दिव्या पटवा : संवेदना से सजी है जिनकी कला की दुनिया 

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दिव्या पटवा : संवेदना से सजी है जिनकी कला की दुनिया 

छाया : स्व संप्रेषित

19 जून 1988 को भोपाल में जन्मीं दिव्या पटवा ने भारतीय समकालीन कला के परिदृश्य में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। वे भले ही मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री स्व. सुंदरलाल पटवा की पोती और पूर्व मंत्री श्री सुरेंद्र पटवा की भतीजी हों, लेकिन उनकी कलात्मक यात्रा पूरी तरह स्वतंत्र, रचनात्मक, और संवेदनशील रही है। परिवार की राजनीतिक विरासत से इतर, एक ऐसी राह जिस पर उन्होंने खुद अपनी पहचान बनाई। दिव्या उन चुनिंदा कलाकारों में से हैं जो न केवल तकनीकी दक्षता के लिए बल्कि विचारशील कलात्मक दृष्टिकोण के लिए भी पहचाने जाते हैं। 

उनके पिता श्री महेंद्र पटवा, ऑटोमोबाइल व्यवसायी और माँ उर्मिला कुशल गृहिणी हैं। दोनों ने अपनी तीन संतानों में सबसे बड़ी बेटी की रचनात्मक अभिव्यक्तियों को हमेशा प्रोत्साहन दिया। एक बड़े, परंपरागत संयुक्त परिवार में पली-बढ़ी दिव्या, अपने पचास से अधिक चचेरे भाई-बहनों के बीच, मिट्टी, रंगों और पशु-पक्षियों की एक अलग ही दुनिया में जीती थीं। वे अपने परिवार की पहली लड़की थीं, जिसने कला को न केवल करियर के रूप में चुना, बल्कि उस रास्ते पर सफलता के साथ अग्रसर भी हुईं।

शिक्षा व प्रशिक्षण

दिव्या की औपचारिक शिक्षा इंदौर के प्रतिष्ठित डेली कॉलेज से शुरू हुई। इसके बाद उन्होंने वडोदरा के महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय से स्नातक (चित्रकला) और स्नातकोत्तर (प्रिंटमेकिंग) की डिग्री प्राप्त की। उन्हें इंग्लैंड की डी मोंटफोर्ट यूनिवर्सिटी, लीसेस्टर De Montfort University, Leicester में छात्र विनिमय कार्यक्रम (अंतर्राष्ट्रीय रेजीडेंसी कार्यक्रम) के लिए चुना गया, जिसने उनके कलात्मक क्षितिज को और विस्तार दिया। इंग्लैंड में बिताये तीन महीने उनके लिए केवल शैक्षणिक अनुभव नहीं थे, बल्कि सांस्कृतिक विविधता और कलात्मक स्वतंत्रता का सीधा साक्षात्कार थे, जिसने उनके अंदर एक नई दृष्टि और गहराई भर दी। भारत लौटने के बाद उन्होंने पारंपरिक तरीकों से हटकर एक ऐसी तकनीक विकसित की जो उनके काम को एक बहुआयामी उपस्थिति देती है। 

तकनीक और माध्यम

दिव्या एक ऐसी कलाकार हैं  जिन्होंने कला के पारंपरिक रास्तों से हटकर अपना रास्ता खुद प्रारंभ में दिव्या ने वुड एनग्रेविंग (Wood Engraving) पर विशेष अभ्यास किया। इसके बाद वे पेंटिंग, एचिंग (Etching), ड्राइ पॉइंट (Drypoint), क्ले, टेक्सटाइल, स्कल्पचर जैसे विविध माध्यमों में भी समान दक्षता के साथ काम करती रही हैं। उनकी कला पारंपरिक तकनीकों के साथ-साथ नवाचार का भी उदाहरण है जहां रेखाएं, बनावट और रंग मिलकर एक ऐसी बहुआयामी उपस्थिति बनाते हैं, जो दर्शक को दृश्य से अधिक अनुभव देती है। 

