संजू जैन

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संजू जैन

छाया: संजू जैन के फेसबुक अकाउंट से

चित्रकार 

सीमा चौबे

पिछले साढ़े तीन दशकों से कला जगत में सक्रिय चित्रकार संजू जैन का जन्म होशंगाबाद जिले के एक छोटे से गांव आरी में श्री केवल जैन और श्रीमती विद्या देवी के घर में हुआ। किराने के व्यापार से जुड़े मध्यमवर्गीय परिवार की इस सदस्य का बचपन ग्रामीण परिवेश में बीता। भाई-बहनों में छठे नम्बर की संतान संजू को बचपन से ही गाँव के मिट्टी के घर बहुत प्रिय थे, लेकिन उनका अपना घर पक्का बना हुआ था, इसीलिए मिट्टी की सौंधी महक उन्हें उनके दोस्तों के घर तक खींच ले जाती। घर के पास ही एक कुम्हार के घर तरह-तरह के बर्तन और अन्य सामान बनाने की विभिन्न प्रक्रियाओं को बड़े ही कौतुहल और ध्यान से देखतीं। उन वस्तुओं की बनावट और रंग उन्हें हमेशा रिझाते रहे। गाँव के जीवन में रची बसी प्रकृति को उन्होंने अपने मन में ऐसा समाहित किया कि उन्हीं को कागज़ पर उकेरने की कला में वे निपुण हो गई और इसी कला को अपना जीवन बना लिया। संजू जब महज 5 साल की थीं, तब उनके सिर से पिता का साया उठ गया। बेहद मुश्किल हालात में उनकी मां ने बच्चों की परवरिश की। गांव में पांचवी तक ही स्कूल था, इसीलिए आगे की शिक्षा के लिए संजू को इंदौर भेजा गया। यहां उनका दाखिला शारदा कन्या विद्यालय स्कूल में करवा दिया गया और रहने की व्यवस्था जैन छात्रावास में की गई। यहां नियमों के बंधन तो थे और छोटे से गांव से सीधे एक बड़े शहर में आकर अपने आपको ढालने की परेशानियां भी थीं, लेकिन यहाँ उड़ने के लिए खुला आसमान भी मिला। वे पढ़ाई के साथ गाँव से अपने साथ लाई स्मृतियों को कागज पर उकेरती रहतीं और इस तरह उन्होंने अपने बचपन के सपने को जीवंत बनाए रखा।  


स्कूली शिक्षा के बाद कॉलेज में इस उम्मीद से आर्ट विषय लिया कि यहां डिग्री मिलने के साथ-साथ हुनर में भी निखार आयेगा, लेकिन यहां उन्हें कुछ ख़ास सीखने को नहीं मिला। वर्ष 1990 में उन्होंने पेंटिंग विषय के साथ न्यू गर्ल्स डिग्री कॉलेज से एम.ए. किया, जिसके अंतिम वर्ष में उज्जैन में आयोजित कालिदास समारोह के लिए भेजी उनकी कलाकृति को राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। इससे उनके करियर को नई दिशा और हौसला मिला। इसी बीच ललितपुर निवासी और स्टेट बैंक ऑफ इंडिया टीकमगढ़ में कार्यरत  श्री मदन किशोर जैन से वर्ष 1991 में उनका विवाह हो गया। दूसरी लड़कियों की तरह संजू अन्य अपने साथ साज-श्रृंगार का सामान नहीं, बल्कि एक अटैची भरकर रंग और कूचियाँ साथ लेकर गईं। एक महीने बाद ही उनके पति का तबादला भोपाल हो गया। चित्रकारी के प्रति संजू के लगाव को महसूस करते हुए उनके पति ने न सिर्फ उन्हें अपने शौक को बरक़रार रखने दिया,  बल्कि उन्हें नौकरी करने के लिए प्रोत्साहित किया। थोड़े ही प्रयासों से संजू को भोपाल के सेंट मैरी कॉन्वेंट स्कूल में आर्ट टीचर की नौकरी मिल गई, लेकिन संजू यह बात अच्छी तरह जानती थीं कि केवल डिग्री हासिल करने से आर्ट नहीं आता, इसके लिए उस विषय में उन्हें पारंगत होना होगा। अब उन्होंने नये सिरे से स्वयं को गढ़ने के प्रयास शुरू किये और फिर गुरु की खोज शुरू हुई। लक्ष्मण भांड  के रूप में उन्हें ऐसे गुरु मिले जिनसे उन्होंने न सिर्फ पेंटिंग का क ख ग सीखा, बल्कि तकनीकी बारीकियां भी सीखीं।

