इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने अपने एक आदेश में कहा है कि हिन्दू विवाह स्टाम्प पर लिख देने भर से समाप्त नहीं होता, हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 13 के प्रावधानों के तहत ही हिन्दू पति-पत्नी के बीच तलाक संभव है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि आर्य समाज मंदिर से जारी विवाह का प्रमाण पत्र विवाह का वैध साक्ष्य नहीं है। इन टिप्पणियों के साथ कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया।
यह आदेश न्यायमूर्ति मनीष माथुर की एकल पीठ ने डॉली रानी की सेवा संबंधी याचिका पर दिया। अनुकंपा नियुक्ति से संबधित इस मामले में याची ने दलील दी थी कि कृषि विभाग में कार्यरत नीरज गिरी के साथ, उसकी पहली पत्नी का तलाक होने के बाद 2021 में उसने आर्य समाज मंदिर में विवाह किया था। याची ने आर्य समाज मंदिर से जारी विवाह का प्रमाण पत्र भी पेश किया। पहली पत्नी से तलाक के संबंध में कहा कि मृतक कर्मी का उसकी पहली पत्नी से स्टाम्प पर गवाहों के समक्ष तलाक हुआ था। याची ने उक्त आधारों पर अपने लिए बतौर मृतकाश्रित अनुकंपा नियुक्ति की मांग की। याचिका का पहली पत्नी की ओर से विरोध किया गया।
न्यायालय ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद आदेश में कहा कि याची की ओर से दावा किया गया है कि मृतक कर्मचारी का स्टाम्प पेपर पर पहली पत्नी से तलाक हो गया था, जबकि हिन्दू विवाह अधिनियम के तहत एक हिन्दू जोड़े का विवाह विच्छेद सिर्फ हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 13 के तहत हो सकता है, दूसरे किसी भी तरीके से नहीं। विवाह के दावे पर कोर्ट ने कहा कि पूर्व के निर्णयों में भी यह स्पष्ट किया जा चुका है कि आर्य समाज मंदिर का प्रमाण पत्र विवाह का वैध साक्ष्य नहीं है।
सन्दर्भ स्रोत : विभिन्न वेबसाइट
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