प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नाबालिग पत्नी को उसके पति की अभिरक्षा में सौंपने से इंकार कर दिया है. कोर्ट ने आदेश दिया है कि याची की पत्नी को बालिग होने बाल सुरक्षा गृह में रखा जाए. बालिग होने पर उसे अपनी मर्जी से जहां चाहे, जिसके साथ चाहे रहने की स्वतंत्रता होगी. अदालत ने किशोरी को 13 मार्च 2028 तक राजकीय बालगृह, निर्धरिया, बलिया में रखने का निर्देश दिया है. यह आदेश न्यायमूर्ति जेजे मुनीर और न्यायमूर्ति संजीव कुमार ने देवरिया निवासी युवक और उनकी नाबालिग पत्नी की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर दिया.
देवरिया के गौरी बाजार थाने में नाबालिग किशोरी के पिता ने एक युवक पर पुत्री का अपहरण, दुष्कर्म और पॉक्सो एक्ट में मुकदमा दर्ज कराया था. युवक को पुलिस ने गिरफ्तार किया और वह जमानत पर छूट गया. वहीं मेडिकल जांच में किशोरी 29 सप्ताह की गर्भवती पाई गई. उसने अपने बयान में कहा कि वह अपनी मर्जी से युवक से शादी करने के बाद पति-पत्नी के रूप में रह रही थी. प्रमाणपत्रों के आधार पर किशोरी के नाबालिग साबित होने पर उसे चाइल्ड वेलफेयर कमेटी के समक्ष पेश किया गया, जहां किशोरी ने अपने परिजनों के साथ जाने से इंकार कर दिया. इस पर कमेटी ने उसे राजकीय बाल गृह बलिया भेज दिया. पति ने हाईकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर कर पत्नी की रिहाई की मांग की.
याची अधिवक्ता ने दलील दी कि किशोरी बाल गृह बलिया में है. वह अपने माता-पिता के साथ नहीं रहना चाहती, जबकि उसने अपने पति के साथ रहने की इच्छा जताई है. कोर्ट ने स्कूल रिकॉर्ड के आधार पर पाया कि किशोरी की आयु 15 वर्ष 7 महीने और 13 दिन है. कोर्ट ने कहा कि नाबालिग को उसके तथाकथित पति के साथ रहने की अनुमति देना उसे यौन शोषण के जोखिम में डाल सकता है और यह पॉक्सो अधिनियम के तहत नए अपराध का कारण बन सकता है. ऐसे में कोर्ट ने किशोरी को उसके बालिग होने तक 13 मार्च 2028 तक बाल गृह में ही रखने का आदेश दिया. उन्होंने कहा कि उक्त तिथि के बाद बिना किसी शर्त के उसे रिहा किया जाएगा. वह जहां चाहे, जिसके साथ चाहे रहने की स्वतंत्रता होगी.



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