पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने एक 13 साल की लड़की के साथ बलात्कार के मामले में पीड़िता और आरोपी के बीच समझौते के आधार पर केस रद्द करने से इनकार कर दिया है। कोर्ट ने साफ तौर पर कहा कि नाबालिग से रेप के मामले में खुद ही सुलह नहीं कर सकते हैं।
कोर्ट ने फटकार लगाते हुए कहा कि POCSO कानून का उद्देश्य नाबालिगों को यौन शोषण से बचाना है। इस तरह के समझौते इस कानून के खिलाफ है। कोर्ट ने कहा कि इस तरह के समझौतों से आने वाले और मामलों पर भी असर पड़ेगा।
आरोपी पर 13 साल की पीड़िता के साथ बलात्कार का आरोप था। ऐसा बताया गया कि याचिकाकर्ता पीड़िता को बहला-फुसलाकर अपने साथ ले गया और उसके साथ ही रहने लगा। परिवार की शिकायत के बाद पुलिस ने 4 महीने बाद आरोपी को हिरासत में लिया। इस समय याचिकाकर्ता पर धारा 363, 366-ए, 376, 34 आईपीसी और पोक्सो अधिनियम की धारा 4 और 12 के तहत केस चल रहा है। आरोपी ने पीड़िता के साथ शादी करने का समझौता किया है। इस आधार पर केस रद्द करने की याचिका दायर की गई थी।
कोर्ट ने पूरे मामले पर क्या कहा?
पूरे मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस जसगुरप्रीत सिंह पुरी ने कहा, ये कानून नाबालिग और वयस्कों के बीच अंतर को दर्शाता है। इसके साथ ही उन मामलों पर लगाम लगाता है जो शोषणकारी और अपमानजनक संबंधों को बढ़ावा देते हैं। इस कानून के तहत नाबालिग यानी कि 18 साल से कम उम्र के लोगों को सुरक्षा प्रदान करता है। जिन्हें उनकी उम्र के आधार पर कानूनी रूप से सूचित सहमति देने में असमर्थ माना जाता है।
जस्टिस ने कहा कि, सजा का निवारण सिद्धांत इस सिद्धांत पर आधारित है कि दंड केवल पहले से किए गए गलत काम के लिए ही नहीं दिया जाता है, बल्कि यह एक चेतावनी के रूप में भी काम करता है, जिसका उद्देश्य भविष्य में अपराधी की तरफ से समाज के अन्य सदस्यों द्वारा इसी प्रकार के अपराधों को करने से रोकना है।
कोर्ट ने किया सुप्रीम कोर्ट के आदेश जिक्र
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, “यौन संबंध के लिए सहमति की आयु निश्चित तौर पर 18 साल है और इस पर कोई विवाद नहीं है, इसलिए किसी भी परिस्थिति में 18 वर्ष से कम आयु का बच्चा यौन संबंध के लिए व्यक्त या निहित सहमति नहीं दे सकता है।” कोर्ट ने कहा कि आरोपी की तरफ से शादी का समझौता सजा से बचने के लिए किया गया है। कोर्ट ने केस का जिक्र करते हुए कहा कि अभियुक्त को भगोड़ा घोषित किया गया था और 9 सालों के लंबे अंतराल के बाद उसे गिरफ्तार किया गया था। इसके साथ ही पीड़िता ने अभियोजन पक्ष के मामले का समर्थन किया था, कोर्ट ने समझौते के आधार पर केस रद्द करने से इनकार कर दिया।
सन्दर्भ स्रोत : विभिन्न वेबसाइट
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