मद्रास हाईकोर्ट : पत्नी-मां का जीवन भर ख्याल रखना पुरुष का फर्ज

blog-img

मद्रास हाईकोर्ट : पत्नी-मां का जीवन भर ख्याल रखना पुरुष का फर्ज

मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै पीठ ने 60 वर्षीय व्यक्ति और उसके बेटों की याचिका खारिज कर दी, जिसमें फैमिली कोर्ट के गुजारा भत्ता के आदेश को चुनौती दी गई थी। कोर्ट ने कहा कि पत्नी को गुजारा भत्ता देना पति का कर्तव्य है और उसे अपने बच्चों के साथ मिलकर यह जिम्मेदारी निभानी चाहिए।

मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै पीठ ने हाल ही में एक 60 साल के व्यक्ति और उसके दो बेटों की याचिका को खारिज करते हुए खूब फटकार लगाई है। याचिका में फैमिली कोर्ट द्वारा सुनाए गए फैसले को चुनौती दी गई थी। फैमिली कोर्ट ने अलग रह रही पत्नी को 21,000 रुपये मासिक गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया था। 

बता दें कि दंपति की शादी साल 1986 में हुई थी। उनके दो बेटे हैं। किसी विवाद के कारण, महिला ने साल 2015 में अपना ससुराल छोड़ दिया। 2019 में मदुरै की पारिवारिक अदालत में महिला ने एक मामला दायर किया था। जिसमें 40,000 रुपये मासिक गुजारा भत्ता की मांग की थी। 

मार्च में फैमिली कोर्ट ने सुनाया था फैसला

इस साल मार्च में, फैमिली कोर्ट ने पति और दोनों बेटों को महिला को 21,000 रुपये मासिक गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया था। लेकिन तीनों ने इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी। अपनी याचिका में तीनों ने दावा किया कि महिला अपनी मर्जी से ससुराल छोड़कर गई थी। उसके पास अपना गुजारा करने के लिए पर्याप्त साधन हैं। पति ने याचिका में कहा कि उसकी तबीयत सही नहीं रहती है। अब उसके पास आय का कोई जरिया भी नहीं है।

बेटों ने क्या दी दलील? 

दूसरी तरफ, दोनों बेटों ने दावा किया कि जहां वह नौकरी करते हैं, वहां वेतन काफी कम है। उनके पास गुजारा भत्ता देने के साधन नहीं हैं। दोनों पक्षों के बाद हाईकोर्ट के जस्टिस शमीम अहमद ने पति और दोनों बेटों की याचिका ख़ारिज कर दी। इसके साथ, न्यायमूर्ति अहमद ने कहा कि अपनी मां या पत्नी का जीवन भर भरण-पोषण करना किसी भी पुरुष का कानूनी, सामाजिक और नैतिक कर्तव्य है। इस फर्ज को पूरा करके व्यक्ति अपनी माताओं के प्रति सम्मान, कृतज्ञता और करुणा व्यक्त करता है। 

जज ने कहा- जीवन में एक मां की अमूल्य भूमिका होती है 

न्यायाधीश ने आगे कहा कि जीवन में एक मां की अमूल्य भूमिका और देखभाल की भरपाई नहीं की जा सकती, चाहे उसके बच्चे जीवन भर उसे कितना भी भुगतान करें। इसके अलावा, कोई भी भुगतान उस दर्द और त्याग को कभी भी सहन नहीं कर सकता जो एक मां ने अपने बच्चों के जन्म के समय सहा है। न्यायमूर्ति अहमद ने यह माना कि पारिवारिक न्यायालय के आदेश में कोई अवैधता नहीं है। साथ ही निर्धारित राशि भी आज के जीवन-यापन के खर्च को देखते हुए ज्यादा नहीं लगती। न्यायाधीश ने इस मामले को लेकर पारित आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया और याचिका खारिज कर दी।

Comments

Leave A reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *



मप्र हाईकोर्ट : क्रूरता की श्रेणी में आता
अदालती फैसले

मप्र हाईकोर्ट : क्रूरता की श्रेणी में आता , है बीमारी छुपाकर विवाह करना

शादी के बाद पता चला पत्‍नी को मिर्गी के दौरे आते हैं, तलाक मंजूर

मुबारत पद्धति से लिया तलाक नामंजूर
अदालती फैसले

मुबारत पद्धति से लिया तलाक नामंजूर , मप्र हाईकोर्ट ने दोबारा सुनवाई के दिए निर्देश

सुनवाई के दौरान कोर्ट को बताया गया कि पत्नी को पढ़ाई के लिए विदेश जाना है। इसलिए कुटुंब न्यायालय को शीघ्रता से सुनवाई के...

सुप्रीम कोर्ट : मां की जाति ही तय करेगी बच्चे की पहचान
अदालती फैसले

सुप्रीम कोर्ट : मां की जाति ही तय करेगी बच्चे की पहचान

CJI सूर्यकांत ने कहा-बदलते समय के साथ माता की जाति के आधार पर जाति प्रमाण पत्र क्यों नहीं जारी किया जाना चाहिए?

सुप्रीम कोर्ट : तलाक देने से पहले
अदालती फैसले

सुप्रीम कोर्ट : तलाक देने से पहले , वैवाहिक रिश्ता टूटने के देने होंगे सबूत

कोर्ट ने कहा कि बच्चों की मौजूदगी में यह सवाल और भी संवेदनशील हो जाता है, क्योंकि तलाक का सबसे ज्यादा असर उन पर ही पड़ता...

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पीड़िता से शादी
अदालती फैसले

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पीड़िता से शादी , करने पर बलात्कार का आरोप किया रद्द

कहा- आरोपी से पीड़िता ने रचाई शादी, अब बच्चे के साथ जी रहे खुशहाल जीवन.अपराध सिद्ध होने की कम संभावना

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट : अविवाहित बेटी को पिता
अदालती फैसले

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट : अविवाहित बेटी को पिता , से गुजारा भत्ता मांगने का अधिकार

कोर्ट ने कहा- बेटी की जिम्मेदारी से पीछे नहीं हट सकता पिता