गुरूजी ने ही संजू को आगे के करियर के लिए भारत भवन का रास्ता भी दिखाया और युसूफ भाई से मिलवाया। वर्ष 1995 में उन्होंने भारत भवन जाना शुरू किया। नई नौकरी, परिवार-समाज और मातृत्व की जिम्मेदारियों के साथ ही सपने और संघर्ष दोनों बढ़ने लगे। सुबह स्कूल जातीं, वहां से भारत भवन पहुंचतीं। वे एक साल तक भारत भवन जाती रहीं और वहां केवल आर्ट गैलरी का चक्कर लगाकर घर वापस आ जातीं। उन्हें यह पता ही नहीं था कि यहां कोई वर्कशॉप भी है, जहाँ अभ्यास किया जा सकता है। लेकिन यह जानकारी मिलने पर जब संजू वहां पहुँची तो देखा कि बड़े-बड़े संस्थानों से आये हुए बच्चे यहाँ काम कर रहे हैं। संजू बताती है- मैं उम्र में उनसे बड़ी ज़रूर थी लेकिन कला के क्षेत्र में नौसीखिया। शुरू-शुरू में लोग मुझ पर हंसते लेकिन बाद में सब सामान्य होने लगा। भारत भवन में उन्हें वरिष्ठ चित्रकारों के सानिध्य में काफ़ी कुछ सीखने को मिला। यहीं एम.एफ. हुसैन और ऱजा साहब जैसे चित्रकारों से उनकी मुलाक़ात हुई। यहां प्रसिद्ध कलाकारों के मार्गदर्शन में कला और शिल्प का स्वाद विकसित किया। ग्राफिक्स स्टूडियो में जब संजू ने पहली बार अनवर भाई को एब्सट्रेक्ट पेंटिंग बनाते देखा तो उन्हें महसूस हुआ कि अभी तो उन्हें काफी कुछ सीखना है। उनसे प्रेरित होकर वे और अधिक लगन से काम करने लगीं। धीरे-धीरे दुनिया के दूसरे हिस्सों में फैली कलाओं की समझ बढ़ने लगी। इसी बीच विधानसभा के लिए भारत भवन में एक बड़ा कैम्प हुआ, जहाँ मंजीत बाबा, जयश्री जैसे देश के अनेक नामी-गिरामी कलाकार जुटे। संजू के लिए यह सुखद क्षण था क्यूंकि अब तक जिन कलाकारों को केवल किताबों और अख़बारों में ही पढ़ा था, उनके काम को करीब से समझने, उनके साथ काम करने और सीखने का मौक़ा मिला। उनसे मिली डांट और प्रेरणा से काम करने का एक अलग ही जुनून पैदा हुआ। भारत भवन में समय-समय पर लगने वाले शिविरों में वरिष्ठ कलाकारों का मार्गदर्शन मिलता रहा और स्वयं का काम दिखाने का अवसर भी।


