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भोपाल। राजधानी स्थित बाबूलाल गौर शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय की रितिका ठाकुर को महाविद्यालय की नशामुक्ति की ब्रांड एम्बेसेडर बनाया गया है। रितिका ने अपने प्रयास से अपने पिता की शराब और गुटखे की लत को छुड़ा दिया। यह बात संज्ञान में आने पर महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. संजय जैन और एनसीसी ऑफिसर डॉ. वर्षा चौहान ने रितिका को सम्मानित कर महाविद्यालय में नशामुक्ति का ब्रांड एम्बेसेडर घोषित किया, जिससे अन्य छात्र-छात्राएं ऐसे रचनात्मक कार्यों को करने की प्रेरणा पाकर शिक्षित युवा की सही भूमिका निभा सकें।
पेशे से ट्रक ड्राइवर रितिका के पिता शराब, सिगरेट और गुटखा के आदी रहे
दरअसल कॉलेज में नशामुक्ति पर आधारित संगोष्ठी के आयोजन में भोपाल के निकटस्थ ग्राम छावनी पठार निवासी रितिका ठाकुर जो कॉलेज में बीए द्वतीय वर्ष की छात्रा हैं, से जब पूछा गया कि शिक्षित युवा होने के नाते हम कैसे अपनी भूमिका का निर्वाह कर सकते हैं। तब एनसीसी की सक्रिय कैडेट रितिका ने बताया कि उसके पिता पेशे से ट्रक ड्राईवर हैं। उन्हें भारत में सुदूर क्षेत्रों तक ट्रक लेकर जाना होता है। वे शराब, सिगरेट और गुटखा के आदी रहे हैं। रितिका को जब उनके सिगरेट पीने से एलर्जी होने लगी तो उसने अपने पापा से ऐसा न करने का आग्रह किया। पापा के ना-नुकुर करने पर रितिका ने हार नहीं मानी। वह विकल्प के रूप में इसके लिए बादाम और चने उन्हें देने लगी, जिससे अब उन्होंने गुटखा खाना बंद कर दिया है। प्रतिदिन पिता के ड्राइविंग पर जाने से पहले आज भी उन्हें बादाम और चने रखना रितिका नहीं भूलती।
अनशन किया तो पिता ने बंद किया व्यसन
इसी तरह प्रतिदिन पिता के साथ एक ही थाली में खाना खाने वाली रितिका को जब खाना खाते समय उनके मुंह से शराब की महक आने लगी तो उसने न केवल साथ खाना ही छोड़ दिया, बल्कि उस दिन खाने से अनशन रखना शुरू कर दिया, जिससे आहत होकर पिता ने घर में शराब या किसी भी प्रकार का व्यसन बंद कर दिया।
रितिका का एक बड़ा भाई है जो पिता के व्यवसाय में सहयोग करता है, लेकिन वो इन सब व्यसनों से दूर है। छोटा भाई आठवी का छात्र है पिता उससे सिगरेट, गुटका आदि मंगवाया करते थे लेकिन समझ आने पर अब उसने पिता के लिए यह सब लाना बंद कर दिया है। रितिका की मां ने भी इन व्यसनों को छुड़ाने का प्रयास किया, लेकिन उनके मायके के लोगो द्वारा भी यह सब सेवन किये जाने के कारण वे सफल न हो सकी, लेकिन अपनी बेटी से बेहद प्यार करने वाले महेंद्र सिंह ने बेटी से हार मान ली और नशे से दूर हो गए।
बेटी की निरंतर देखभाल, हठ और भावनात्मक मजबूती ने आखिरकार उनके प्रतिरोध को पिघला दिया, और अब वे सचमुच अपनी बेटी को एक फ़रिश्ता मानते हैं।
सन्दर्भ स्रोत : विभिन्न समाचार पत्र और वेबसाइट
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