डॉ. नीता योगेंद्र पहारिया

blog-img

डॉ. नीता योगेंद्र पहारिया

छाया: डॉ. नीता पहारिया के फेसबुक काउंट से

चित्रकार 

• सीमा चौबे

चंबल क्षेत्र की कला और संस्कृति एक ऐसा विषय है जिस पर बहुत अधिक चर्चा नहीं की जाती, लेकिन ग्वालियर की डॉ. नीता योगेंद्र पहारिया अपनी खूबसूरत चित्रकला के जरिये इस भू भाग की समृद्ध कला और संस्कृति की ख़ुशबू पूरे देश में फैला रही हैं। उनकी गिनती मध्यप्रदेश के चुनिंदा चित्रकारों में होती है।

भिंड जिले के छोटे से गांव लहार में वर्ष 1965 में जन्मीं नीता के पिता श्री श्रीराम गुप्ता वकील और माँ श्रीमती रामश्री देवी गुप्ता गृहिणी हैं। चार भाई-बहनों में दूसरे नंबर की नीता की प्रारंभिक शिक्षा लहार तथा 8वी से आगे की शिक्षा दीक्षा ग्वालियर में हुई। नीता को चित्रकारी का हुनर अपनी माँ से विरासत में मिला, जो स्वयं शौकिया तौर पर रेखांकन किया करती थीं। इस मामले में उनका हाथ बहुत सधा हुआ था और स्कूल के दिनों में उन्हें चित्रकला में कई बार विशिष्ट स्थान प्राप्त हुआ था। वे कशीदाकारी करने के लिए कपड़ों पर चित्र बनाकर नीता को दिया करती थीं। माँ से  चित्रकारी  सीखते-सीखते नीता की इस क्षेत्र में रुचि जागृत हुई, लेकिन उस समय लहार जैसे क्षेत्र में लड़कियों को उच्च शिक्षा दिलवाने या उन्हें कुछ बनाने के बारे में लोग सोचते भी नहीं थे। उनका एक ही मकसद होता था, लड़कियों को थोड़ा बहुत पढ़ाओ और उनके हाथ पीले कर दो। ऐसे माहौल में पढ़ी-बढ़ी नीता ने कभी भी नहीं सोचा था कि वे बड़ी होकर कला के क्षेत्र से जुड़ेंगी। यह नीता की खुशकिस्मती रही कि उनके पिता ने चारों बच्चों को शिक्षा के लिए  मां के साथ ग्वालियर भेज दिया।वहां केआरजी कॉलेज में उन्होंने कला संकाय में स्नातक और स्नातकोत्तर डिग्री हासिल कर पीएचडी भी की। मां से मिली विरासत और बाद में गुरुओं से मिली शिक्षा के बूते वे कला के क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बनाने में कामयाब रहीं।

वर्ष 1986 में उरई (उप्र) निवासी दन्त चिकित्सक डॉ. योगेंद्र पहारिया से उनका विवाह हुआ। डॉ. योगेन्द्र उस समय सागर जिले की खुरई में सेवारत थे। शादी के वक्त नीता ने एम.ए प्रीवियस ही किया था, वे आगे पढ़ना चाहती थीं और परिवार की ज़िम्मेदारियों की वजह से अपने अंदर के कलाकार को ख़त्म नहीं करना चाहती थीं। परिवार में उन्हें आगे पढ़ने का न तो किसी ने विरोध किया न ही समर्थन, लेकिन उनके पति चाहते थे कि नीता आगे पढ़ें और खुद की अलग पहचान बनाएं। उन्होंने नीता को पढ़ाई पूरी करने मायके भेज दिया। चूंकि नई-नई शादी हुई थी इसलिए मायके में लम्बे समय तक रहने पर लोग तरह-तरह की बातें करते, लेकिन योगेन्द्र जी ने कहा तुम किसी की चिंता मत करो, अपना काम करते जाओ। एम.ए. करने के बाद जीवाजी यूनिवर्सिटी से ‘चंबल क्षेत्र की लोक कला का सांस्कृतिक अध्ययन’ विषय में पीएचडी की डिग्री हासिल की। पढ़ाई के दौरान पारिवारिक जिम्मेदारियों के चलते नीता को काफी संघर्ष करना पड़ा। मां बनने के बाद बच्चों की परवरिश के लिए कुछ समय के लिए गति धीमी जरूर हुई, लेकिन उन्होंने काम बंद नहीं किया।

