बाल मनोविज्ञान को कहानी में उकेर देतीं हैं मालती बसंत

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बाल मनोविज्ञान को कहानी में उकेर देतीं हैं मालती बसंत

छाया : मालती बसंत के फेसबुक अकाउंट से 

• सारिका ठाकुर 

बाल साहित्य में अपनी विशिष्ट पहचान रखने वाली डॉ. मालती बसंत साहित्य की लगभग सभी विधाओं में दखल रखती हैं। इनकी अब तक 25 पुस्तकें प्रकाशित हैं जिनमें से अधिकांश बच्चों के लिए ही लिखी गई हैं। मालती जी का जन्म 1954 में ग्वालियर में हुआ था। उनके पिता श्री पूर्णचंद्र सिविल जज थे और उनकी मां श्रीमती धनवंती देवी गृहिणी। तीन बहनों में वे मंझली हैं। उनकी छोटी बहन का जन्म उनके चौदह वर्ष बाद हुआ। दरअसल उनके माता पिता को बेटा न होने का मलाल था और इसलिए मालती जी के जन्म के चौदह वर्ष बाद उनकी बहन का जन्म हुआ लेकिन बेटियों की परवरिश में उन्होंने कोई कमी नहीं छोड़ी। अपनी छोटी बहन के जन्म के बाद मन में उठ रही भावनाओं को आगे चलकर उन्होंने अपनी एक कहानी ‘उसका प्यार’ में व्यक्त किया है।

श्री पूर्णचंद्र का प्रदेश के अलग-अलग इलाकों में तबादला हुआ करता था। अपने बचपन को याद करते हुए मालती जी कहती हैं, “ बड़े बड़े पुराने जमाने के बने हुए सरकारी बंगले और उनके चारों ओर बने हुए बगीचे मुझे आज भी याद हैं। पिताजी के तबादलों और उनके पद की वजह से पक्की सहेलियां कभी नहीं बनीं। न्यायाधीशों का सामाजिक जीवन शून्य ही होता है। मगर एक चीज थी जो हर जगह मिलती थी, बड़े बड़े घर, उनके चारों को खड़े हरे-भरे पेड़ और फूल-पौधे। मेरी असल दोस्ती उन्ही से थी। जगह बदलने पर नए पेड़ और नई फूल पत्तियां मिलती थीं और उन्हें देखकर मुझे ख़ुशी मिलती थी। घर में कई पत्रिकाएँ आती थीं। समय बिताने का एक पसंदीदा जरिया वह भी था। इसके अलावा रेडियो भी प्रिय मनोरंजन का साधन था।

सन 1960 में उनकी पढ़ाई अलीराजपुर से शुरू हुई, तीसरी कक्षा तक वहां पढ़ने के बाद परिवार जौरा, सबलगढ़ (मुरैना) आ गया और वहां से उनकी चौथी-पांचवीं की पढ़ाई हुई। छठवीं में उन्होंने अपनी पहली कविता लिखी जो ‘नई दुनिया’ के बच्चों वाले स्तम्भ में प्रकाशित हुई। उसी समय से लिखने का सिलसिला शुरू हो गया। उन दिनों रेडियो सीलोन के कार्यक्रम में साहित्यिक रचनाएं भी आमंत्रित की जाती थीं।  डाक द्वारा  रेडियो सीलोन  को मालती जी अपनी कविताएँ भेज दिया करती थीं, उनमें से कई कविताएँ  वहां से प्रसारित हुई। इसी तरह अलग-अलग जगहों से पढ़ाई करते और लिखते-पढ़ते 1970 में रायगढ़ से उन्होंने हायर सेकेंडरी पास कर लिया। इसके बाद कॉलेज की पढ़ाई भिंड से हुई। वहां से सेकण्ड ईयर करने के बाद परिवार फिर अलीराजपुर आ गया लेकिन वहां कॉलेज नहीं था, इसलिए आगे की पढ़ाई के लिए उन्हें ओल्ड गर्ल्स डिग्री कॉलेज, इंदौर भेज दिया गया। 1973 में ग्रेजुएशन के बाद मालती जी ने वहीं से हिंदी विषय लेकर एम.ए. किया। उस दौरान वे कॉलेज के छात्रावास में रहती थीं। एम.ए. करने के बाद उनके जीवन में आए शून्य को भरने का एक मात्र साधन लेखन ही था। एक साल यूं ही बीत गया फिर उन्होंने बीएड और एम.एड. की डिग्री ले ली। सन 1978 में हायर सेकेंडरी स्कूल, कुरवाई में वे व्याख्याता के पद पर नियुक्त हो गईं। इस बीच अम्बाला छावनी में संचालित कहानी लेखन महाविद्यालय से भी उन्होंने कोर्स किया। वर्तमान में उस महाविद्यालय का संचालन साहित्यकार उर्मि कृष्ण कर रही हैं। यहाँ से उन्हें कहानी के मूलभूत नियमों के अलावा किस पत्रिका में भेजना चाहिए, किस तरह भेजना चाहिए जैसा मार्गदर्शन भी मिला। मालती जी आज भी उर्मि जी  को अपना गुरु मानती हैं।

