झारखंड हाईकोर्ट: मानसिक बीमारी के

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झारखंड हाईकोर्ट: मानसिक बीमारी के
आधार पर तलाक के लिए ठोस प्रमाण जरूरी

झारखंड हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि यदि पति मानसिक बीमारी को तलाक का आधार बना रहा है, तो उसे इसका समर्थन करने के लिए "ठोस, विश्वसनीय और प्रमाणिक साक्ष्य" प्रस्तुत करना होगा। केवल आरोप या संदेह के आधार पर विवाह विच्छेद की अनुमति नहीं दी जा सकती।

न्यायमूर्ति सुजीत नारायण प्रसाद और न्यायमूर्ति राजेश कुमार की खंडपीठ ने यह फैसला एक पति की अपील पर सुनाया, जिसमें उसने अपनी पत्नी पर मानसिक विकार, क्रूरता और परित्याग  (mental disorder, cruelty and abandonment) का आरोप लगाते हुए तलाक की मांग की थी। इससे पहले फैमिली कोर्ट, चतरा ने उसकी याचिका खारिज कर दी थी।

हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि "सिर्फ अस्पष्ट और सामान्य आरोपों के आधार पर मानसिक बीमारी या क्रूरता साबित नहीं होती। कानून के अनुसार, तलाक की मांग करने वाले पक्ष को इसके लिए ठोस, तथ्यात्मक और प्रामाणिक साक्ष्य प्रस्तुत करना होता है,"

पति द्वारा प्रस्तुत किए गए तीन गवाहों की गवाही में कोई मेडिकल दस्तावेज, मनोचिकित्सक की राय या उपचार का रिकॉर्ड शामिल नहीं था। कोर्ट ने माना कि पत्नी ने खुद यह स्पष्ट रूप से कहा कि वह पति के साथ अपने वैवाहिक जीवन (Married Life ) को निभाना चाहती है और वह एक समर्पित पत्नी की तरह रहना चाहती है।

"पत्नी ने कोर्ट में कहा कि वह अपने पति को प्यार, सम्मान और सेवा देना चाहती है तथा आजीवन वैवाहिक दायित्व निभाने को तैयार है,"

इसके साथ ही कोर्ट ने तलाक के अन्य आधार जैसे कि क्रूरता और परित्याग की जांच करते हुए कहा कि पति ने ऐसे किसी भी आरोप को प्रमाणित करने के लिए कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया। पत्नी की ओर से प्रस्तुत छह गवाहों ने यह प्रमाणित किया कि पत्नी मानसिक रूप से पूर्णतः स्वस्थ है और पति तथा उसके परिवार से किसी प्रकार की प्रताड़ना का कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है।

हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में यह भी दोहराया कि हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 13(1)(iii) (Section 13(1)(iii) of Hindu Marriage Act) के तहत तलाक तभी दिया जा सकता है जब यह साबित हो कि मानसिक बीमारी ऐसी हो जो विवाह को असहनीय बना दे। अंततः, कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए पति की अपील खारिज कर दी।

सन्दर्भ स्रोत : विभिन्न वेबसाइट

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