पटना हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा कि किसी महिला को सिर्फ ‘व्यभिचार करने’ के आरोप पर गुज़ारा भत्ता (Maintenance) से वंचित नहीं किया जा सकता, जब तक यह साबित न हो कि वह लगातार ‘व्यभिचार के जीवन’ में लिप्त है।
बुलबुल खातून ने अपने नाबालिग बेटे के साथ पति से अलग रहने के बाद ₹20,000 प्रति माह गुज़ारा भत्ते के लिए आवेदन किया था। फैमिली कोर्ट ने बेटे को ₹4,000 प्रति माह देने का आदेश दिया, लेकिन पत्नी के लिए भत्ता यह कहते हुए खारिज कर दिया कि वह व्यभिचार में लिप्त रही है। पति मोहम्मद शमशाद ने दावा किया कि उनकी पत्नी का किसी और व्यक्ति से अवैध संबंध है और वह उसी के साथ भाग गई थी। साथ ही उन्होंने 'तीन तलाक' देकर तलाक हो चुका होने का दावा भी किया।
कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि “तीन तलाक अब कानूनी रूप से अवैध है। मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 2019 के अनुसार, इस प्रकार दिया गया तलाक मान्य नहीं है।” इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा “अगर महिला को उसके पति द्वारा कोई देखभाल या गुज़ारा भत्ता नहीं दिया गया है, तो तलाक मान्य होने पर भी उसे धारा 125 CrPC के तहत भत्ता मिलने का हक़ है।”
कोर्ट ने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि पति द्वारा लगाए गए व्यभिचार के आरोपों का कोई पुख्ता सबूत नहीं है। किसी भी गवाह ने न समय, न स्थान और न ही कोई स्पष्ट विवरण दिया कि बुलबुल खातून किसी अवैध संबंध में रही हैं।
पटना हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट का आदेश आंशिक रूप से रद्द करते हुए कहा कि “बुलबुल खातून को भी उनके पति से गुज़ारा भत्ता मिलेगा। गुज़ारा भत्ता की रकम आवेदन की तारीख से देनी होगी, न कि कोर्ट के आदेश की तारीख से। पति का तीन तलाक़ देने का दावा मान्य नहीं है क्योंकि न तो इसे वैध तरीके से अंजाम दिया गया और न ही पत्नी को मेहर या भत्ता दिया गया। कोई महिला जो आत्मनिर्भर नहीं है और पति द्वारा छोड़ी गई है, उसे सिर्फ आरोपों के आधार पर न्याय से वंचित नहीं किया जा सकता।”
सन्दर्भ स्रोत : कोर्ट बुक डॉट इन
Comments
Leave A reply
Your email address will not be published. Required fields are marked *