जानवरों और प्रकृति के साथ अलिखित संवाद

दिव्या की कला में प्रकृति, पशु-पक्षियों और मानवीय हस्तक्षेप के बीच का संघर्ष प्रमुख विषय रहा है। उनका जुड़ाव केवल वैचारिक नहीं, बल्कि आत्मीय है। बचपन से ही उन्हें मूक पशुओं से गहरा लगाव था। वे मानती हैं कि जानवर कुछ कहना चाहते हैं, लेकिन उनकी भाषा को कोई नहीं समझता। उनका यह जुड़ाव सिर्फ विचार तक सीमित नहीं है, बल्कि वह उनके बचपन के उस परिवेश से उपजा है, जहां जानवरों के प्रति गहरी संवेदना और अपनापन था। घर में अनेक पालतू जानवरों के साथ पली-बढ़ी दिव्या के लिए कला केवल रचना नहीं, बल्कि एक आत्मीय संबंध की अभिव्यक्ति है।

कला के ज़रिए प्रतिरोध

दिव्या कला को नए आयाम देने के साथ ही एक सवाल भी उठाती हैं कि क्या हम प्रकृति के साथ संतुलन बना पा रहे हैं? क्या हम जानवरों की दुनिया को उतनी ही जगह दे रहे हैं जितने के वे हकदार है?  उनका हर चित्र किसी न किसी कहानी को बयां करता है. वे कहती हैं, "मुझे लगता है कि जानवर बोल नहीं सकते, इसलिए मैं अपनी कला के माध्यम से उनकी भावनाओं को व्यक्त करती हूं।" 

एक भावनात्मक मोड़: भारत भवन की प्रदर्शनी

भोपाल के भारत भवन में उनकी दूसरी एकल प्रदर्शनी (सोलो शो) उनके लिए  बेहद खास थी। उस समय को याद करते हुए, दिव्या की आँखों में एक खास सी चमक उभर आती है।"वो शो मेरे लिए सिर्फ एक कला-प्रदर्शनी नहीं था," वे कहती हैं, "बल्कि मेरी यात्रा में एक भावनात्मक मोड़ था। उस समय पहली बार मेरे दादा - सुंदरलाल पटवा जी ने मेरा काम देखा था। उनकी आंखों में गर्व और स्नेह की जो चमक मैंने देखी, वो शब्दों में नहीं बयां की जा सकती। मेरे पूरे परिवार ने उस दिन मेरे साथ खड़े होकर मेरी कला को सराहा, वो पल मेरे लिए हमेशा के लिए यादगार बन गया।"

संघर्ष और सामाजिक सोच

दिव्या खुलकर मानती हैं कि लेकिन हर कलाकार की यात्रा केवल प्रशंसा और सफलता की नहीं होती। उसके पीछे संघर्ष के अनगिनत पल छुपे होते हैं। भारत में एक कलाकार का सफर आसान नहीं है। "आज भी बहुत से लोग आर्ट को एक गंभीर पेशा नहीं मानते। दृश्य कला ( Visual art) को आज भी एक 'हॉबी' या 'टाइम पास' समझा जाता है जैसे कि यह कोई ऐसा शौक हो जिसे खाली समय में किया जाये।" वे कहती हैं कि समाज में कलाकारों को वह सम्मान और मूल्य नहीं मिलता जो मिलना चाहिए। लोग अक्सर पूछते हैं ‘अच्छा है, लेकिन आपका असली काम क्या है?’ या फिर कहते हैं, ‘बहुत अच्छा शौक है आपका।’ उन्हें यह समझाना मुश्किल होता है कि कला सिर्फ मेरा शौक नहीं है, ये मेरी पहचान है, मेरा पेशा है, और मेरी आजीविका का माध्यम भी।"वे आगे  कहती हैं "एक कलाकार दिन-रात अपने विचारों, भावनाओं और तकनीक के साथ संघर्ष करता है। हर रचना के पीछे आत्मा की तपिश होती है, मेहनत होती है। फिर भी समाज में इस पेशे को वो गंभीरता नहीं मिलती जो किसी डॉक्टर, इंजीनियर या वकील को मिलती है।"

दिव्या मानती हैं कि सबसे कठिन तब होता है जब लोग कलाकार को समझने की बजाय, उस पर अपनी धारणाएं थोपने लगते हैं। लोग काम के बारे में ऐसे सुझाव देते हैं, जिनमें न कला की समझ होती है, न संवेदनशीलता। यह सब सुनना, सहना  कभी-कभी बहुत ही निराशाजनक होता है।' उनका मानना है : "कला कोई हल्की चीज़ नहीं है। यह सोच बदलनी ज़रूरी है कि 9 से 5 बजे तक की नौकरी ही 'असली काम' है। कला भी एक पेशा है, उतना ही जरूरी और उतना ही मूल्यवान।" 

दिव्या की यह यात्रा सिर्फ उनकी अपनी नहीं है, यह हर उस युवा कलाकार की कहानी है जो सीमित समझ और असंवेदनशील माहौल के बावजूद, अपनी कला की आवाज़ को दुनिया तक पहुँचाने का साहस करता है। दिव्या की यात्रा अभी लंबी है। उनकी कला के रंग गहरे और गहरे तथा विषय और व्यापक होते जा रहे हैं। वे हर चित्र के ज़रिए एक नया सवाल उठाती हैं ....क्या हम मूक प्राणियों को सच में सुन रहे हैं? 