उन्होंने पेंटिंग की विधिवत शिक्षा गुरु श्री मोरेश्वर कनाडे से प्राप्त की। उन्होंने कला को देखने समझने का तरीका और लैंडस्कैप से जुड़ी बारीकियां सिखाईं। इसके बाद भोपाल में श्री लक्ष्मीनारायण भावसार से कला के सैद्धांतिक पक्ष के बारे में गहन जानकारी हासिल की। इसके अलावा पद्मश्री से सम्मानित सुश्री  अंजलि इला मेनन, प्रख्यात चित्रकार एवं पद्मभूषण से सम्मानित रामकुमार जी, शान्ति दवे जी सहित अनेक वरिष्ठ कलाकारों का सानिध्य और मार्गदर्शन उन्हें प्राप्त होता रहा। इन सभी वरिष्ठ कलाकारों का काम नीता को काफी नजदीक से देखने और सीखने का अवसर मिला। एक बार नीता की तारीफ करते हुए सुश्री अंजलि इला मेनन ने उनसे कहा था - ‘नीता, यू आर वेरी गुड कलरिस्ट’।

नीता लोकायुक्त सतर्कता प्रकोष्ठ में 6 साल तक पंचाट की सदस्य रहीं। यह नियुक्ति सीधे मुख्यमंत्री और सर्वोच्च न्यायालय के अवकाश प्राप्त न्यायाधीश  द्वारा की जाती है। नीता इस पद पर सबसे ज्यादा समय तक कार्य करने वाली मप्र की सबसे कम उम्र की महिला रही हैं। इसके बाद उन्होंने राजा मानसिंह तोमर विवि ग्वालियर में 6 साल कला संकाय के स्नातक और स्नातकोत्तर करने वाले विद्यार्थियों को पढ़ाया। बाद में इसी विवि में डिसीजन कमेटी की सदस्य के रूप में 2 साल पदस्थ रहीं।

नीता जी बताती हैं- उस समय वाश पद्धति में पेंटिंग तैयार की जाती थीं, उसके बाद उन्होंने वाटर कलर और ऑइल कलर से पेंटिंग शुरू की। शुरुआत में उनका प्रकृति की ओर रुझान रहा। उन्होंने प्राकृतिक चित्रों के साथ कई पोट्रेट्स भी बनाए। फिगरेटिव पर भी उन्होंने काफी काम किया। इस समय ज्योमेट्री पर उनका अधिक फोकस है। लोगों ने उनके इस काम को खासा पसंद भी किया है। उनकी अधिकांश पेंटिंग्स में चंबल की संस्कृति की झलक देखने को मिलती है। इस बारे में उनका कहना है- किसी ख़ास थीम पर ही काम करना है, यह पहले से तय नही होता। खाली कैनवास के सामने बैठकर शांत दिमाग में जो भी भाव आते जाते हैं, उन पर काम करती चली जाती हूं, लेकिन हाँ, यहां का ग्रामीण परिवेश, यहां के लोगों का गहरे रंग का पहनावा, उनका भक्ति भाव में रहना, मुझे बहुत आकर्षित करते हैं। उनके वही रंग और भाव मैं पेंटिंग में उतारती हूँ। कभी-कभी मंद रंगों पर भी काम करती हूं।