मालती जी की बड़ी बहन ने स्कूल के बाद आगे की पढ़ाई नहीं की। वे बहुत सुन्दर और सुगढ़  थीं। अक्सर दोनों बहनों में तुलना होती, खास तौर पर सुन्दरता के मामले में। 16 वर्ष की उम्र में ही उन्होंने शादी न करने का  ऐलान कर दिया। शुरुआत में लोगों ने गंभीरता से इस बात को नहीं लिया लेकिन वह अपने फैसले पर अड़ी रहीं। बड़ी बहन शादी न करने के अपने प्रण पर अटल थीं इसलिए मालती जी की शादी भी टलती रही और समय धीरे-धीरे सरकता रहा। इस बीच अलग-अलग पत्रिकाओं में उनकी कहानियां और कविताएं भी छपती रहीं।

1992 में उनकी शादी आईएएस अधिकारी श्री बसंत कुमार रमोले से हो गयी । उस समय मालती जी की उम्र लगभग 38 वर्ष थी और उनके पति उनसे चौदह वर्ष बड़े थे। श्री रमोले विधुर थे, उनकी दोनों बेटियों की शादी हो चुकी थी और बेटे अच्छे-अच्छे ओहदों पर काम कर रहे थे। तब तक मालती जी की चर्चा प्रदेश के जाने-माने बाल साहित्यकारों में होने लगी थीं और कई पुरस्कारों व सम्मानों से वे नवाजी जा चुकी थीं। शादी के बाद भी उनकी जीवन शैली में कोई ख़ास तब्दीली नहीं आई। पहले की तरह ही उनकी नौकरी और लेखन दोनों ही जारी रहा। इसके साथ ही वे पीएचडी के लिए  शोधकार्य भी कर रही थीं।

वर्ष 2012 में उन्होंने ‘स्वातंत्रोत्तर बाल उपन्यासों का समीक्षात्मक अध्ययन’ विषय पर पीएचडी की उपाधि हासिल की। 

मालती बसंत के जीवन का वह कभी न भूलने वाला पल था जब राष्ट्रपति भवन में बाल साहित्य पर चर्चा के लिए देश भर के चुने गए बाल साहित्यकारों में उन्होंने भी मप्र का प्रतिनिधित्व करने का अवसर मिला। उस समय तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम से हुईं भेंट को वे अपने जीवन की उपलब्धि मानती हैं।

वर्ष 2016 में अपनी सेवानिवृत्ति के बाद मालती जी ने श्री कृष्ण कृपा मालती महावर बसंत परमार्थ न्यास की स्थापना की। इसके माध्यम से वे साधनहीन बच्चियों की पढ़ाई के अलावा साहित्यिक उत्थान के लिए काम करती हैं। इस न्यास के अंतर्गत हिंदी साहित्य की लघुकथा और बाल साहित्य के उत्थान के लिए तीन अलग-अलग पुरस्कार दिए जाते हैं। इनमें से एक ‘मातुश्री धनवंती देवी स्मृति लघुकथा पुरस्कार, हिन्दी लेखिका संघ, भोपाल द्वारा 2013 से ही दिए जा रहते थे, जो बाद में न्यास के बैनर तले रखा गया। अब तक उन्हें 45 छोटे बड़े सम्मानों से नवाजा चुका है। उनकी रचनाएं पंजाबी, मराठी, निमाड़ी, अंग्रेजी, गुजराती, नेपाली, आदि ‌भाषाओं में अनुदित हो चुकी हैं।

जीवन भर अविवाहित रहने का संकल्प लेने वाली बड़ी बहन चन्द्रावती का मालतीजी के जीवन में अव्यक्त रूप से गहरा असर रहा। उन्होंने अपना जीवन अध्यात्म को समर्पित कर दिया था। अपने जीवन में उन्होंने राम चरित्र पर कई ग्रंथों की रचना की। हाथ से लिखे उन पांडुलिपियों को मालती जी ने संभाल कर रखा और उनके प्रकाशन की व्यवस्था की। सुश्री चन्द्रावती जी की दो कृतियाँ वे प्रकाशित करवा चुकी हैं। कुछ अभी भी शेष हैं जिन पर मालती जी काम कर रही हैं। इसके अलावा मालती जी के प्रयास से आध्यात्मिक ग्रंथों के लिए ‘सुश्री चन्द्रावती स्मृति पुरस्कार’ भी हिन्दी लेखिका संघ के माध्यम से दिया जा रहा है। वर्तमान में वे भोपाल में रहते हुए लेखन कार्य में व्यस्त हैं।

