छाया : डॉ. मीनाक्षी स्वामी के फेसबुक अकाउंट से
प्रमुख लेखिका
• सीमा चौबे
साहित्य की विभिन्न विधाओं में विपुल लेखन करने वाली डॉ. मीनाक्षी स्वामी का जन्म 27 जुलाई 1959 को अपने ननिहाल जयपुर में हुआ। उनके पिता श्री सुदर्शनाचार्य स्वामी मप्र उच्च न्यायालय, इंदौर में वरिष्ठ अधिवक्ता थे, लेकिन उनकी साहित्य में भी गहरी रुचि थी। इंदौर की सौ वर्ष से भी अधिक पुरानी संस्था श्री मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति में वे कई वर्षों तक विभिन्न विभागों में मंत्री पद पर सक्रिय रहते हुए साहित्य की सेवा करते रहे। मीनाक्षी जी की माताजी श्रीमती शीला स्वामी भी साहित्य में गहरी रुचि रखती हैं। इस तरह चार बहनों में सबसे बड़ी मीनाक्षी जी को पढ़ने-लिखने के संस्कार विरासत में मिले। उन्हें बचपन से ही अपने पिता के साथ साहित्यिक आयोजनों में जाने, मूर्धन्य साहित्यकारों को सुनने और उनके सम्पर्क में आने का अवसर मिला।
उनके घर बड़ों के लिए धर्मयुग और बच्चों के लिए चंदामामा, नंदन, पराग आदि पत्रिकाएं आती थीं। महीने के शुरू में जब पत्रिकाओं के आने का समय होता, मीनाक्षीजी बेसब्री से हॉकर का रास्ता देखा करतीं। इन पत्रिकाओं के अलावा हिन्दी साहित्य समिति की लाइब्रेरी में भी अनेक पुस्तकें उन्हें पढ़ने को मिलीं। कक्षा आठवीं-नवीं तक आते-आते उन्होंने चंद्रकांता संतति, विमल मित्र, आचार्य चतुरसेन की मोटी-मोटी किताबों के अलावा प्रेमचंद, रवींद्रनाथ टैगोर, अज्ञेय, टॉलस्टॉय, गोर्की, मंटो, शिवाजी सावंत, शेक्सपीयर आदि को पढ़ लिया था। गर्मी की छुट्टियों में भी वे ऐसे किताबें पढ़तीं जैसे कल ही परीक्षा हो। पढ़ने की गति भी तेज थी। छुट्टियों में जब वे अपने ननिहाल जातीं तो वहां भी उनकी प्राथमिकता साहित्यिक किताबें ही होतीं। उनके नानाजी, मामाजी किताबें लाकर देते जिन्हें वे एक दिन में ही पढ़ लेतीं। नानाजी शुरू में तो इस बात पर विश्वास ही नहीं करते थे। फिर एक बार उन्होंने उन किताबों से जुड़े सवाल पूछे और जवाबों से उन्हें संतुष्ट होना ही पड़ा।
मीनाक्षी जी की प्राथमिक शिक्षा इंदौर के बाल विनय मंदिर, छत्रीबाग, हायर सेकंडरी तक की शिक्षा श्री बालाजी गणेश मारवाड़ी कन्या विद्यालय तथा महाविद्यालयीन शिक्षा माता जीजाबाई शासकीय स्नातकोत्तर कन्या महाविद्यालय इंदौर में हुई। उन्होंने समाजशास्त्र में एम.ए. और पीएचडी (मुस्लिम महिलाओं की बदलती हुई स्थिति) की उपाधि प्राप्त की। वर्तमान में आप इसी महाविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग में प्राध्यापक तथा विभागाध्यक्ष के पद पर कार्यरत हैं।
उनके लेखकीय जीवन में निर्णायक मोड़ वर्ष 1991 में उस वक्त आया जब उन्हें महारानी लक्ष्मीबाई स्नातकोत्तर कन्या महाविद्यालय, (न्यू जी.डी.सी) इंदौर में पदस्थापना के दौरान कॉलेज से दो महीने के योग प्रशिक्षक के प्रशिक्षण के लिए विवेकानंद केंद्र कन्याकुमारी की ग्वालियर शाखा में भेजा गया। इस प्रशिक्षण के लिए किसी और को जाना था, लेकिन उन्होंने अस्वस्थता का बहाना बना दिया और उनकी जगह मीनाक्षी जी का नाम तय किया गया। मीनाक्षी जी की सहेलियों ने उन्हें भी तबीयत का बहाना बनाने की सलाह दी, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। बहुत ही अनुशासन और गंभीरता के साथ उन्होंने वह प्रशिक्षण प्राप्त किया। प्रशिक्षकों के लिए तो अतिरिक्त और