एक वाकया याद करते हुए नीता जी बताती हैं वर्ष 2019 ऑल इंडिया फाइन आर्ट एंड क्राफ्ट सोसायटी द्वारा दिल्ली में आयोजित प्रदर्शनी में उनके चित्र भी शामिल किए गए थे। उद्घाटन के लिए तत्कालीन संस्कृति मंत्री श्री प्रहलाद पटेल आए थे। उन्हें वहां से जल्दी निकलना था इसलिए मेरी गैलरी तक उनका आना निश्चित नहीं था, लेकिन लौटते वक्त जब दूर से ही उनकी नज़र मेरी पेंटिंग्स पर पड़ी तो वे पलटकर सीधे मेरी गैलरी तक आए और पेंटिंग्स की तारीफ़ करते हुए पूछा ये तुमने बनाया है? उसी समय केन्द्रीय मंत्री श्री पुरुषोत्तम रुपाला, श्री नरेन्द्र सिंह तोमर, गैलरी ऑफ़ हिमालय आर्ट के महानिदेशक श्री चरण, संस्कार भारती के श्री अमीरचंद, ऑल इंडिया फाइन आर्ट एंड क्राफ्ट सोसायटी के अध्यक्ष पद्मश्री भीमन बी दास (मूर्तिकार), तीन अन्य सांसदों सहित 9 विशिष्ट व्यक्ति मेरी गैलरी में मौजूद थे। उन सभी को मेरी पेंटिंग्स बहुत पसंद आईं। रुपाला जी ने उस समय कहा ‘चंबल तो बीहड़ों का इलाका है, वहां से बंदूकें निकलती हैं - ये पता था, लेकिन चंबल से इतनी सशक्त तूलिका निकलेगी ये तो सोचा भी नहीं था।

40 सालों के अपने करियर में नीता जी को पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी, पूर्व राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल, केंद्रीय ऊर्जा राज्य मंत्री श्री  ज्योतिरादित्य सिंधिया, पूर्व संस्कृति मंत्री कुमारी शैलजा जी, पूर्व ग्रामीण राज्य मंत्री प्रदीप जैन आदित्य सहित कई पद्मश्री, पद्मभूषण, पद्मविभूषण चित्रकारों, लेखकों आदि ने चित्रकला पर प्रशंसा पत्र भेजे हैं। इतना ही नहीं, देश की महान विभूतियों, संस्थाओं सहित अमेरिका, कनाडा, खाड़ी देशों में उनकी कलाकृतियां निजी संग्रह के रूप में संग्रहीत हैं।

राष्ट्रीय कला रत्न से सम्मानित डॉ. नीता ने पीएचडी के अपने विषय में थोड़ा बदलाव कर उसे ‘चंबल क्षेत्र का इतिहास’ संस्कृति और कला शीर्षक से पुस्तक के रूप में भी प्रकाशित करवाया। इस विषय पर किताब लिखने के पीछे उनके मुख्य मकसद चंबल क्षेत्र से जुड़ी भयावहता को दूर कर यहां की संस्कृति, इस क्षेत्र के निवासियों की जीवन शैली (खासकर महिलाओं के बारे में) से लोगों को अच्छी तरह वाकिफ कराना है। वे कहती भी हैं कि उनकी कला हमेशा चंबल क्षेत्र पर ही अधिक केन्द्रित होगी क्योंकि वे यहाँ की संस्कृति को विश्व के कोने-कोने तक पहुंचाना चाहती हैं।

डॉ. नीता का कहना है कला साधना करना इतना आसान नहीं है, इसके लिए शांत वातावरण और मन की शांति चाहिए और यह सब घर वालों के सहयोग के बिना संभव नहीं था। पति के साथ ही मेरे दोनों बच्चों ने मुझे बहुत सपोर्ट किया। वे कहती हैं कला की कोई उम्र नहीं होती। इन्सान जब चाहे तब अपने अंदर की कला को दुनिया के सामने पेश कर सकता है। कला के इस क्षेत्र में मेहनत, लगन और धैर्य इन तीनों के मिश्रण से ही सफलता मिलती है, जो आजकल के बच्चों में देखने को नहीं मिलता। नीता जी अपना काम जारी रखते हुए अपने पति के साथ ग्वालियर में निवास कर रही हैं। उनकी बेटी डॉ. निधि जोधपुर में नेत्र रोग विशेषज्ञ हैं और बेटा डॉ. नयेंद्र पहारिया दिल्ली में मैक्सिलोफेशियल सर्जरी से एमडीएस कर रहा है।

