प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा है कि पति नाबालिग होने का हवाला देकर पत्नी और बच्चे के भरण-पोषण के दायित्व से नहीं बच सकता। अदालत ने साफ किया कि भरण-पोषण का अधिकार पत्नी और संतान का मूल अधिकार है, जिसे केवल उम्र के आधार पर खत्म नहीं किया जा सकता।
मामला बरेली जिले का है। अभिषेक सिंह यादव नामक युवक ने 10 जुलाई 2016 को शादी की थी। याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट को बताया कि पति की शादी तब हुई थी जब वह सिर्फ 13 साल का था। शादी के दो साल बाद, दंपति को एक बच्चा हुआ। जब पति की उम्र लगभग 16 साल हुई उस समय पत्नी ने दहेज उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए भरण-पोषण की मांग की। पारिवारिक न्यायालय ने पत्नी को 5,000 रुपये और बच्चे को 4,000 रुपये मासिक देने का आदेश दिया।
इस आदेश के खिलाफ पति ने हाईकोर्ट में अपील की और कहा कि विवाह के समय वह महज 13 साल का था, इसलिए उसके खिलाफ आपराधिक दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 125 के तहत गुजारा भत्ता नहीं मांगा जा सकता। इस पर जस्टिस मदन पाल सिंह ने अपने आदेश में कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 और 128 में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो नाबालिग पति के खिलाफ कार्यवाही पर रोक लगाता हो।
भरण-पोषण की राशि कम की
हाईकोर्ट ने पारिवारिक न्यायालय द्वारा तय की गई राशि में आंशिक संशोधन किया। अदालत ने पत्नी को 2,500 रुपये और बच्चे को 2,000 रुपये यानी कुल 4,500 रुपये प्रतिमाह गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया। साथ ही यह भी कहा गया कि यदि कोई बकाया है तो उसकी गणना नई राशि के आधार पर होगी। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि विवाह शून्यकरणीय (voidable) होने की स्थिति में भी पत्नी और बच्चे का भरण-पोषण का अधिकार बरकरार रहता है। यह फैसला भविष्य में ऐसे मामलों में एक अहम मिसाल साबित हो सकता है।
सन्दर्भ स्रोत : विभिन्न वेबसाइट
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