सुप्रीम कोर्ट  : वैवाहिक विवादों में आपराधिक

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सुप्रीम कोर्ट  : वैवाहिक विवादों में आपराधिक
शिकायतों की गहन जांच की आवश्यकता

 नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक वैवाहिक विवाद की सुनवाई करते हुए आईपीसी की धारा 498ए के दुरुपयोग पर एक बार फिर चिंता जताई। यह मामला एक महिला द्वारा अपनी शादी के डेढ़ महीने के भीतर धारा 498ए के तहत दर्ज कराई गई शिकायत से जुड़ा था। न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही थी। कोर्ट ने पत्नी, पति और पति की मां को अपने मुद्दों को सुलझाने के लिए मिडिएशन में शामिल होने का निर्देश दिया।

धारा 498ए रिश्ते पर नींबू निचोड़ने जैसा

सुनवाई के दौरान, जस्टिस नागरत्ना ने कहा, "आजकल, सास यानी बेटे की मां और पति, झूठी शिकायतों के कारण पत्नी से बहुत चिंतित रहते हैं। हमने कई शिकायतों को खारिज कर दिया है। हम यह नहीं कह रहे हैं कि हर मामला झूठा है, लेकिन धारा 498ए बहुत ही कठोर है और इसका दुरुपयोग किया जाता है। हम आपको बता रहे हैं कि धारा 498ए रिश्ते पर नींबू निचोड़ने जैसा है। हम इससे ज्यादा कुछ नहीं कहेंगे।"

धारा 498ए के दुरुपयोग पर सुप्रीम कोर्ट ने फिर जताई चिंता 

पिछले एक साल में सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए (अब भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 84) के दुरुपयोग पर कई बार चिंता जताई है। मई 2024 में, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने संसद से अनुरोध किया कि वह भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 85 और 86 के लागू होने से पहले उनमें बदलाव करने पर विचार करे। पीठ ने कहा कि ये प्रावधान भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए और उसकी व्याख्या का ही प्रतिरूप हैं।

शिकायतों की जांच सावधानीपूर्वक की जानी चाहिए- कोर्ट

इस सप्ताह की शुरुआत में, जस्टिस नागरत्ना और जस्टिस महादेवन की पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि वैवाहिक शिकायतों की प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने के लिए सावधानीपूर्वक जांच की जानी चाहिए। पीठ ने एक महिला द्वारा अपने देवर के खिलाफ दर्ज कराए गए क्रूरता और दहेज के मामले को इस आधार पर खारिज कर दिया कि आरोप सामान्य और अस्पष्ट थे।

कानून के दुरुपयोग की कोर्ट ने की आलोचना

अस्पष्ट और बहुविध आरोपों के कारण वैवाहिक विवाद से उत्पन्न आपराधिक कार्यवाही को रद करते हुए, न्यायमूर्ति नागरत्ना के नेतृत्व वाली पीठों ने इस प्रावधान के दुरुपयोग की बार-बार आलोचना की है। कोर्ट ने कहा कि पति के हर रिश्तेदार को शिकायत में शामिल करने की बढ़ती प्रवृत्ति शिकायतों की विश्वसनीयता को कम करती है और सुरक्षात्मक कानून के मूल उद्देश्य को ही धूमिल करती है। इन सभी निर्णयों में, न्यायालय ने यह माना है कि क्रूरता के वास्तविक मामलों को संवेदनशीलता के साथ निपटाया जाना चाहिए। 

दुरुपयोग की संभावना मात्र धारा रद नहीं होगी- कोर्ट

अप्रैल 2025 में, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर की पीठ ने धारा 498ए की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि किसी प्रावधान के दुरुपयोग की संभावना मात्र उसे रद करने का आधार नहीं हो सकती। इस प्रावधान के दुरुपयोग के उदाहरणों को स्वीकार करते हुए, कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि दुरुपयोग के प्रत्येक उदाहरण के साथ, सैकड़ों वास्तविक मामले भी हैं जहां यह प्रावधान घरेलू हिंसा के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करता है।

सन्दर्भ स्रोत : विभिन्न वेबसाइट

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