कठोर पाठ्यक्रम था। सुबह चार बजे से दिनचर्या शुरू होती थी। योगासन, प्राणायाम, ध्यान के अलावा थ्योरेटिकल लेक्चर, समाधि वगैरह का अभ्यास, यह सब उनके दिल-दिमाग में गहरे तक बैठ गया। पारिवारिक साहित्यिक पृष्ठभूमि से मिले साहित्यिक संस्कार और योग के अभ्यास ने भीतर के रचनाकार को जागृत किया। बस यहीं से उनके जीवन की दिशा बदल गई और उन्होंने लेखन कार्य शुरू किया। धर्मयुग में प्रकाशित उनकी उनकी पहली रचना ने उन्हें लेखन के लिए प्रोत्साहित किया उन्होंने अपनी पहली रचना धर्मयुग में भेजी जिसके प्रकाशन ने उन्हें लेखन के लिए प्रोत्साहित किया। उन्हें अपनी गुरु डॉ. अरुणा शास्त्री का आत्मीय मार्गदर्शन सदैव मिलता रहा जो आज भी जारी है।
वर्ष 1992 में एक अख़बार में भारत सरकार के पर्यावरण मंत्रालय का फिल्म स्क्रिप्ट लेखन का विज्ञापन पढ़ने के बाद मीनाक्षी जी ने विचारों को कागज़ पर उतारना शुरू किया तो एक की जगह कई स्क्रिप्ट बन गई। उनमें से एक का चयन राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए हुआ। आकाशवाणी के अधिकारियों के आग्रह पर उन्होंने पहली बार रेडियो रूपक लिखा, उसे भी राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। सफलता की कहानी यहीं नहीं रुकी, उनकी कृतियों को एक के बाद एक प्रतिष्ठित राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त होते रहे। पांडुलिपियां पुरस्कृत होने से उनकी कृतियों के प्रकाशन में कोई समस्या नहीं आई। किताबघर जैसे प्रतिष्ठित संस्थान ने उनकी कृतियां प्रकाशित की और अच्छी रॉयल्टी भी मिली। नेशनल बुक ट्रस्ट जैसे सर्वमान्य और अति प्रतिष्ठित प्रकाशन से भी जोड़ने का अवसर मिला। वहां किताबों के प्रकाशन के साथ उनकी कार्यशालाओं में कृष्णा सोबती, नासिरा शर्मा, प्रयाग शुक्ल जैसे वरिष्ठ रचनाकारों का भरपूर मार्गदर्शन मिला।
सामाजिक सरोकारों को साहित्य से जोड़कर समाज में चेतना लाने के लिए सक्रिय मीनाक्षी जी ने विविध विधाओं में विभिन्न वर्गों के लिए अड़तालीस पुस्तकें लिखी हैं। इन कृतियों को भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों, मप्र और उप्र सरकार द्वारा प्रतिष्ठित राष्ट्रीय पुरस्कारों से अलंकृत किया गया है। वे कहती हैं – मैंने इतनी उपलब्धियों की आशा नहीं की थी, आशा से परे उपलब्धियां पाकर खुशी होती है। लेकिन यह क्षणिक अवस्था है। वास्तविक आनंद तो सृजन का है। संतुष्टि तब होती है, जब जितना चाहते हैं वह अभिव्यक्त कर पाते हैं। किसी भी रचनाकार के लिए सबसे बड़ा पुरस्कार है, निर्बाध और निरंतर अभिव्यक्ति। मीनाक्षी जी वर्तमान में इंदौर में रहते हुए रचना कर्म में व्यस्त हैं।
उपलब्धियां
प्रमुख प्रकाशन कृतियां
उपन्यास-
1. भूभल
2. नतोहम्
3. सौ कोस मूमल
कहानी संग्रह
1. अच्छा हुआ मुझे शकील से प्यार नहीं हुआ
2. धरती की डिबिया
संकलित कहानियां
स्त्री विमर्श-
1. कटघरे में पीड़ित 2. अस्मिता की अग्नि परीक्षा
सामाजिक विमर्श
1. भारत में संवैधानिक समन्वय और व्यावहारिक विघटन
2. सामाजिक चेतना और विकास के परिप्रेक्ष्य में पुलिस की भूमिका का उद्भव
3. पुलिस और समाज
4. मानवाधिकार संरक्षण एवं पुलिस
किशोर साहित्य
1. लालाजी ने पकड़े कान
2. व्यक्तित्व विकास और योग
बाल साहित्य
1. बीज का सफर
2. बापू की यात्रा
3. चौरंगी पतंग
4. बूंद-बूंद से सागर
5. पाली का घोड़ा
6. पीतल का पतीला
7. क्यों…?
