिला के रूप में पहचानी जाती हैं।
सन्दर्भ स्रोत : नवदुनिया
सम्पादन : मीडियाटिक डेस्क
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