प्रकाशित कृतियाँ

• सुनो पालनहार(कहानी संकलन) मीनाक्षी पुस्तक मंदिर, दिल्ली, 1981

• अतीत का प्रश्न (लघुकथा संकलन) अयन प्रकाशन, दिल्ली,  1991

• एक सही राह (बाल कहानी) अयन प्रकाशन, दिल्ली 1996

• चंदा की शरारत(बाल कहानी) वाणी प्रकाशन,दिल्ली-1998

• तोतों की दुनिया(बाल कहानी) वाणी प्रकाशन, दिल्ली- 1998

• नयी दिशा,  (बाल कहानी) समय प्रकाशन, दिल्ली-1998

• दादा जी की सैर (बाल उपन्यास) दिल्ली पुस्तक सदन, दिल्ली-वर्ष:1998

• सार्थक जीवन (बाल कहानी) जनवाणी प्रकाशन,दिल्ली-1999

• कुर्सी तेरे रंग हजार(हास्य व्यंग्य) करवट प्रकाशन, भोपाल-2001

• बुढ़ापे की दौलत, (लघुकथा प्रकाशन)जान्हवी प्रकाशन-2004

• नारी : एक कहानी (कहानी संकलन) सत् प्रकाशन, भोपाल-2006

• शिक्षाप्रद बाल कथाएं (बाल कहानी) वर्षा प्रकाशन, इलाहाबाद-2006

• मनोरंजक बाल कथाएं (बाल कहानी संकलन) वर्षा प्रकाशन, इलाहाबाद-2006

• बाल मनोवैज्ञानिक कहानियां (बाल कहानी संकलन) विभा प्रकाशन, इलाहाबाद- 2006

• मां की कहानी(बाल कहानी संकलन) विभा प्रकाशन, इलाहाबाद-2006

• बाल विज्ञान कथाएं(बाल कहानी संकलन) लहर प्रकाशन, इलाहाबाद-2006

• सच्चा धर्म(बाल कहानी)लहर प्रकाशन, इलाहाबाद-2006

• बुन्देलखण्ड के षट् रस (व्यंजन विधि) साहित्य भंडार इलाहाबाद, वर्ष-2006

• शिक्षा और संस्कार (लघुकथा संकलन) दीपक प्रकाशन-2006

• सच्चा धर्म (कहानी संकलन) प्रौढ़ शिक्षा निदेशालय मानव संसाधन विकास मंत्रालय, दिल्ली-2007

• स्वस्थ रहो मस्त रहो(बाल नाटक) बाल कल्याण एवं बाल साहित्य शोध केंद्र, भोपाल , वर्ष 2013

• राहुल की शिक्षा (बाल उपन्यास) मानसी पब्लिकेशन, दिल्ली-2014

• ज्ञान के अनमोल हीरे(बाल उपन्यास) मानसी पब्लिकेशन,- 2014

• तीन रंग (काव्य संग्रह) पहले-पहल प्रकाशन, भोपाल, वर्ष 2016

• हिन्दी बाल उपन्यास : समीक्षा के आईने में, अपना प्रकाशन, भोपाल-2020

इसके अतिरिक्त 100 साझा संकलन, 2 पुस्तकों, 3 स्मारिकाओं का संपादन

पुरस्कार एवं सम्मान

 • मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी द्वारा पं. रविशंकर शुक्ल पुरस्कार -2004  

• मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार, दिल्ली द्वारा राष्ट्रीय साहित्य सम्मान-2002

• सहस्त्राब्दी विश्व हिन्दी सम्मेलन, दिल्ली द्वारा राष्ट्रीय हिन्दी सेवी सहस्त्राब्दी सम्मान

• सूचना प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार, दिल्ली द्वारा भारतेन्दु हरिश्चन्द्र पुरस्कार-2000

• पं हरप्रसाद पाठक समिति, मथुरा, उप्र द्वारा पं हरप्रसाद पाठक स्मृति  बाल साहित्य पुरस्कार-1999  

संदर्भ स्रोत: सारिका ठाकुर की मालती बसंत से हुई बातचीत पर आधारित 

© मीडियाटिक

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