पिता के स्थान पर अनुकंपा नियुक्ति प्राप्त पुत्र द्बारा मृतक के आश्रितों का देखभाल नहीं करने के मामले में हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण निर्णय दिया है। कोर्ट ने कहा, कि अनुकंपा नियुक्ति प्रदान करने के विधिक उद्देश्य के अंतर्गत मृतक के आश्रितों को भरण-पोषण प्रदान करना नियुक्त व्यक्ति का नैतिक और विधिक कर्तव्य माना गया है, जब तक कि वे आत्मनिर्भर न हो जाएं। दरअसल, जशपुर जिला निवासी सुरेंद्र खाखा छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत कंपनी में कर्मचारी था। 2002 में सुरेंद्र खाखा की पत्नी की मौत हो गई। पहली पत्नी से दो पुत्र सत्यम व जितेंद्र थे।
पत्नी की मौत के बाद उन्होंने दूसरी शादी की। विवाह के बाद दूसरी पत्नी से एक पुत्री एवं पुत्र का जन्म हुआ। स्वयं के संतान होने के बाद भी वह पति के पहली पत्नी की दोनों बच्चों को अपने ही बच्चों की तरह पालन की। सेवाकाल के दौरान पति की दिसंबर 2010 में मौत हो गई। कर्मचारी की मौत के बाद बिजली विभाग ने पत्नी को अनुकंपा नियुक्ति देने की अनुशंसा की। इस पर सौतेली मां होने के बाद उसने अपने सौतेले बड़े बेटे को अनुकंपा नियुक्ति दिलाने सहमति दी, कि वह मृतक की पत्नी एवं अन्य आश्रितों का भरण पोषण करेगा। कुछ समय तक उसने परिवार का भरण पोषण किया। शादी के बाद उसने परिवार का देखभाल बंद कर पत्नी के साथ अलग हो गया। इस पर सौतेली मां ने परिवार न्यायालय में परिवाद पेश कर पति के स्थान पर अनुकंपा नियुक्ति पाने वाले पुत्र से भरण पोषण राशि दिलाने की मांग की। परिवार न्यायालय ने अनुकंपा नियुक्ति प्राप्त करने वाले पुत्र की आय को देखते हुए आदेश किया कि वह अपनी सौतेली मां को 1000 रू हर माह उसके जीवित रहने या दूसरी शादी करने तक देगा एवं नाबालिग बहन एवं भाई को 3000-3000 रूपये उनके बालिग होने तक देने का आदेश किया। जनवरी 2023 को भाई बहन बालिग हो गए। इस आदेश के खिलाफ अनुकंपा नियुक्ति पाने वाले पुत्र ने समीक्षा याचिका पेश की थी।
हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद समीक्षा याचिका को खारिज करते हुए अपने आदेश में कहा कि पति के पेंशन से तीनों बच्चों की आजीविका का सारा भार बेवा के कंधों पर है। साथ ही यह भी कहा कि पारिवारिक न्यायालय ने अनावेदकों की आवश्यकता और मूल्य सूचकांक तथा अन्य परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए बेवा को 1000/- रुपए का भरण-पोषण प्रदान किया है। आवेदक अनुकंपा नियुक्ति के माध्यम से पर्याप्त आय अर्जित कर रहा था। अनुकंपा नियुक्ति प्रदान करने के विधिक उद्देश्य के अंतर्गत मृतक के आश्रितों को भरण-पोषण प्रदान करना नियुक्त व्यक्ति का नैतिक एवं विधिक कर्तव्य माना गया, जब तक कि वे आत्मनिर्भर न हो जाएं।
कोर्ट ने आवेदक को आदेश दिया है कि वह सौतेली मां को आजीवन अथवा उसके पुनर्विवाह होने तक प्रतिमाह 1000/- रुपए तथा अनावेदक 2 एवं 3 (भाई-बहन) को वयस्क होने तक 3000/- रुपए प्रतिमाह भरण-पोषण की राशि के रूप में आदेश पारित होने की तिथि से कुल 7000/- रुपए प्रतिमाह दे, इसके साथ कोर्ट ने समीक्षा याचिका को खारिज किया है।
Comments
Leave A reply
Your email address will not be published. Required fields are marked *