इलाहाबाद हाईकोर्ट : मृत कर्मचारी की बेटी को अनुकंपा नियुक्ति

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इलाहाबाद हाईकोर्ट : मृत कर्मचारी की बेटी को अनुकंपा नियुक्ति
दी जा सकती है, भले ही बेटा पहले से ही सरकारी कर्मचारी हो 

लखनऊ इलाहाबाद हाइकोर्ट ने कहा है कि यदि मृत कर्मचारी का पति अथवा पत्नी पहले से ही सरकारी कर्मचारी है तो अनुकंपा नियुक्ति नहीं देने की वैधानिक शर्त केवल पति या पत्नी तक ही सीमित है और इसे मृत कर्मचारी के बच्चों तक नहीं बढ़ाया जा सकता। यदि पति या पत्नी नौकरी में नहीं है तो बच्चों को अनुकंपा नियुक्ति पाने का अधिकार होगा। कोर्ट ने कहा पिता की मृत्यु के समय बेटे का सरकारी नौकरी में होना अप्रासंगिक होगा, क्योंकि उसकी कमाई का उपयोग उसके अपने परिवार पत्नी और बच्चों के भरण-पोषण के लिए किया जा सकता है। ऐसे में यदि मां नौकरी में नहीं है तो आश्रित बेटी अनुकंपा नियुक्ति की मांग कर सकती है।

यह आदेश जस्टिस मंजीव शुक्ला ने कुमारी निशा की याचिका पर दिया है। कोर्ट ने कहा कि यदि मृत सरकारी कर्मचारी का जीवित पति या पत्नी किसी सरकारी नौकरी में है तो परिवार के अन्य आश्रित सदस्य अनुकंपा नियुक्ति के हकदार नहीं हैं।

यह है मामला

मामले के अनुसार, याचिकाकर्ता के पिता की प्राथमिक विद्यालय मनिकापुर ब्लॉक बेलघाट जिला गोरखपुर में हेडमास्टर के रूप में सेवारत रहते हुए मृत्यु हो गई। वे अपने पीछे पत्नी (याचिकाकर्ता की मां) दो अविवाहित बेटे और अविवाहित बेटी छोड़ गए। याचिकाकर्ता 75 फीसदी स्थायी रूप से दिव्यांग है और पूरी तरह से अपने पिता की कमाई पर निर्भर थी। 

याचिकाकर्ता ने अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन किया। आवेदन के साथ उसने शपथ पत्र भी दिया कि उसका बड़ा भाई सरकारी नौकरी में है, लेकिन परिवार से अलग रहता है। यह भी कहा गया कि यदि याचिकाकर्ता को उनके पिता की मृत्यु के बदले अनुकंपा नियुक्ति दी जाती है तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं है।

जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी ने खारिज किया था आवेदन 

गोरखपुर के जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी ने याचिकाकर्ता का आवेदन इस आधार पर खारिज कर दिया था कि मृतक का बड़ा बेटा सरकारी कर्मचारी है, इसलिए परिवार पर कोई वित्तीय तनाव नहीं है। इसके अलावा यह कहा गया था कि सबसे बड़ा बेटा सरकारी नौकरी में है, इसलिए परिवार के सदस्य की अनुकंपा नियुक्ति स्वीकार्य नहीं है। न्यायालय ने माना कि सरकार ने जानबूझकर नियम 5 में संशोधन किया, जिससे बेटे को इसमें शामिल न किया जा सके, क्योंकि उसकी कमाई का उपयोग उसके अपने परिवार (पत्नी और बच्चों) के भरण-पोषण में किया जा सकता।

याचिकाकर्ता का दावा खारिज नहीं किया जा सकता

कोर्ट ने कहा कि संशोधन के साथ 4 सितंबर 2000 के सरकारी आदेश के मद्देनजर अनुकंपा नियुक्ति के लिए याचिकाकर्ता का दावा खारिज नहीं किया जा सकता, क्योंकि हलफनामे में विशेष रूप से कहा गया कि भाई सरकारी नौकरी में है और परिवार (मां और भाई-बहन) से अलग रह रहा है। अदालत ने कहा कि रिकॉर्ड पर ऐसी कोई सामग्री नहीं है कि भाई की कमाई परिवार के भरण-पोषण के लिए पर्याप्त है। कोर्ट ने गोरखपुर के जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी का आदेश सही नहीं मानते हुए रद्द कर दिया।

संदर्भ स्रोत : दैनिक जागरण

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