आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा है कि पति की बहनों का भाभी को मां न बन पाने के लिए ताना मारना क्रूरता नहीं है। इसे भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए या दहेज निषेध अधिनियम 1961 की धारा 3 और 4 के तहत केस जारी रखने के लिए पर्याप्त आधार नहीं माना जा सकता।
जस्टिस हरिनाथ एन ने महिला की याचिका खारिज करते हुए कहा कि आरोपी याचिकाकर्ता के घर से दूर रहती थीं। लेकिन जब भी वे भाई के घर आती तो भाभी को ताना मारती थीं कि वह मां नहीं बन सकती। कोर्ट ने कहा बिना किसी विशेष विवरण के लगाए गए आरोप कानून की जांच में टिक नहीं सकते। क्योंकि इनसे यह साबित नहीं होता कि ये कब और कहां लगाए गए थे।
कोर्ट बोला- ताना मारने के अलावा और कोई आरोप नहीं
कोर्ट ने कहा कि महिला ने अपनी शिकायत में पति की बहनों के खिलाफ कोई विशेष आरोप नहीं है, सिवाय इसके कि उन्होंने महिला को मां न बन पाने के लिए ताना मारा था। यह ऐसा मामला है, जहां आरोपी के रिश्तेदारों को केवल पहले आरोपी के खिलाफ बदला लेने के लिए फंसाया गया है। लेकिन इसे दहेज प्रताड़ना का मामला नहीं माना जा सकता है। इसलिए याचिका खारिज की जाती है।
क्या है IPC की धारा 498A-पति या ससुराल पक्ष से क्रूरता
भारतीय दंड संहिता की यह धारा पति या उसके रिश्तेदारों की तरफ से विवाहिता महिला के साथ क्रूरता करने से जुड़ी है। यदि किसी विवाहित महिला को शारीरिक या मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है या दहेज की मांग के लिए उत्पीड़न किया जाता है, तब यह धारा लागू होती है। यह गैर-जमानती अपराध की कैटेगरी में आता है। आरोप साबित होने पर 3 साल की कैद और जुर्माना लगाया जा सकता है।
सन्दर्भ स्रोत : विभिन्न वेबसाइट
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