छाया : दैनिक जागरण
कहा - फैसला देते समय अपने विचार न रखें जज
नई दिल्ली, एजेंसी। दुष्कर्म के एक मामले में कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले की भाषा पर सुप्रीम कोर्ट ने आपत्ति जताई है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि फैसले के कुछ हिस्से बेहद आपत्तिजनक और अनुचित हैं। दरअसल कलकत्ता हाईकोर्ट ने 20 अक्टूबर को यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (पॉक्सो एक्ट) के एक मामले में फैसला सुनाते हुए कहा था कि किशोर लड़कियों को अपनी यौन इच्छाओं को नियंत्रण में रखना चाहिए और दो मिनट आनंद के फेर में नहीं पड़ना चाहिए। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस पंकज मित्तल की बेंच ने इस पर संज्ञान लेते हुए आपत्ति जताई। बेंच ने कहा कि जज से उम्मीद नहीं की जाती है कि वे फैसला सुनाते वक्त अपने विचार व्यक्त करें। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जजों से यह उम्मीद नहीं की जाती कि वह अपने निजी विचार साझा करें या भाषण दें। यह पूरी तरह से संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत किशोरों के अधिकारों का उल्लंघन है। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेकर इस मामले पर सुनवाई की और राज्य सरकार और अन्य को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा है कि क्या वह हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुनवाई करेंगे।
संदर्भ स्रोत : देशबन्धु
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