 

उपलब्धियां/सम्मान

•  ‘आर्ट इलस्ट्रेटेड’ के  दिसंबर अंक में कृति प्रकाशित (2019)

• ‘आर्टियुरेका’ मैगजीन में मोलेला टेराकोटा पर लेख (2020)

• ‘उत्सुक’ पुस्तक में लेख प्रकाशित (2020)

• अंतरराष्ट्रीय एक्सचेंज प्रोग्राम (लीसेस्टर, UK) में प्रतिनिधित्व

• ‘Unwinding’ रेजीडेंसी कार्यक्रम की संयोजक- उत्तरायण जसपुर, बड़ौदा (2012/13/14/15/16)

 

पुरस्कार और सम्मान

दिव्या की प्रतिभा को कई महत्वपूर्ण पुरस्कारों से नवाजा गया, जिनमें शामिल हैं:

•  राष्ट्रीय पुरस्कार, दक्षिण मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, नागपुर (2015)

•  राज्य पुरस्कार, मध्य प्रदेश सरकार (2017)

•  एच.के. केजरीवाल युवा कलाकार पुरस्कार, महुआ आर्ट गैलरी बैंगलोर (2018)

•  राष्ट्रीय छात्रवृत्ति, संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार (2013)

•  जूनियर फेलोशिप, भारत सरकार (2018–2019)

• मेरिट अवार्ड, CIMA गैलरी (2019)

 

प्रदर्शनियां

दिव्या की कलाकृतियाँ देशभर के प्रतिष्ठित कला मंचों पर और दीर्घाओं (galleries) में प्रदर्शित हो चुकी हैं। उनकी रचनाएँ न केवल कला प्रेमियों को आकर्षित करती हैं, बल्कि कला समीक्षकों से भी सराहना प्राप्त कर चुकी हैं।कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय ग्रुप शोज़ में उनकी भागीदारी रही है. उनका काम भारत ही नहीं, विदेशों में भी प्रदर्शित और सराहा गया है। कुछ प्रमुख मंच:

एकल प्रदर्शनियां

•  2022 ‘फ्रोज़न इन टाइम’ त्रिवेणी कला संगम-दिल्ली

•  2015 डाइलेमा ऑफ़ द स्पीचलेस, भारत भवन, भोपाल

•  2012 अंडर लाइंग एनिमल्स, डी मोंटफ़र्ट यूनिवर्सिटी, लेसटर,इंग्लैंड

समूह प्रदर्शनियां

•  2024/2025 ‘नभ स्पर्श’, एनजीएमए- मुंबई

•  2025 ‘फॉर्म्स एंड फीगर’, डिवाइन आर्ट गैलरी- दिल्ली

•  2024 ‘मोनालिसा’ कलाग्राम-पुणे

•  2024 ‘चारुबासोना’, जोगेन चौधरी सेंटर फॉर आर्ट्स-कोलकाता

•  2023 निपुण गैलरी- मुंबई

•  2022 रज़ा पर्व, एलायंस फ्रांसेज डे-भोपाल

•  2020/2022  भारत भवन, भोपाल

•  2022 रंग अमीर, प्रीतमलाल दुआ गैलरी-इंदौर

•  2021 धूमिमल गैलरी- दिल्ली

•  2021 यंग क्रिएटिव माइंड, दिल्ली आर्ट सोसाइटी, (वर्चुअल शो)

•  2020 ‘थ्रू द लुकिंग ग्लास’, कलाकृति आर्ट गैलरी-हैदराबाद (वर्चुअल शो)

