प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बेटों के बुजुर्ग माता-पिता के साथ दुर्व्यवहार की कड़ी निंदा करते हुए कहा कि माता-पिता के साथ क्रूरता, उपेक्षा या उनका परित्याग संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत सम्मानपूर्वक जीवन जीने के उनके मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। न्यायमूर्ति महेश चंद्र त्रिपाठी और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार की खंडपीठ ने कहा
रामदुलार गुप्ता की याचिका पर आदेश पारित करते हुए खंडपीठ ने कहा कि शारीरिक शक्ति कम होने के साथ बीमारियां बढ़ती जाती हैं। माता-पिता दान नहीं, बल्कि उन्हीं हाथों से सुरक्षा, सहानुभूति और साथ चाहते हैं, जिन्हें उन्होंने कभी थामा था, जिनका पालन-पोषण किया था। एक 75 वर्षीय पिता ने प्राधिकारियों द्वारा उसकी भूमि अधिग्रहण किए जाने पर मुआवजे के रूप में 21 लाख रुपये से अधिक की राशि जारी करने की मांग की थी, जबकि मुआवजे का आकलन पहले किया जा चुका था।
16 जनवरी, 2025 को भुगतान नोटिस जारी किया गया था, लेकिन याचिकाकर्ता के बेटों द्वारा उठाए गए विवाद के कारण राशि का भुगतान नहीं किया गया। बेटों ने भूमि पर बने भवन में सह-स्वामित्व का दावा किया था। 17 जुलाई, 2025 को न्यायालय ने दर्ज किया कि याचिकाकर्ता के दो बेटों ने अपने पिता को मुआवजे के पूर्ण वितरण का विरोध किया था, क्योंकि उन्होंने तर्क दिया था कि उन्होंने भी भवन निर्माण में योगदान दिया था।
दूसरी ओर याची का कहना था कि पूरा भवन उनके अपने संसाधनों से बनाया गया था। उन्होंने आरोप लगाया कि मुआवजे की घोषणा के बाद बेटों ने उन्हें गंभीर मानसिक और शारीरिक यातना का शिकार बनाया। उन्होंने बेटों के हाथों लगी चोटों को दिखाया।
18 जुलाई को भी याचिकाकर्ता पिता ने न्यायालय के समक्ष उपस्थित होकर दावा किया कि जैसे ही मुआवजे की घोषणा की गई, उसके बाद से ही बच्चों द्वारा उसके साथ आक्रामकता और क्रूरता का व्यवहार किया जाने लगा। कोर्ट के समक्ष बेटों ने अदालत में बिना शर्त माफी मांगी और आश्वासन दिया कि ऐसा व्यवहार दोबारा नहीं होगा। कोर्ट ने कहा कि एक घर जो बुजुर्ग माता-पिता के लिए प्रतिकूल हो गया है, वह अब एक आश्रय नहीं है, यह अन्याय का स्थल है।
सन्दर्भ स्रोत : विभिन्न वेबसाइट
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