भारत भवन में काम करते हुए, उन्होंने अनेक चित्रकला शिविरों में भाग लिया। वर्ष 1994 में पहली बार एक सामूहिक प्रदर्शनी - जो दिल्ली के ललित कला अकादमी में हुई, संजू के लिए महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई। नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के डायरेक्टर इब्राहिम अल्काजी साहब इस शो में पधारे उन्होंने कुछ कलाकारों सहित संजू को आर्ट हेरिटेज आने का न्यौता दिया। काम के सिलसिले में पहली बार घर से निकली संजू के जीवन की यह पहली आर्ट गैलरी थी। अल्काज़ी साहब से मुलाक़ात के बाद उनके व्यक्तित्व ने संजू को इतना प्रभावित किया कि संजू जब भी दिल्ली जाती अपनी पेंटिंग अल्काज़ी साहब को जरूर दिखाती, भले ही इसके लिए उन्हें घंटों इंतज़ार करना पड़ता। इस तरह इंतज़ार करते देख लोग उनसे कहते भी कि अल्काज़ी ऐसे काम नहीं देखते, लेकिन संजू बैठी रहतीं। देर से ही सही, लेकिन अल्काजी ने पेंटिंग देखने के लिए कभी मना नहीं किया। जब उन्होंने पहली बार संजू की पेंटिंग देखी तो कहा- ‘जब मुझे लगेगा मैं तुम्हारा शो करूंगा’। संजू ने भी हार नहीं मानी और जब भी दिल्ली जाती उन्हें पेंटिंग अवश्य दिखा कर आती, वापस आने के कुछ दिनों बाद अल्काजी साहब ढेरों सवालों के साथ चेक भी भेजते।  

इन्ही सबके बीच रज़ा साहब भी भारत भवन में आते और सभी कलाकारों का काम देखते, उन्हें प्रोत्साहित करते उनकी कला की सराहना करते उनकी पेंटिंग्स खरीदते। संजू रज़ा साहब के प्रोत्साहन और मार्गदर्शन के लिए साल भर उनके भारत भवन आने का इंतज़ार करती। संजू को भारतीय चित्रकला के त्रिमूर्ति में से एक रज़ा साहब के साथ-साथ अल्काजी का मार्गदर्शन और प्रोत्साहन मिलता रहा। इन दोनों महान हस्तियों ने संजू के काम को सराहा ही नहीं, बल्कि उनकी कला दृष्टि को भी विकसित किया। उन्होंने ही हौसला और विश्वास दिया कि आप जो कर रही हैं, वो ही अनुपम है। बकौल संजू इन दोनों शख्सियतों का आशीर्वाद मेरी कूची और रंग में समाया हुआ है। वे कहती हैं - रज़ा साहब की एक बात मैं कभी नहीं भूलती। उन्होंने मेरा काम देखने के बाद मुझसे कहा था ‘तुम्हारे अंदर जो कला का बीज है, वो एक दिन वृक्ष बनेगा। बस, अपने आप पर पूरा विश्वास रखना। चाहे लोग तुम्हारे काम को पसंद करें या न करें, तुम अपना काम करते रहना। वर्ष 2007 में अल्काज़ी साहब ने संजू का पहला सोलो ग्रुप किया, जिसका उद्घाटन रज़ा साहब ने किया। यह उनके जीवन का सबसे सुखद और बेशकीमती पल था। दोनों ने उनके काम की सराहना की, पेंटिंग खरीदी और अपने निजी संग्रह में रखी।

यह बात सौ फीसदी सच है कि किसी भी कला के नैसर्गिक गुण जन्मजात ही होते हैं। परिवेश का प्रभाव हमारे विचारों और भावनाओं पर भी दिखाई देता है, कुछ ऐसा ही प्रभाव वरिष्ठ युवा चित्रकार संजू जैन के कृतित्व में दिखाई देता है। संजू की कला में उस देहाती मन की गहरी छाप है। उनकी पहचान टेक्सचर वर्क से है, उन्हें मिक्स मीडियम में काम करना अच्छा लगता है। उनके अधिकांश: कैनवास में टेक्सचर की बहुलता है, जो उनके ग्रामीण परिवेश से आई है। उन्होंने प्राकृतिक रंगों के संयोजन के साथ मिक्स मीडियम में अपनी चित्रात्मक भाषा को विशिष्ट रूप से विकसित किया है। संजू सहज और सरल ढंग से अपने चित्रों में अपने भाव अभिव्यक्त करती हैं। वे अपने आसपास के सौन्दर्य और लोगों की भावनाओं को आसानी से समझते हुए चित्रों में उकेरने में माहिर हैं। उनके चित्रों को देख सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि एक चित्रकार कैसे लोगों की भावनाओं से सीधे जुड़ जाता है। संजू के बनाए चित्रों में आम आदमी की जरूरतों और जीवन देखने को मिलता है। उन्होंने अनेक ऐसे सब्सट्रेक्ट बनाए हैं, जो सीधे जनमानस से जुड़े हुए हैं।

