महिला को पासपोर्ट के लिए अपने पति की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है। मद्रास हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि पत्नी को पति की संपत्ति समझने वाली मानसिकता को खत्म करने की जरूरत है। दरअसल, महिला की पासपोर्ट एप्लिकेशन को इस वजह से रिजेक्ट कर दिया गया था क्योंकि उसमें पति के साइन नहीं थे। कोर्ट ने पासपोर्ट ऑफिस की इस मांग को हैरान करने वाला बताया और कहा कि यह सोच अब भी महिलाओं को पति की संपत्ति समझने वाली मानसिकता को दर्शाती है।
क्या था मामला?
यह मामला एक विवाहित महिला से जुड़ा है, जो अपने पति से तलाक के केस में फंसी हुई है। महिला ने अप्रैल 2025 में पासपोर्ट के लिए एप्लिकेशन किया था, लेकिन पासपोर्ट ऑफिस ने एप्लिकेशन के प्रोसेस को इसलिए नहीं बढ़ाया क्योंकि उसमें पति का साइन नहीं था। जब महिला ने उन्हें बताया कि तलाक का केस कोर्ट में पेंडिंग है. तब भी पासपोर्ट ऑफिस ने कहा कि पति का सिग्नेचर होना जरूरी है। इसके बाद महिला ने विदेश मंत्रालय, पासपोर्ट ऑफिस और चेन्नई पुलिस के खिलाफ मद्रास हाईकोर्ट में याचिका दायर की।
हाईकोर्ट ने क्या कहा?
कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि एक महिला शादी के बाद भी अपनी पहचान और अधिकार नहीं खोती है। कोर्ट ने टिप्पणी की कि पासपोर्ट के लिए पति की इजाजत लेने की यह व्यवस्था पुरुष प्रधान सोच को दर्शाती है और समाज में महिला स्वतंत्रता के खिलाफ है। कोर्ट ने कहा कि यह अत्यंत चौंकाने वाला है कि पासपोर्ट ऑफिस पति की अनुमति और साइन की मांग कर रहा है, जबकि पति-पत्नी के बीच रिश्ते पहले से ही बिगड़े हुए हैं। यह एक असंभव शर्त थोपने जैसा है।
कोर्ट का आदेश
कोर्ट ने पासपोर्ट ऑफिस को निर्देश दिया कि महिला का पासपोर्ट एप्लिकेशन स्वतंत्र रूप से प्रोसेस किया जाए और यदि अन्य सभी डॉक्यूमेंट पूरे हों, तो चार सप्ताह के भीतर महिला को पासपोर्ट जारी कर दिया जाए।
फैसले का असर
इस फैसले ने यह साफ कर दिया है कि किसी की वैवाहिक स्थिति उसकी पर्सनल और संवैधानिक अधिकारों पर प्रभाव नहीं डाल सकती। यह फैसला खासतौर पर महिलाओं के लिए राहत भरा है, जो वैवाहिक विवाद या तलाक की प्रोसेस से गुजर रही हैं। यह फैसला महिला की पहचान, गरिमा और स्वतंत्रता को समर्थन देता है।
कानून की नजर में महिला के अधिकार
पासपोर्ट अधिनियम 1967 और पासपोर्ट नियम 2016 के अनुसार अब पासपोर्ट के लिए पति की मंजूरी या विवाह प्रमाण पत्र की जरूरत नहीं है। एक महिला शादी के बाद भी अपना मायके का नाम रख सकती है। यह उसका वैलिड और संवैधानिक अधिकार है। पासपोर्ट केवल उन्हीं कारणों से रोका जा सकता है जो पासपोर्ट अधिनियम की धारा 6 में दिए गए हैं, जैसे राष्ट्रीय सुरक्षा, पेंडिंग आपराधिक केस आदि। यह फैसला केवल एक महिला के पासपोर्ट एप्लिकेशन से जुड़ा नहीं है, बल्कि यह पूरे समाज के लिए एक सशक्त संदेश है कि महिला को अपनी पहचान और अधिकारों के लिए किसी पुरुष की मंजूरी की जरूरत नहीं है।
सन्दर्भ स्रोत : विभिन्न वेबसाइट
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