8. बांसुरी के सुर
नाटक
सच्चा उपहार
सम्मान-पुरस्कार
1. वर्ष 1993 में पर्यावरण व वन मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा फिल्म स्क्रिप्ट ‘इस बार बरसात में’ के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार
2. वर्ष 1993 में गृह मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा ‘सामाजिक चेतना और विकास के परिप्रेक्ष्य में पुलिस की भूमिका का उद्भव’ पुस्तक पर पं. गोविन्द बल्लभ पंत पुरस्कार (इस भाग में पुरस्कृत होने वाली प्रथम महिला, इस पुरस्कार का ऑब्जेक्टिव प्रश्न प्रतियोगिता दर्पण में भी आया)
3. वर्ष 1995 में सूचना और प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा ‘कटघरे में पीड़ित’ पुस्तक पर भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार
4. वर्ष 1995 में संसदीय कार्य मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा ‘राष्ट्रीय एकता और अखंडता: बंद द्वार पर दस्तक’ पुस्तक पर पं. मोतीलाल नेहरू पुरस्कार
5. वर्ष 1995 में विधानसभा सचिवालय, मध्यप्रदेश द्वारा ‘भारत में संवैधानिक समन्वय और व्यावहारिक विघटन’ पुस्तक पर डॉ. भीमराव आंबेडकर राष्ट्रीय पुरस्कार
6. वर्ष 1995, 1997,1999 व 2002 में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा नवसाक्षर साहित्य लेखन के लिए पुस्तकें ‘निश्चय’, ‘सुबह का भूला’, ‘साहसी कमला’, ‘गोपीनाथ की भूल’, ‘साहब नहीं आए’, ‘हरियाली के सपने’, ‘छोटी-छोटी बातें’, ‘नादानी’ व ‘शिकायत की चिट्ठी’ पर राष्ट्रीय पुरस्कार
7. वर्ष 1995 में आकाशवाणी महानिदेशालय, नई दिल्ली रेडियो रूपक ‘कहां चली गई हमारी बेटियां’ पर राष्ट्रीय पुरस्कार
8. वर्ष 1995 में राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान व प्रशिक्षण परिषद् (एन.सी.ई.आर.टी.) नई दिल्ली द्वारा ‘बीज का सफर’ पुस्तक पर बाल साहित्य का राष्ट्रीय पुरस्कार
9. वर्ष 1995 में चिल्ड्रन्स बुक ट्रस्ट, नई दिल्ली द्वारा ‘व्यक्तित्व विकास और योग’ पुस्तक पर राष्ट्रीय पुरस्कार
10. वर्ष 1997 में महामहिम राज्यपाल मध्यप्रदेश द्वारा उत्कृष्ट साहित्यिक योगदान के लिए सम्मानित
11. सहस्राब्दि विश्व हिंदी सम्मेलन 2000 में उत्कृष्ट साहित्यिक योगदान (हिंदी) सम्मान
12. वर्ष 2002 में मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा पुस्तक ‘बहूरानी’ पर राष्ट्रीय पुरस्कार
13. वर्ष 2003 में उत्कृष्ट लेखकीय योगदान के लिए माधवराव सिंधिया प्रतिष्ठा सम्मान
14. वर्ष 2005 में गृह मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा ‘खंडित होते पुलिस के मानवाधिकार’ पुस्तक पर पं.गोविन्द बल्लभ पंत पुरस्कार
15. वर्ष 2007 में मध्यप्रदेश जनसम्पर्क विभाग द्वारा ‘धरती की डिबिया’ कहानी पर स्वर्ण जयंती कहानी पुरस्कार
16. वर्ष 2008 में मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा पुस्तक ‘बापू की यात्रा’ पर राष्ट्रीय पुरस्कार
