दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि अगर हिंदुओं के बीच कोई शादी हिंदू मैरिज एक्ट (HMA) के प्रावधानों में बताई गई किसी भी शर्त के उल्लंघन में होती है, तो यह अमान्य है और उसे मान्यता नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने यह स्पष्टता एक महिला की अपील पर अपना फैसला सुनाते हुए दी, जो जाट समुदाय के रिवाज के मुताबिक अपने पहले पति से 'पंचायती तलाक' को मान्य और इस आधार पर अपनी दूसरी शादी के वैध होने का दावा कर रही थी।
जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन की बेंच ने महिला की अपील खारिज की, जिसने अपने मामले फैमिली कोर्ट के 7 जून 2024 के फैसले और डिक्री के सही होने पर सवाल उठाया। फैमिली कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि दूसरे पति के साथ उसकी शादी अमान्य थी क्योंकि यह हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 के सेक्शन 5 (1) के साथ सेक्शन 11 के उल्लंघन में हुई थी। इसका मतलब है कि अगर शादी के वक्त पति या पत्नी दोनों में से किसी भी पक्ष की दूसरे जीवित व्यक्ति के साथ पहली शादी कायम हो, तो दूसरी शादी शुरू से ही कानूनन अमान्य है।
इस अपील के जरिए हाईकोर्ट के सामने दो सवाल उठे। पहला, क्या अपील करने वाली महिला यह साबित कर सकी कि जाट समुदाय में 'रिवाज' पंचायती तलाक लेने के लिए काफी आधार है, जिससे शादी टूट जाती है? और दूसरा, अगर पहले सवाल का जवाब हां है, तो क्या अपीलकर्ता और उसके दूसरे पति के बीच पंचायती तलाक हुआ था ?
कोर्ट ने अपील को किया खारिज
सभी साक्ष्यों और कानूनी परिस्थितियों की जांच के बाद हाईकोर्ट को अपील में दम नहीं लगा। इसे खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता यह साबित करने में नाकाम रही है कि उसका पिछले पति से रिवाज के मुताबिक तलाक हो गया था। इसलिए, HMA के सेक्शन 5(1) को देखते हुए, उसकी दूसरे पति के साथ शादी अमान्य है।
कोर्ट ने यह भी कहा कि कुछ लोगों को पंचायती तलाक दिए जाने के दूसरे मामलों का जिक्र करने के अलावा, अपील करने वाले ने कोई सबूत, जिसमें टेक्स्ट भी शामिल है, यह दिखाने के लिए नहीं पेश किया कि समुदाय में लंबे समय से पंचायती तलाक दिया जा रहा था। अपीलकर्ता ने कोई पंचायती फैसला भी पेश नहीं किया।
कोर्ट के सामने नहीं पेश कर सकें सबूत
हाईकोर्ट ने कहा कि रिवाज को साबित करने का एक तरीका है कि किसी भी टेक्स्ट का रेफरेंस या हिंदू कानून या लंबे समय तक चले आ रहे उसके इस्तेमाल की व्याख्या। एक बार जब कोर्ट को यह घोषित करने के लिए कहा जाता है कि कोई रिवाज है जो कोडिफाइड (संहिताबद्ध) कानून के खिलाफ है, तो रिवाज का दावा करने वाले पक्षकार पर सबूत पेश करने का दबाव होता है।
कोर्ट ने आगे कहा, रिवाज को समरूपता के साथ बढ़ाया नहीं जा सकता और इसे पहले से मौजूद तरीके से साबित नहीं किया जा सकता। अपीलकर्ता ने पंचायत के जरिए शादी तोड़ने के रिवाज के प्रचलन को साबित करने के लिए जो सबूत दिए, वे इसे साबित करने के लिए काफी नहीं हैं।



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