देश विदेश में संजू की अब तक 16 से अधिक एकल प्रदर्शनियां आयोजित हो चुकी हैं और इतने ही प्रतिष्ठित पुरस्कार और सम्मान मिले हैं। बड़े शहरों में कई सोलो-ग्रुप एग्जीबिशन के अलावा ऑनलाइन भागीदारी तथा राज्य स्तरीय पुरस्कार भी कामयाबी की झोली में आए।



प्रदर्शनियां - उनकी पहली एकल प्रदर्शनी अहमदाबाद और पहली समूह प्रदर्शनी दिल्ली में प्रदर्शित हुई। तब से इनकी कला यात्रा अनवरत जारी है।

एकल प्रदर्शनियां- कंटेम्पररी आर्ट गैलरी – अहमदाबाद,  जहाँगीर आर्ट गैलरी-मुंबई,  फर्ट एंड सोल- दिल्ली, चेन्नई, हैदराबाद सहित कई नगरों में लगी और चर्चित रहीं।

समूह प्रदर्शनियां- एमएस भांड कला प्रदर्शनी-भोपाल, ललित कला अकादमी-नई दिल्ली, लोक एवं आदिवासी कला अकादमी-भोपाल, सन आर्ट गैलरी-भोपाल, स्वराज को संबोधन, आयोजक : स्वराज कला अकादमी-भोपाल, जहांनुमा आर्ट गैलरी-भोपाल, ‘समवेत’ आयोजक: स्वराज भवन, क्यूबा और मप्र शासन, छ: स्त्री कलाकारों की कला प्रदर्शनी, नई दिल्ली तथा नेहरू सेंटर-मुंबई, बैंक्वेट हॉल संसद भवन-नई दिल्ली, तोओ ताओ गैलरी-मुंबई, भारत भवन, आर्टिस्ट ललित कला अकादमी-नई दिल्ली, कृष्णा आर्ट गैलरी-कोलकाता एवं आर्ट अलाइव-नई दिल्ली में उनके चित्र मन मोह चुके हैं।

अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनियां- ब्लू तितलियों, गैलरी स्टूडियो 16 -टेक्सास, यूएसए (2011), नेहरू कला केंद्र- लंदन, (प्राकृत कला, चेन्नई द्वारा 2011), खोडनका राज्य प्रदर्शनी गैलरी-लूबचेंको, मास्को (2012), दुबई, ग्रुप शो (2015), स्पून आर्ट शो आर्ट एशिया किनटेक्स प्रदर्शनी केंद्र 1 -सियोल, साउथ कोरिया (2018), अंतर्राष्ट्रीय मेला - इज़मिर (तुर्की), (2019) , आर्ट एग्जीबिशन जॉर्डन, सिंगापुर न्यूयार्क आदि देशों में चित्र प्रदर्शनियां लग चुकी हैं।

चित्र संग्रह- अवदान, त्रिवेणी संग्रहालय-उज्जैन, मप्र., विधानसभा-भोपाल, एआईएफएसीएस (आईफैक्स) -नई दिल्ली, पुरातत्व विभाग-मप्र., राष्ट्रीय ललित कला अकादमी-भुवनेश्वर, ललित कला अकादमी-कोच्चि, ललित कला अकादमी-नई दिल्ली रज़ा फाउंडेशन-नई दिल्ली आदि स्थानों सहित विदेश में उनकी कलाकृतियां संग्रहित हैं।