17. वर्ष 2011 में साहित्य अकादमी मध्यप्रदेश द्वारा उनके पहले उपन्यास ‘भूभल’ पर बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ प्रादेशिक पुरस्कार
18. वर्ष 2011 में अखिल भारतीय विद्वत् परिषद् वाराणसी द्वारा उपन्यास ‘भूभल’ पर कादंबरी पुरस्कार
19. वर्ष 2012 में साहित्य अकादमी मध्यप्रदेश द्वारा उपन्यास ‘नतोहम्’ पर अखिल भारतीय राजा वीरसिंह देव पुरस्कार
20. वर्ष 2018 में साहित्य मंडल नाथद्वारा, राजस्थान द्वारा सारस्वत सम्मान व साहित्य कुसुमाकर की मानद उपाधि
21. वर्ष 2018 में अखिल भारतीय साहित्य परिषद, राजस्थान द्वारा उपन्यास ‘नतोहम्’ पर राष्ट्रीय पुरस्कार
22. वर्ष 2018 में अखिल भारतीय साहित्य परिषद, राजस्थान द्वारा उपन्यास ‘नतोहम्’ पर राष्ट्रीय पुरस्कार
पाठ्यक्रम में-
1. ‘धरती की डिबिया’ कहानी गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय- हरिद्वार के स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम में शामिल।
2. ‘नतोहम्’ उपन्यास अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय- भोपाल के स्नातक पाठ्यक्रम में शामिल।
3. मध्यप्रदेश शासन उच्च शिक्षा विभाग के बी.ए. प्रथम वर्ष हिंदी साहित्य के पाठ्यक्रम में द्रुत पाठ के अंतर्गत व्यक्तित्व व कृतित्व शामिल।
4. मुंबई विश्वविद्यालय से सम्बध्द गुरु नानक खालसा स्वशासी महाविद्यालय तथा कर्नाटक विश्वविद्यालय, धारवाड़ के पाठ्यक्रम में कहानी ‘आउट ऑफ रेंज’ और ‘कस्तूरी’ शामिल।
विशेष
यूनीसेफ, यूनेस्को, नेशनल बुक ट्रस्ट इंडिया, एन.सी.ई.आर.टी., राज्य संसाधन केंद्र उत्तर प्रदेश व मध्यप्रदेश आदि के द्वारा आयोजित विभिन्न कार्यशालाओं में भागीदारी। साहित्य अकादमी मध्यप्रदेश द्वारा आयोजित कई राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों में मुख्य वक्ता, मुख्य अतिथि, अध्यक्ष के रूप में भागीदारी। मानवाधिकारों के विभिन्न पहलुओं एवं उनमें पुलिस की भूमिका पर केंद्र सरकार, मध्यप्रदेश व राजस्थान के विभिन्न पुलिस प्रशिक्षण संस्थानों में अनेक व्याख्यान। मध्यप्रदेश राज्य महिला आयोग इंदौर नेटवर्क की पूर्व सदस्य। संस्कृति विभाग, मध्यप्रदेश शासन की पुस्तक चयन समिति की पूर्व सदस्य। कई प्रतिष्ठित राष्ट्रीय व प्रादेशिक पुरस्कारों के निर्णायक मंडल की सदस्य। भारत सरकार के कारपोरेट कार्य मंत्रालय की राजभाषा समिति की पूर्व सदस्य। श्री मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति, इंदौर (सौ वर्षों से हिंदी की सेवा व प्रचार में संलग्न प्रतिष्ठित संस्था) में मंत्री। श्री मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति, इंदौर से प्रकाशित हिंदी पत्रिका में तीन वर्ष तक संपादक मंडल में शामिल। कई पुस्तकों का विभिन्न भारतीय भाषाओं व अंग्रेजी में अनुवाद तथा देश भर के विश्वविद्यालयों में कई छात्रों द्वारा रचना-कर्म पर शोध कार्य जारी।
संदर्भ स्रोत : डॉ. मीनाक्षी जी से सीमा चौबे की बातचीत पर आधारित
Comments
Leave A reply
Your email address will not be published. Required fields are marked *