छाया: NO भिक्षा के एफ़ बी पेज से
इंदौर। धार्मिक मान्यता के अनुसार अंतिम संस्कार में केवल पुरुष ही शामिल होते हैं और महिलाओं का श्मशान घाट में जाना वर्जित होता है, लेकिन इंदौर को भिखारी मुक्त बनाने के अभियान में जुटी संस्था प्रवेस की अध्यक्ष 43 वर्षीय रूपाली जैन इन सभी मान्यताओं से परे लावारिस और परिवार द्वारा त्यागे गए मृतकों का अंतिम संस्कार कर रही हैं। वे उनका अंतिम संस्कार उनके धर्म के हिसाब से प्रत्येक रीति-रिवाज का पालन करते हुए करती हैं।
उज्जैन में संपन्न परिवार में जन्मीं रूपाली ने इंदौर से सॉफ्टवेयर इंजीनियर की डिग्री हासिल की है। वे बताती हैं ‘वर्ष 2000 में शादी हो गई और 2001 से जॉब शुरू की। भारत की प्रतिष्ठित कंपनियों में प्रोजेक्ट मैनेजर की हैसियत से कार्य करने के बाद अमेरिका, लंदन और कनाडा में भी काम किया। इसी बीच उनके बेटे परम का भी जन्म हो गया था। पति भी इंटरनेशनल कंपनी में ही बड़ी पोस्ट पर थे। सब कुछ ठीक था, इसी बीच वे इंदौर आ गईं।
• एक घटना से बदल गया नजरिया
6 जुलाई 2009 को उनके बेटे परम का जन्मदिन मनाने वे खाना लेकर इंदौर की एक गरीब बस्ती पहुंची। वहां पहुंचकर उन्होंने एक-दो नहीं, बल्कि 33 ऐसे बच्चे देखे जो कुपोषित थे। बच्चों की हालत देखकर उनका मन इतना विचलित हो गया कि वहां से लौटकर आने के बाद दिमाग में उन लाचार बच्चों की ही तस्वीर घूमती रहीं। इस घटना ने उन्हें अंदर तक इतना झकझोर दिया कि उन्होंने निश्चय कर लिया कि अब आगे की जिंदगी गरीब और असहाय लोगों की मदद में समर्पित करना है। जब उन्होंने अपनी इस मंशा से मायके और ससुराल वालों को अवगत कराया तो घर में तूफ़ान सा आ गया। माँ-पिता के साथ-साथ पति और ससुराल वालों ने उनके इस निर्णय का कड़ा विरोध किया। सबसे बड़ी समस्या यह थी कि यह काम उन्हें इंदौर में रहकर करना था, जबकि पति की नौकरी बेंगलुरु में थी। जब समझौते की कोई गुंजाइश नहीं बची, तो अंतत: उन्होंने पति से अलग रहने का फैसला कर लिया। मां-बाप जैसे-तैसे राजी हो गए और उन्होंने घर से ही कुपोषित बच्चों के लिए रोज हेल्दी डाइट फूड (पोषण आहार) बनवाया और उन्हें भिजवाने लगीं।
• बुजुर्गों को बेटी बन दी मुखाग्नि
2021 में भिक्षुक मुक्त इंदौर के लिए पायलट प्रोजेक्ट नगर निगम के साथ मिलकर शुरू किया। इसके तहत भिक्षुक पुनर्वास केंद्र परदेशीपुरा में शुरू किया। मार्च 2022 में केंद्र के एक बुजुर्ग भिक्षुक का इलाज के दौरान निधन हो गया। अस्पताल ने जब लाश ले जाने की बात कही तो रुपाली को समझ ही नहीं आया कि इस लाश का क्या करें। नगर निगम अधिकारियों से संपर्क किया तो वहां से निराशा हाथ लगी। उन्होंने ऐसी संस्थाओं को तलाश किया जो लावारिसों की अंत्येष्टि कराती हों। पता चला कि वे भी पैसे मांग रही हैं। तब उन्होंने तय किया कि इनका अंतिम संस्कार वे खुद करेंगी। जब चेतराम के अंतिम संस्कार के लिए वे अपनी टीम के साथ जूनी इंदौर मुक्ति धाम पहुंची, उस समय वहां किसी और की अंत्येष्टि हो रही थी। महिला को मुक्ति धाम में खड़ा देख लोगों ने रोका और कहा कि आप मुखाग्नि नहीं दे सकतीं। लोगों के विरोध करने और समझाने बावजूद वे मुखाग्नि देकर ही मानीं।
• हर लावारिस की मुखाग्नि का लिया प्रण
इस घटना के बाद उन्होंने प्रण किया कि अब केंद्र के जिस भी भिक्षुक का निधन होगा, यदि उनका परिवार नहीं है तो उनका अंतिम संस्कार पूरे विधि-विधान के साथ अपने हाथों से करेंगी। वे अब तक 16 भिक्षुकों को मुखाग्नि दे चुकी हैं। इन सभी मृतकों के अस्थि कलश अभी जूनी इंदौर मुक्तिधाम पर रखे हुए हैं। रुपाली बताती हैं ‘20 लोगों की अस्थि कलश होने पर हरिद्वार ले जाकर विधि-विधान से पूजा कर अस्थि विसर्जित की जाएंगी।‘
• बेटा भी करता है मदद
उनका बेटा परम भी अपनी पॉकेट मनी, एफडी के ब्याज और किसी आयोजन पर मिले लिफाफे में से आधी राशि मानव सेवा (वृद्धाश्रम, ब्लाइंड स्कूल या किसी ज़रूरतमंद को) दान कर देता है। सवा दो लाख रुपए के आसपास की राशि वह हर साल दान करता है।
• लगभग 650 की घर वापसी में दिया योगदान
• नृत्यांगना भी हैं रूपाली
रूपाली 16 हजार महिलाओं का सशक्तिकरण कर उनका समूह बनाकर रोजगार दिला चुकी हैं। वे फोक व कथक डांसर भी हैं। रूपाली को वर्ष 1992 में नृत्य के लिए राष्ट्रपति अवॉर्ड मिल चुका है। इसके अलावा चार नेशनल अवॉर्ड में से दो नेशनल अवॉर्ड भी नृत्य के लिए प्राप्त हुए। एक नेशनल अवॉर्ड निबंध के लिए तो एक नेशनल अवॉर्ड डिबेट के लिए मिला है। रूपाली इंटरनेशनल डिबेटर भी हैं।
संदर्भ स्रोत - पत्रिका और दैनिक भास्कर
संपादन- मीडियाटिक डेस्क
Comments
Leave A reply
Your email address will not be published. Required fields are marked *