दिल्ली हाईकोर्ट की जस्टिस स्वर्णकांत शर्मा की बेंच ने दुष्कर्म केस की सुनवाई करते हुए यह स्पष्ट किया कि केवल यौन लाभ पाने के लिए किया गया ऐसा वादा, जिसे निभाने का कोई इरादा न हो, आपराधिक कानून के तहत बलात्कार की श्रेणी में आता है। दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि यदि आरोपी शुरू से जानता है कि शादी असंभव है और फिर भी झूठा वादा कर महिला से शारीरिक संबंध बनाता है, तो यह बलात्कार का अपराध है। हाईकोर्ट ने निचली अदालत द्वारा बरी किए जा चुके आरोपी को दोषी ठहराया। जस्टिस स्वर्णकांत शर्मा की बेंच ने स्पष्ट किया कि केवल यौन लाभ पाने के लिए किया गया ऐसा वादा, जिसे निभाने का कोई इरादा न हो, आपराधिक कानून के तहत बलात्कार की श्रेणी में आता है।
मामला एक ऐसे व्यक्ति से जुड़ा है जिस पर एक महिला के साथ लंबे समय तक बार-बार शारीरिक संबंध बनाने और हर बार जल्द शादी का आश्वासन देने का आरोप है। दिल्ली पुलिस ने निचली अदालत के उस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी, जिसमें आरोपी को बरी कर दिया गया था।
निचली अदालत ने यह कहते हुए उसे बरी किया था कि एफआईआर घटना के ढाई साल बाद दर्ज हुई, पीड़िता ने तुरंत शिकायत नहीं की, न मेडिकल सबूत मिले और न ही धमकी के लिए बताए गए अश्लील वीडियो बरामद हुए।
महिला का कहना था कि आरोपी के लगातार शादी के वादे और अश्लील वीडियो के दुरुपयोग की धमकी के कारण उसने कुछ समय तक संबंध बनाए रखे। बाद में आरोपी ने शादी से इनकार करते हुए कारण बताया कि उसका परिवार रूढ़िवादी है और अंतर्जातीय विवाह की अनुमति नहीं देता। चूंकि पीड़िता दूसरी जाति से है, इसलिए शादी संभव नहीं है।
बेंच ने कहा कि आरोपी को शुरुआत से ही पीड़िता की जाति की जानकारी थी। जब उसने बाद में जातिगत अंतर को इनकार का आधार बताया तो यह साफ हो गया कि उसे शुरू से इस बाधा का एहसास था। ऐसे में शादी करने का उसका कथित इरादा भ्रामक था, क्योंकि वह जानता था कि परिवार इस विवाह को स्वीकार नहीं करेगा। अदालत ने कहा कि ऐसे मामलों में देरी कई बार धमकी, भय और सामाजिक कलंक के कारण होती है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
सन्दर्भ स्रोत : विभिन्न वेबसाइट
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