सुप्रीम कोर्ट ने आदिवासी महिला को पैतृक संपत्ति में बराबर की हिस्सेदारी का हकदार माना। संपत्ति के बंटवारे से जुड़ी एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महिला उत्तराधिकारी को संपत्ति में अधिकार देने से इनकार करने से लैंगिक विभाजन और भेदभाव बढ़ता है। इसे कानून के जरिये समाप्त किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जनजाति की महिला के बच्चों की ओर से नाना की संपत्ति के बंटवारे की मांग को लेकर दायर अपील पर सुनवाई की। जिसे ट्रायल कोर्ट और प्रथम अपीलीय अदालत ने खारिज कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट में न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कहा कि कानून की तरह रीति-रिवाज भी समय में अटके नहीं रह सकते। दूसरों को रीति-रिवाजों की शरण लेने या उनके अधिकार से वंचित करने के लिए उनके पीछे छिपने की अनुमति नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने कहा कि न्याय, समानता और अच्छे विवेक के सिद्धांत को लागू करते समय न्यायालयों को इन बातों का ध्यान रखना होगा। इस सिद्धांत को प्रासंगिक रूप से लागू करना होगा। यदि अधीनस्थ न्यायालय के विचारों को बरकरार रखा जाता है, तो महिला और उसके उत्तराधिकारियों को विरासत के लिए सकारात्मक दावे के अभाव के आधार पर संपत्ति के अधिकार से वंचित कर दिया जाएगा।
शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा कि इस मुद्दे में संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता) का उल्लंघन भी हो रहा है। ऐसा लगता है कि केवल पुरुषों को ही अपने पूर्वजों की संपत्ति पर उत्तराधिकार दिया जा सकता है, महिलाओं को नहीं। पीठ ने कहा कि अनुच्छेद 15(1) में कहा गया है कि राज्य किसी भी व्यक्ति के साथ धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव नहीं करेगा। यह अनुच्छेद 38 और 46 के साथ संविधान के सामूहिक लोकाचार की ओर इशारा करता है। इसके मुताबिक महिलाओं के साथ कोई भेदभाव न हो।
शीर्ष अदालत ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 14 के व्यापक प्रभाव के साथ अपीलकर्ता-वादी महिला के कानूनी उत्तराधिकारी होने के नाते संपत्ति में समान हिस्सेदारी के हकदार हैं। इससे पहले ट्रायल कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा था कि अनुसूचित जनजाति की महिला का अपने पिता की संपत्ति में कोई अधिकार नहीं है। क्योंकि ऐसा कोई साक्ष्य नहीं दिया गया है जिससे पता चले कि महिला उत्तराधिकारी के बच्चे भी संपत्ति के हकदार हैं।
सन्दर्भ स्रोत : विभिन्न वेबसाइट
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