इलाहाबाद हाईकोर्ट : यौन अपराधों में

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इलाहाबाद हाईकोर्ट : यौन अपराधों में
हमेशा पुरुष ही दोषी नहीं होता

प्रयागराज। शादी का झूठा वादा कर दुष्कर्म करने का आरोप लगाते हुए एक युवती ने युवक पर मुकदमा दर्ज कराया था। मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट में पहुंचा था। आरोपी को ट्रायल कोर्ट की ओर से बरी करने के फैसले को हाईकोर्ट ने जायज ठहराया। मामले में हाईकोर्ट ने तल्ख टिप्पणी भी की। कहा कि महिलाओं के प्रति यौन अपराधों से संबंधित कानून महिला केंद्रित हैं, लेकिन यह जरूरी नहीं है कि इस तरह के हर मामले में पुरुष ही दोषी हो। इस स्थिति में साक्ष्य प्रस्तुत करने की जिम्मेदारी महिला और पुरुष दोनों पर होती है।

हाईकोर्ट ने कहा कि ऐसा कोई सीधा फार्मूला नहीं है जिससे यह तय किया जा सके कि पीड़िता से यौन संबंध झूठे वादे के आधार पर बने अथवा दोनों की सहमति से बने। हर मामले के तथ्यों के विश्लेषण से ही यह तय किया जा सकता है। आरोपी को बरी करने के आदेश के खिलाफ पीड़िता की अपील को खारिज करते हुए न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी व न्यायमूर्ति नंद प्रभा शुक्ला की खंडपीठ ने यह निर्णय दिया।

मामला प्रयागराज के कर्नलगंज का है। पीड़ित युवती ने 2019 में आरोपी युवक पर शादी का झूठा वादा कर दुष्कर्म करने, एससी एसटी एक्ट सहित अन्य मामलों में केस दर्ज कराया था। एससी/एसटी एक्ट की विशेष अदालत ने 08 फरवरी 2024 के आदेश से आरोपी को सभी गंभीर आरोपों से बरी कर दिया। केवल मारपीट के मामले में दोषी ठहराया है और 6 महीने की सजा और एक हजार रुपया का जुर्माना लगाया।

इस आदेश के खिलाफ पीड़िता ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपील दाखिल की। ट्रायल कोर्ट के निर्णय और उपलब्ध साक्ष्य के आधार पर पता चला कि पीड़िता ने 2010 में एक व्यक्ति से विवाह किया था। दो साल बाद वह अपने पति से अलग हो गई। मगर पति से तलाक नहीं लिया। लिहाजा विवाह अभी भी कायम है। ऐसे में शादी का कोई भी वादा अपने आप में मानने योग्य नहीं है।

कोर्ट ने कहा कि यह आसानी से अनुमान लगाया जा सकता है कि एक महिला जो पहले से शादीशुदा है। बिना तलाक लिए, बिना किसी आपत्ति और झिझक के वर्ष 2014 से 2019 तक पांच साल तक युवक से संबंध बनाए रखती है। दोनों इलाहाबाद और लखनऊ के होटलों में रुकते हैं। ऐसे में यह तय करना मुश्किल है कि कौन किसको बेवकूफ बना रहा है। कोर्ट ने यह भी कहा कि यह मानने लायक नहीं कि एक महिला इतने समय तक शादी के झूठे वादे के बहाने पर संबंध बनाने की अनुमति देती रही।

कोर्ट ने कहा कि दोनों वयस्क हैं और वह विवाह पूर्व संबंध बनाने के परिणाम से वाकिफ हैं। ऐसे में यह स्वीकार नहीं किया जा सकता कि उसके साथ दुष्कर्म या यौन उत्पीड़न किया गया। कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के आरोपी युवक को बरी करने के फैसले को सही मानते हुए अपील खारिज कर दी।

संदर्भ स्रोत : ईटीवी

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