दिल्ली हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि पति-पत्नी द्वारा संयुक्त नाम से खरीदी गई संपत्ति वैवाहिक विवाद होने पर सिर्फ इसलिए पति की नहीं हो सकती कि उसने लोन की किस्तें (ईएमआई) चुकाई है। कोर्ट ने कहा कि ऐसी संपत्ति पर पति-पत्नी दोनों आधे-आधे हिस्से के हकदार हैं।
जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर ने एक वैवाहिक विवाद में पति-पत्नी दोनों की याचिकाओं पर सुनवाई के बाद दिए अंतरिम आदेश में यह व्यवस्था दी। बेंच ने कहा कि जब संपत्ति पति-पत्नी के संयुक्त नाम पर हो तो पति की ओर से लोन चुका कर अकेले स्वामित्व का दावा करना बेनामी अधिनियम की धारा 4 का उल्लंघन है। जब पति-पत्नी विवाह के दौरान संपत्ति अर्जित करते हैं, तो कानून में यह धारणा होती है कि ऐसा अधिग्रहण सामान्य पारिवारिक कोष से किया गया है और दोनों पति-पत्नी ने समान रूप से योगदान दिया है, भले ही उनमें से कोई कमाता हो या नहीं। ऐसी संपत्ति में पति-पत्नी 50% हिस्सेदारी की हकदार है। बैंक में संपत्ति का कर्ज चुकाने के लिए रखी राशि भी इसी अनुपात में बंटेगी।
संयुक्त संपत्ति स्त्रीधन नहीं
बेंच ने पत्नी की यह दलील खारिज कर दी कि विवाह के समय पति-पत्नी की ओर से अर्जित संयुक्त संपत्ति पत्नी के स्त्रीधन का हिस्सा है इसलिए उसे पूरी संपत्ति दी जाए। बेंच ने कहा कि स्त्री धन उन संपत्तियों तक सीमित है, जो उसके माता-पिता, रिश्तेदारों, पति या ससुराल वालों द्वारा विवाह से पहले या बाद में स्वेच्छा से उसे उपहार में दी जाती हैं, और जो सिर्फ उसके स्वामित्व और उपभोग के लिए होती हैं। पति-पत्नी के नाम पर खरीदी गई संयुक्त संपत्ति विशेष रूप से पत्नी को दिया गया उपहार नहीं है, बल्कि यह दोनों पक्षों द्वारा अर्जित संपत्ति है।
सन्दर्भ स्रोत : विभिन्न वेबसाइट
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