डॉ. नीता के बनाए चित्रों की अनेक एकल तथा सामूहिक प्रदर्शनियां अंतरराष्ट्रीय स्तर की कई प्रतिष्ठित गैलरीज़ में लग चुकी हैं।  

एकल शो

• आस्था आर्ट गैलरी, ग्वालियर (2008)

•  भारत भवन, भोपाल (2010)

• आस्था आर्ट गैलरी, ग्वालियर (2011 से 2015)

• ललित कला दीर्घा, हैदराबाद (2014)

•  चित्रकला परिषद, बंगलौर (2015)

•  जवाहर कला केंद्र, जयपुर (2016/2018 )

• ऑल इंडिया फाइन आर्ट एंड क्राफ्ट सोसायटी (एआईएफएसीएस), नई दिल्ली (2009/2019)

•  जहांगीर आर्ट गैलरी, मुंबई (2009/2019)

सामूहिक प्रदर्शनी

•    नेशनल एग्जीबिशन, पिलानी-राजस्थान (1985/96)

•    नेशनल एग्जीबिशन ‘कला रंग कला संग’, ग्वालियर (2006-05)

•   ‘फागुन के आंगन में रंग की आहट’, कला वीथिका, ग्वालियर (2007-06)

•    संस्कार भारती द्वारा आयोजित ‘जलविहार ग्वालियर’ एम.पी. नेशनल शो (2008)

•    हेरिटेज फेस्टिवल, मेमोरी ऑफ़ जे. स्वामीनाथन, राजा मानसिंह तोमर, विश्वविद्यालय, ग्वालियर (2014-15)

•    राजा मान सिंह संगीत और कला विश्वविद्यालय, ग्वालियर, (2017)

•    ललित कला संस्थान, (ललित कला महाविद्यालय) ग्वालियर (2018)

•    ग्रुप आर्ट एग्जीबिशन ‘पीस’, र एंड जी आर्ट एंड कल्चर, नई दिल्ली (2021)

•    राष्ट्रीय शिल्प संग्रहालय और हस्त कला अकादमी द्वारा नेशनल ग्रुप शो, ‘कलयुग’ प्रगति मैदान दिल्ली (2022)  

•    जयपुर कला महोत्सव- जवाहर कला केंद्र शिल्पग्राम, जयपुर (2022)

डॉ नीता पहारिया उन प्रसिद्ध कलाकारों में से एक हैं, जिन्हें भारत सरकार ललित कला अकादमी, दिल्ली द्वारा चार बार प्रदर्शनी में आमंत्रित किया गया। वे 30 से अधिक कार्यशालाओं और शिविरों में शिरकत कर चुकी हैं

पुरस्कार/सम्मान

•    ‘राष्ट्रीय अभ्युदय सम्मान’. कलावर्त कलापर्व- उज्जैन (2006)

•    मिस फाइन आर्ट्स अवार्ड, केआरजी कॉलेज, ग्वालियर (1988-87)

•    भारत विकास परिषद ग्वालियर द्वारा ‘ग्वालियर गौरव सम्मान’ (2007)

•    लायनेस प्रियदर्शनी और स्वास्थ्य मंत्री द्वारा सम्मानित (2009-10)

•    प्रभात वेलफेयर एंड सोशल सोसाइटी ग्वालियर द्वारा ‘प्रभात रत्न सम्मान’ (2009-10)

•    उड़ान संस्थान द्वारा ‘शशि किरण सम्मान’ (2011-12)

•   गहोई समाज ग्वालियर द्वारा ‘अभिनंदन अवार्ड’ (2013)

•   एफ.एम. रेडियो 95 ‘चस्का’ द्वारा ‘प्राइड ऑफ़ द ग्वालियर’ (2013)

