छाया: लाइव लॉ
महत्वपूर्ण अदालती फैसले
• तलाक का फैसला भी खारिज किया
चेन्नई। मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै खंडपीठ ने तलाक का एक फैसला खारिज करते हुए कहा कि जब पत्नी अपने अधिकारों की मांग करती है तो इसे कभी भी मानसिक क्रूरता नहीं कहा जा सकता। जस्टिस आर विजयकुमार ने कहा कि पत्नी द्वारा शुरू किया गया मुकदमा केवल उसके संपत्ति अधिकारों और उसके बेटे की हिरासत की रक्षा के लिए है। जब ऐसी कार्यवाही की शुरुआत उसके अधिकारों के लिए होती है तो इस कार्यवाही को मानसिक क्रूरता का आधार नहीं माना जा सकता है। इसके साथ ही, कोर्ट ने दूसरी अपील में तलाक की डिक्री को उलट दिया है। याचिका में पति सेल्वराज ने पत्नी की क्रूरता और परित्याग के आधार पर तलाक की मांग की थी।
प्रतिवादी पति ने अतिरिक्त अधीनस्थ न्यायालय, करूर के समक्ष क्रूरता और परित्याग के आधार पर अपनी पत्नी से तलाक की मांग करते हुए याचिका दायर की। उन्होंने आरोप लगाया कि वह व्यभिचारी जीवन जी रही है और कई अनुरोधों के बाद भी उसने अवैध गतिविधियों को छोड़ने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि उन्होंने पत्नी के नाम पर अचल संपत्ति खरीदी थी और लोन लेकर भवन का निर्माण किया था इसलिए संपत्ति पर अधिकार का दावा करते हुए निषेधाज्ञा के लिए मुकदमा दायर किया। हालांकि उनका मुक़दमा ख़ारिज कर दिया गया, अपील पर इसे आंशिक रूप से अनुमति दी गई।
दूसरी ओर, पत्नी ने तर्क दिया कि अचल संपत्ति उसकी कमाई से खरीदी गई और इमारत भी उसके द्वारा लिए गए लोन का उपयोग करके बनाई गई। इस प्रकार उसके पति का संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं है। उन्होंने आगे तर्क दिया कि व्यभिचार के आरोप पूरी तरह से झूठे हैं। उसने यह भी दावा किया कि उसके पति ने दूसरी शादी कर ली है और और बिना कोई गुजारा भत्ता दिए उसे और उसके नाबालिग बेटे को छोड़ दिया। ट्रायल कोर्ट ने माना कि कोई परित्याग नहीं हुआ और पति के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज करना क्रूरता की घटना के रूप में नहीं देखा जा सकता। इस प्रकार अदालत ने याचिका खारिज कर दी।
जब पति ने अपील दायर की तो प्रथम अपीलकर्ता अदालत ने दोहराया कि पति ने व्यभिचार का आरोप स्थापित नहीं किया। हालांकि, अदालत ने यह भी कहा कि पत्नी का रवैया एक के बाद एक याचिकाएं दायर करके पति को परेशान करना है। यह फैसला सुनाते हुए कि हालांकि कोई विशेष क्रूरता नहीं है, अदालत ने कहा कि पति को उसके खिलाफ दर्ज शिकायतों के कारण मानसिक क्रूरता का सामना करना पड़ा है।
हाईकोर्ट ने कहा कि दीवानी और आपराधिक अदालती कार्यवाही शुरू होने के बाद भी पत्नी ने कभी भी वैवाहिक घर नहीं छोड़ा और वास्तव में पति ने ही वैवाहिक घर छोड़ा और दूसरी शादी कर ली। अदालत ने यह भी कहा कि ऐसा कोई कारण स्थापित नहीं किया गया कि उसे मानसिक क्रूरता के कारण वैवाहिक घर छोड़ने के लिए मजबूर किया गया हो। अदालत ने कहा कि दोनों पक्षों के बीच विवाद की जड़ वह संपत्ति है, जिसमें वह और उनका बेटा रह रहे हैं। अदालत ने कहा कि जब अपीलकर्ता अदालत ने आंशिक रूप से इस आशय का फैसला सुनाया कि ज़मीन उसकी है और इमारत उसकी है तो पत्नी ने फैसले को चुनौती दी।
इस प्रकार, अदालत ने पाया कि पति ने इमारत पर पत्नी का अधिकार स्वीकार कर लिया, जिसका अर्थ यह होगा कि पत्नी द्वारा प्रारंभिक निषेधाज्ञा का मुकदमा बिना किसी आधार के नहीं है और केवल मानसिक क्रूरता पैदा करने के लिए है। अदालत ने कहा, ‘सिर्फ इसलिए कि उसे उक्त आपराधिक कार्यवाही से बरी कर दिया गया, पत्नी द्वारा शुरू की गई कार्यवाही को मानसिक क्रूरता नहीं कहा जा सकता। खासकर तब जब उसने पति द्वारा दूसरी शादी करने का प्रथम दृष्टया मामला बनाया हो।‘ अदालत ने कहा, जब पति ने वैवाहिक घर छोड़ दिया और वह दूर रह रहा है और पति पर दूसरी शादी का आरोप है तो पत्नी को वैवाहिक अधिकारों को बहाल करने के लिए कदम नहीं उठाने के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता। प्रथम अपीलीय अदालत ने इस निष्कर्ष पर पहुंचने के बाद कि पति व्यभिचार के आरोप को साबित करने में बुरी तरह विफल रहा, वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए कोई आवेदन दायर नहीं करने के लिए पत्नी पर दोष मढ़ना सही नहीं है।
संदर्भ स्रोत: लाइव लॉ
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