उड़ीसा हाईकोर्ट ने एक अहम टिप्पणी में कहा है कि बच्चा कोई निर्जीव वस्तु (Inanimate Object) नहीं है जिसे माता-पिता अपने विवादों में इधर-उधर फेंकते रहें। यह टिप्पणी जस्टिस जी. सतपथी की बेंच ने झारसुगुड़ा ज़िले की एक याचिका को खारिज करते हुए दी। कोर्ट ने कहा कि बच्चे की भलाई सर्वोपरि होती है और उसकी देखभाल तथा मुलाकात के अधिकार को वैवाहिक झगड़ों से अलग नजरिए से देखा जाना चाहिए।
मां द्वारा दाखिल की गई याचिका में कहा गया था कि पिता ने 13 साल पहले, जब बच्चा मात्र एक महीने का था, तब उसे छोड़ दिया और तब से आज तक अंतरिम भरण-पोषण की राशि तक नहीं दी। लेकिन हाईकोर्ट ने साफ किया कि मुलाकात के अधिकार को इस आधार पर रोका नहीं जा सकता कि पति ने भरण-पोषण नहीं दिया है।
पेरेंट्स की लड़ाई में शिकार हमेशा बच्चा ही होता है
जस्टिस सतपथी ने अपने फैसले में लिखा, "माता-पिता के अहंकार और कड़वाहट की लड़ाई में हमेशा बच्चा ही पीड़ित होता है। यह अदालत मानती है कि किसी एक अभिभावक को केवल विशेष परिस्थितियों में ही अपने बच्चे से मिलने से रोका जाना चाहिए और उसके पीछे मजबूत कारण होने चाहिए।"
त्योहारों और जन्मदिन पर भी मिल सकता है बच्चा
टालचेर के एक सिविल कोर्ट ने पहले ही नवंबर 2019 में यह आदेश दिया था कि पिता को हर पखवाड़े में एक बार, अधिमानतः छुट्टी के दिन, बच्चे से मिलने की अनुमति दी जाए। यह मुलाकात तारीख, समय और स्थान मां द्वारा तय किए गए अनुसार होनी थी। साथ ही पिता को बच्चे के जन्मदिन और अन्य विशेष पर्वों पर भी मिलने की इजाजत दी गई थी। लेकिन मां ने इस फैसले को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी, जिसे अब खारिज कर दिया गया है।
सन्दर्भ स्रोत : विभिन्न वेबसाइट
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