•    नेशनल यूथ एसोसिएशन, मप्र. द्वारा ‘नारी शक्ति पुरस्कार’ (2013)

•    जेसीआई मेट्रो द्वारा अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर सम्मानित (2014)

•    नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी द्वारा ‘मदर टेरेसा सम्मान’ (2016)

•   ‘समदृष्टि क्षमता विकास अनुसंधान मंडल’' द्वारा पुरस्कृत (2018)

•   नटराजन पूजन, कला गुरु सम्मान, संस्कार भारती (2019)

•    नारी शक्ति सम्मान, महिला कल्याण फाउंडेशन द्वारा (2020)

•    15वें राष्ट्रीय कला उत्सव ‘क्रेयॉन्स’ ‘में ‘राष्ट्रीय कला रत्न सम्मान', टोंक, राजस्थान (2021)

•   संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार के सहयोग से दिल्ली पुलिस द्वारा आयोजित 75वीं आजादी का अमृत महोत्सव में ‘चित्रांजलि’,  राजा रवि वर्मा सम्मान (2022)

•    मुख्यमंत्री  शिवराज सिंह चौहान एवं  केंद्रीय नागरिक उड्डयन, इस्पात मंत्री  ज्योतिरादित्य सिंधिया  द्वारा कला के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने पर सम्मानित (2023)

 

सन्दर्भ स्रोत: डॉ. नीता योगेंद्र पहरिया से सीमा चौबे की बातचीत पर आधारित  

© मीडियाटिक 

Comments

Leave A reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

सितार-संतूर की जुगलबंदी का नाम 'वाहने सिस्टर्स'
ज़िन्दगीनामा

सितार-संतूर की जुगलबंदी का नाम 'वाहने सिस्टर्स'

सितार और संतूर की जुगलबंदी के खूबसूरत नमूने पेश करने वाली प्रकृति और संस्कृति मंच पर एक-दूसरे का भरपूर साथ देतीं हैं। वे...

बेसहारा  बुजुर्गों को  'अपना घर' देने वाली माधुरी मिश्रा
ज़िन्दगीनामा

बेसहारा बुजुर्गों को 'अपना घर' देने वाली माधुरी मिश्रा

माधुरी जी ने करीब 50 लोगों को काउंसलिंग कर उनके घर वापिस भी पहुंचाया है।

पूर्णिमा राजपुरा : वाद्ययंत्र ही बचपन में जिनके खिलौने थे
ज़िन्दगीनामा

पूर्णिमा राजपुरा : वाद्ययंत्र ही बचपन में जिनके खिलौने थे

पूर्णिमा हारमोनियम, तबला, कांगो, बांगो, ढोलक, माउथ ऑर्गन सहित 18 से 20 तरह के वाद्य बजा लेती हैं।

आदिवासियों के उत्थान के लिए प्रतिबद्ध सीमा प्रकाश
ज़िन्दगीनामा

आदिवासियों के उत्थान के लिए प्रतिबद्ध सीमा प्रकाश

सीमा ने अपने प्रयासों से खालवा ब्लॉक की लड़कियों को पलायन करने से भी रोका है। स्पन्दन समाज सेवा समिति विलुप्त हो रही कोर...

महिला बैंक के जरिए स्वावलंबन की राह दिखाई आरती ने
ज़िन्दगीनामा

महिला बैंक के जरिए स्वावलंबन की राह दिखाई आरती ने

आरती ने महसूस किया कि अनपढ़ और कमज़ोर वर्ग की महिलाओं के लिए बैंकिंग जटिल प्रक्रिया है। इसे आसान बनाने के मकसद से ही उन्हो...

भाषा और कथ्य की बेजोड़ शिल्पकार वन्दना राग
ज़िन्दगीनामा

भाषा और कथ्य की बेजोड़ शिल्पकार वन्दना राग

2020 के शुरुआत में राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित उनका पहला उपन्यास 'बिसात पर जुगनू' साहित्य जगत में बेहद सराहा गया।