•  2020 ‘सोलौकीज़’ अनंत आर्ट गैलरी-दिल्ली वर्चुअल शो

•  2019 20TH INTERNATIONAL PRINT BIENNIAL VARNA, BULGARIA

•  2019 SECOND INTERNATIONAL PRINT BIENNALE YEREVAN, ARMAΝΙΑ

•  2019 WORDS OF SILENCE, TAO ART GALLERY, MUMBAI

•  2019 एआईएसी स्टेट एग्जीबिशन-हैदराबाद

•  2019 ‘वर्ड्स ऑफ़ साइलेंस’, ताओ आर्ट गैलरी-मुंबई

•  2019 ‘इन एंड आउट’, द गैलरी डीएमयू- लेसटर, इंग्लैंड

•  2019 ‘महुआ’ द आर्ट गैलरी-बैंगलोर

•  2018 टोक्यो इंटरनेशनल मिनी-प्रिंट त्रिवार्षिक, तामा आर्ट यूनिवर्सिटी-जापान          

•  2018 1ST INTERNATIONAL PRINT BIENNALE INDIA, LALIT KALA AKADEMI, DELHI

•  2017 ‘गाफ’, गोवा संग्रहालय- गोवा

•  2017 अंतर्राष्ट्रीय प्रिंट द्विवार्षिक वर्ण 2017 बुल्गारिया

•  2017 जहाँगीर आर्ट गैलरी, मुंबई

•  2016 आर्ट मार्ट-2016, खजुराहो

•  2013 रेड अर्थ गैलरी, बड़ौदा

•  2012 फायरबग्स लीसेस्टर, इंग्लैंड

रेजीडेंसी, कार्यशालाएं और शिविर

रेजीडेंसी

•  2024 एमओजी, गोवा संग्रहालय

•  2021 विशाखा, एक मल्टीमीडिया कला रेजीडेंसी, जयपुर

•  2020 कलाकृति कला रेजीडेंसी, हैदराबाद

•  2012 डी.एम. यूनिवर्सिटी –लेसटर , इंग्लैंड

•  2012 ‘अनवाइंडिंग’ उत्तरायण, जसपुर, बड़ौदा

•  2020 कलाकृति आर्ट रेजीडेंसी, हैदराबाद

चित्रकला शिविर

•  2021 रंग मांडू, रज़ा फाउंडेशन द्वारा चित्रकला शिविर, मांडू

•  2021 भारत भवन, चित्रकला शिविर, भोपाल

•  2019 टैगोर अंतर्राष्ट्रीय साहित्य एवं कला महोत्सव, भोपाल

•  2019 सातवां कला सम्मेलन, आईटीएम विश्वविद्यालय, ग्वालियर में चित्रकला शिविर

•  2016 राष्ट्रीय मुद्रण शिविर, ललित कला अकादमी, शांतिनिकेतन

•  2016 उत्तरायण जसपुर, बड़ौदा में अंतर्राष्ट्रीय प्रिंट मेकिंग कार्यशाला

•  2016 उत्तरायण जसपुर, बड़ौदा में अनवाइंडिंग समन्वयक

•  2016 जापानी वुडब्लॉक प्रिंट, ग्राफिक कला विभाग, ललित कला संकाय, बड़ौदा

•  2015 उत्तरायण जसपुर, बड़ौदा में अनवाइंडिंग समन्वयक

•  2014 उत्तरायण जसपुर, बड़ौदा में अनवाइंडिंग समन्वयक

•  2014 रोका प्रिंटमेकिंग कैंप, बनयान हार्ट्स स्टूडियो, हैदराबाद

•  2013 उत्तरायण जसपुर, बड़ौदा में अनवाइंडिंग समन्वयक

•  2011 प्रिंट मेकिंग कार्यशाला, उत्तरायण फाउंडेशन,  जसपुर , बड़ौदा

•  2010 पेपर मेकिंग कार्यशाला-चित्रकला विभाग, ललित कला संकाय, बड़ौदा

•  2019 सातवां कला सम्मेलन, आईटीएम विश्वविद्यालय, ग्वालियर

•  2016 नेशनल प्रिंट मेकिंग वर्कशॉप उत्तरायण जसपुर, बड़ौदा

•  2019 टैगोर अंतर्राष्ट्रीय साहित्य एवं कला महोत्सव, भोपाल

•  2016 अंतर्राष्ट्रीय प्रिंट मेकिंग कार्यशाला, उत्तरायण जसपुर, बड़ौदा  

सन्दर्भ स्रोत : दिव्या पटवा  से सीमा चौबे की बातचीत पर आधारित 

© मीडियाटिक

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