जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट  : दो वयस्कों का एक-दूसरे को

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जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट  : दो वयस्कों का एक-दूसरे को
विवाह के लिए चुनना संवैधानिक अधिकार

एक महत्वपूर्ण निर्णय में, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने यह दोहराया कि दो वयस्कों की आपसी सहमति से विवाह करना एक संवैधानिक अधिकार है, जिसके लिए परिवार, समुदाय या जाति की मंजूरी आवश्यक नहीं है। यह निर्णय न्यायमूर्ति वसीम सादिक नरगल ने उस याचिका की सुनवाई के दौरान दिया, जिसे एक विवाहित जोड़े ने पुलिस सुरक्षा के लिए दायर किया था। याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता दिनेश शर्मा ने पक्ष रखा और बताया कि दोनों ने 26 मार्च 2025 को हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार विवाह किया और वे वयस्क हैं तथा अपनी मर्जी से शादी की है। उन्होंने अपने परिवारों से जान को खतरा और उत्पीड़न की आशंका जताई थी क्योंकि परिवार उनके विवाह के खिलाफ था।

कोर्ट ने कहा: “जब दो वयस्क, आपसी सहमति से, एक-दूसरे को जीवनसाथी के रूप में चुनते हैं, तो यह उनके चुनाव की अभिव्यक्ति होती है जिसे संविधान के अनुच्छेद 19 और 21 के अंतर्गत मान्यता प्राप्त है… परिवार, समुदाय या जाति की सहमति आवश्यक नहीं है।” 

न्यायमूर्ति नरगल ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा में संवैधानिक न्यायालयों की भूमिका पर बल देते हुए कहा कि “संविधानिक न्यायालयों का यह कर्तव्य है कि वे ‘सेंटिनल ऑन क्वि विवे’ के रूप में व्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करें, क्योंकि एक व्यक्ति का गरिमापूर्ण अस्तित्व स्वतंत्रता से अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है।”  कोर्ट ने यह भी कहा कि अपने जीवनसाथी को चुनने की स्वतंत्रता मानव गरिमा का अभिन्न हिस्सा है व्यक्ति की पसंद गरिमा का अनिवार्य हिस्सा है… किसी को भी इस पसंद की प्राप्ति में हस्तक्षेप करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। न्यायमूर्ति नरगल ने कहा कि “जब दो वयस्क अपनी इच्छा से विवाह करते हैं, तो वे अपना रास्ता चुनते हैं… और इस अधिकार का कोई भी उल्लंघन एक संवैधानिक उल्लंघन होगा।”

कोर्ट ने अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे याचिकाकर्ताओं की उम्र और विवाह की वैधता की जांच करें। यदि सत्यापित होता है, तो उन्हें पर्याप्त सुरक्षा प्रदान की जाए और यदि कोई आपराधिक जांच लंबित है तो वह कानून के अनुसार जारी रह सकती है, बशर्ते वह जोड़े की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप न करे। कोर्ट ने इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट के लता सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और शक्ति वाहिनी बनाम भारत संघ के फैसलों का हवाला भी दिया। हालांकि, कोर्ट ने स्पष्ट किया यह आदेश याचिकाकर्ताओं के विवाह की वैधता या उनकी वयस्कता की पुष्टि नहीं करता, यह कानून के अनुसार जांच का विषय है।” 

सन्दर्भ स्रोत : विभिन्न वेबसाइट

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