भागीदारी- राज्य पुरस्कार प्रदर्शनी-भिलाई, मप्र. कला अकादमी-ग्वालियर, राज्य प्रदर्शनी-भोपाल, रज़ा पुरस्कार प्रदर्शनी-भोपाल, 106वीं अखिल भारतीय प्रदर्शनी बॉम्बे आर्ट सोसायटी-मुंबई, अखिल भारतीय दक्षिण मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र-नागपुर, राजस्थान का अखिल भारतीय कला द्विवार्षिक, तीसरी अखिल भारतीय लोकमान्य तिलक प्रदर्शनी-पुणे, 5वीं अखिल भारतीय कैम्लिन प्रदर्शनी-मुंबई, कला, कर्नाटक ललित कला अकादमी -बेंगलुरु की राष्ट्रीय प्रदर्शनी सहित देश-विदेश की प्रदर्शनियों में भागीदारी।

उपलब्धियां/सम्मान

• इकतारा, साइकिल, चकमक आदि पुस्तकों में चित्रों का प्रकाशन

• मप्र. सरकार द्वारा अखिल भारतीय कालिदास पुरस्कार - उज्जैन (1989)

• संस्कार भारती पुरस्कार- भोपाल (1996)

• मप्र. सरकार द्वारा रज़ा पुरस्कार (1998)

• सीसीआरटी की सीनियर फेलोशिप (2019)

• स्टेट अवार्ड मप्र (2001)

• अखिल भारतीय लोकमान्य तिलक पुरस्कार-पुणे (2002)

• अखिल भारतीय कला अकादमी पुरस्कार-शिमला (2002)

• 68वाँ इंडियन एकेडमी ऑफ फाइन आर्ट अवार्ड-अमृतसर (पंजाब-2002)

• 6वाँ अखिल भारतीय  कैम्लिन पुरस्कार-मुंबई (2003)

• ऑल इंडिया रज़ा फाउंडेशन पुरस्कार-नई दिल्ली (2006)

• सीनियर फैलोशिप भारत सरकार-नई दिल्ली (2020 )

• ग्लोबल ह्यूमन राइट्स फाउंडेशन द्वारा एब्सट्रेक्ट पेंटिंग के लिए इंटरनेशनल प्रेस्टीजियस अवार्ड (2022)

• फाइन आर्ट काउन्सिल द्वारा ब्रिलियंट आर्ट अवार्ड, मुंबई  (2022)

• सहित अनेक सम्मान।

पत्नी, बहू और मां होने के नाते पारिवारिक दायित्व निभाते हुए कभी-कभी उन्हें कूची और रंगों से दूर भी रहना पड़ा। संजू, जिसे पेंटिंग किये बिना अच्छी नींद नहीं आती,  उनके लिए यह समय बड़ा कठिन होता था, लेकिन उन्होंने परिस्थितियों से तालमेल बनाते हुए अपना काम जारी रखा। समकालीन कला के क्षेत्र में संजू एक महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। वर्तमान में संजू चित्रकर्म को नई दिशा देने हेतु निरंतर प्रयासरत हैं। चित्रकला में रूचि रखने वाले बच्चों के बीच वे काफी लोकप्रिय हैं। वे स्थानीय रूप से सहज उपलब्ध सामग्री से खिलौने और शिल्प बनाने के लिए बच्चों को प्रोत्साहित करती हैं। उनके बेटे आयुष गुड़गांव में कार्यरत हैं और मानस मुंबई में रहकर पढ़ाई कर रहा है।

सन्दर्भ स्रोत : संजू जैन  से सीमा चौबे की बातचीत पर आधारित 

© मीडियाटिक

Comments

  1. Dr.Indira Agrawal 18 Dec, 2022

    Very nice

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