दिल्ली हाई कोर्ट ने वापस लिया विधवा को 29 सप्ताह

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दिल्ली हाई कोर्ट ने वापस लिया विधवा को 29 सप्ताह
का गर्भपात कराने की इजाजत देने वाला आदेश

छाया : लॉ ट्रेंड डॉट इन

• सरकारी अस्पताल में डिलेवरी होने पर सरकार वहन करेगी खर्च

•  निर्देशों के साथ अदालत ने किया आदेश को वापस लेने के केंद्र सरकार के आवेदन का निपटारा

एक विधवा महिला की मानसिक स्थिति को देखते हुए 29 सप्ताह की गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति देने संबंधी आदेश को दिल्ली हाईकोर्ट ने वापस ले लिया है। न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने कहा कि एम्स की रिपोर्ट को देखते हुए 29 सप्ताह की गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति देने संबंधी इस अदालत के चार जनवरी के आदेश को वापस लिया जाता है। अदालत ने कहा कि महिला उचित समय पर प्रसव के लिए एम्स के मेडिकल बोर्ड के समक्ष जा सकती है। अदालत ने कहा कि यह महिला को तय करना है कि वह बच्चे को जन्म एम्स, केंद्र सरकार या राज्य सरकार के किस अस्पताल में से कहां देना चाहती है। अदालत ने कहा कि सरकारी अस्पताल में बच्चे को जन्म देने की स्थिति में इसका खर्च सरकार वहन करेगी।

अदालत ने कहा कि मेडिकल रिपोर्ट के अनुसार, समय से पहले प्रसव पीड़ा शुरू होने पर विफलता की संभावना अधिक है और सीजेरियन सेक्शन इसका कारण बन सकता है। इसका असर महिला के भावी गर्भधारण पर भी पड़ सकता है। साथ ही जन्म लेने वाले बच्चे में शारीरिक व मानसिक कमियां हो सकती है। अदालत ने कहा कि वर्तमान में महिला 32 सप्ताह की गर्भवती है। ऐसे में यह स्पष्ट किया जाता है कि अगर महिला बच्चे को जन्म देती है तो केंद्र सकरार यह सुनिश्चित करेगी कि गोद लेने की प्रक्रिया तेज और सरल हो। अदालत ने उक्त निर्देश केंद्र सरकार द्वारा दाखिल किए गए आवेदन पर दिया। वहीं, केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की तरफ से पेश हुई अतिरिक्त सालिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने केंद्र सरकार की तरफ से कहा था कि वर्तमान मामले में यह स्पष्ट है कि गर्भावस्था का समापन तब तक नहीं हो सकता जब तक कि चिकित्सक भ्रूणहत्या न कर दें। केंद्र सरकार ने कहा था कि बच्चे के जीवित रहने की उचित संभावना है और अदालत को अजन्मे शिशु के जीवन के अधिकार की रक्षा पर विचार करना चाहिए।

वहीं, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ने भी हाईकोर्ट में आवेदन दाखिल कर कहा था कि अगर बच्चे को गर्भावस्था के 34 सप्ताह या उससे अधिक समय में जन्म दिया जाए तो परिणाम बहुत बेहतर होगा। साथ ही सलाह दी है कि गर्भावस्था को दो से तीन सप्ताह के लिए जारी रखा जाए तो मां और बच्चे के स्वास्थ्य की बेहतरी के ठीक होगा। एम्स ने कहा कि मेडिकल टर्मिनेशन आफ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) अधिनियम के अनुसार 24 सप्ताह से अधिक के गर्भधारण का समापन तभी किया जाना है, जब कोई महत्वपूर्ण असामान्यताएं हों। एम्स ने कहा कि यह मामला न तो उचित है और न ही नैतिक क्योंकि भ्रूण बिल्कुल सामान्य है। इससे पहले एम्स के मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट को ध्यान में रखते हुए अदालत ने चार जनवरी को महिला को 29 सप्ताह की गर्भावस्था को समाप्त करने का आदेश दिया था। महिला ने याचिका दायर कर कहा था कि उसके पति की मृत्यु हो चुकी है और वह बच्चा नहीं पैदा करना चाहती। अगर उसे ऐसा करने को कहा गया वह आत्महत्या कर लेगी।

संदर्भ स्रोत: दैनिक जागरण 

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