जबलपुर। अस्थायी विकलांगता के आधार पर अलग रहने वाली पत्नी के भरण-पोषण के दायित्व से छूट की मांग वाली पति की याचिका को हाईकोर्ट ने खारिज कर दी। हाईकोर्ट के जस्टिस जीएस अहलूवालिया की एकलपीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि शारीरिक विकलांगता की स्थिति में छूट देने का प्रावधान है पर अस्थायी विकलांगता उसे उसके भरण-पोषण दायित्वों से मुक्त नहीं कर सकती है।
यह ऐसा मामला है जब पति और पत्नी दोनों ही हाईकोर्ट पहुंचे थे। जहां पत्नी ने भरण-पोषण की राशि को कम बताते हुए पति की सम्पत्ति की गणना के अनुसार इसे बढ़ाए जाने की मांग की। वहीं, पति ने अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश पवई की कोर्ट द्वारा 5 हजार रुपए की भरण-पोषण राशि की मंजूरी दिए जाने को चुनौती देते हुए पुनरीक्षण याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ता महेंद्र सिंह ने दावा किया कि एक दुर्घटना के कारण वह गंभीर रूप से विकलांग हो गया था, जिसके कारण वह बिस्तर पर पड़ा हुआ था और आजीविका कमाने में असमर्थ था। उन्होंने 40 प्रतिशत लोकोमोटर विकलांगता का संकेत देने वाले विकलांगता प्रमाण पत्र के साथ अपने दावे का समर्थन किया। न्यायमूर्ति अहलूवालिया ने प्रस्तुत साक्ष्यों और कानूनी तर्कों की जांच की।
अदालत ने कहा कि जबकि विकलांगता प्रमाण पत्र में दोनों पैरों में 40 प्रतिशत अस्थायी विकलांगता की पुष्टि की गई है, लेकिन यह निर्णायक रूप से साबित नहीं हुआ कि महेंद्र सिंह बिस्तर पर थे या आजीविका कमाने में पूरी तरह से असमर्थ थे। 21 सितंबर, 2026 तक वैध विकलांगता प्रमाणपत्र ने स्थिति को अस्थायी बताया और यह स्थापित नहीं किया कि आवेदक बिस्तर तक ही सीमित था या कोई काम करने में असमर्थ था।
कोर्ट ने कहा कि यह अस्थायी विकलांगता है और जीवनसाथी को भरण-पोषण देने के दायित्व से छूट के दायरे में नहीं आती है। हाईकोर्ट ने महेंद्र सिंह की याचिका खारिज कर दी और उनकी पत्नी को 5 हजार रुपए की भरण-पोषण के ट्रायल कोर्ट के आदेश की पुष्टि की।
संदर्भ स्रोत : पत्रिका
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