छाया : संस्कृति-प्रकृति के फेसबुक पेज से
• सीमा चौबे
संगीत की दुनिया में 'वाहने सिस्टर्स' एक जाना-पहचाना नाम है। कम उम्र में ही ख्याति अर्जित करने वाली संस्कृति और प्रकृति वाहने - दोनों बहनों की प्रतिभा का अंदाज़ इसी बात से लगाया जा सकता है कि कला जगत के सबसे बड़े मंच यानी लंदन के दरबार फेस्टिवल में जहां बड़े-बड़े कलाकार नहीं पहुंच पाते, वहां भी ये बहनें अपने हुनर का लोहा मनवा चुकी हैं। इसका श्रेय उनके पिता - जो उनके गुरु भी हैं, को ही जाता है।
बालाघाट जिले की वारासिवनी तहसील के सिकंदरा गांव में डॉ. लोकेश वाहने और श्रीमती हेमा वाहने के यहां 25 जनवरी 1998 को संस्कृति का और 9 जून, 1999 को प्रकृति का जन्म हुआ। डॉ. वाहने स्वयं एक सुविख्यात सितार वादक हैं और इस समय शासकीय कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय उज्जैन में प्रोफेसर हैं, जबकि हेमा जी गृहिणी हैं। ‘गुरुजी’ के नाम से प्रसिद्ध उनके दादा और सेवानिवृत शिक्षक श्री डी.के.वाहने बहुत अच्छे बांसुरी वादक और चित्रकार होने के साथ-साथ साहित्यकार और समाजसेवी थे। दादी सुगरत वाहने भी सुरीली गायिका हैं। ज़ाहिर है कि संस्कृति और प्रकृति को संगीत विरासत में मिला।
अपने आई-बाबा से संगीत की प्राकृतिक शिक्षा लेने के बाद लोकेश जी ने बाद में संगीत की विधिवत शिक्षा इंदिरा कला विवि, खैरागढ़ से शिक्षा प्राप्त की। वे विश्व प्रसिद्ध सितारवादक उस्ताद शाहिद परवेज़ (इटावा घराना) के गंडाबंध शिष्य हैं और वही तालीम से वे संस्कृति-प्रकृति सहित अनेक शिष्यों को दे रहे हैं। बहुमुखी प्रतिभा के धनी लोकेश जी बैंजो, संतूर, सरोद, हारमोनियम और तबला वादन में भी निपुण हैं। इतना ही नहीं, चित्रकला और मूर्तिकला में सिद्धहस्त लोकेश जी गज़लें लिखने के अलावा उनकी कम्पोज़िशन भी करते हैं।
वाहने परिवार में जन्म लेने से पहले ही संस्कृति और प्रकृति उनका भविष्य तय कर दिया गया था। लोकेश जी की दिली इच्छा थी कि उनके घर में संतान के रूप में बेटियों का जन्म हो और वे संगीतज्ञ ही बनें। संयोग ही कहा जा सकता है वे दोनों बेटियों के पिता बने और दोनों बच्चियों ने जन्म के कुछ दिन बाद ही ये संकेत देना शुरू कर दिया कि संगीत उनकी रगों में दौड़ रहा है। दरअसल हेमा जी जब घरेलू कामों में व्यस्त होतीं, वे दोनों बच्चियों को रियाज़ कर रहे लोकेश जी के पास खेलने के लिए छोड़ दिया करतीं। उसी दौरान लोकेश जी ने महसूस किया कि जब तक सितार बजता, तब तक दोनों अच्छी तरह खेलती रहती थीं, लेकिन जैसे ही वे सितार बजाना बंद करते, वे रोने लगतीं।
तीन साल की उम्र जब बच्चे ठीक से बोलना भी नहीं सीखते, दोनों बेटियां अपनी दादी की तरह मधुर आवाज में गुनगुनाने लगी थीं। बच्चियों में सुरों की समझ के संकेत मिलते ही लोकेश जी ने उनमें संगीत का बीजारोपण करना शुरू कर दिया और 6-7 साल की होते-होते कठोर नियमों व बंधनों के साथ संस्कृति-प्रकृति की तालीम शुरू हो गई। संस्कृति ने सितार में दक्ष है तो प्रकृति पूरी तरह से संतूर के प्रति समर्पित है। दोनों की वादन शैली बेजोड़ है। राग, गायकी तथा तंत्रकारी अंग की शुद्धता इनकी विशेषता है। दोनों एकल प्रदर्शन भी करती हैं, लेकिन अधिकांश मंचों पर अपनी जुगलबंदी के लिए जानी जाती हैं।
संस्कृति और प्रकृति ने बारहवीं तक पढ़ाई उज्जैन के सेंट मैरी कॉन्वेंट स्कूल से की, फिर संगीत में स्नातक शासकीय कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय, उज्जैन से किया। संस्कृति ने इंदिरा कला वि.वि., खैरागढ़ से सितार में तथा प्रकृति ने अंग्रेजी साहित्य में विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन से स्नातकोत्तर (एमए) की डिग्री प्राप्त की है। संगीत के बजाय अंग्रेज़ी साहित्य में एम.ए. करने के बारे में प्रकृति बताती हैं कि वे इसी विषय में डिग्री लेना चाहती थीं, लेकिन करियर के रूप में उनकी पहली पसंद संतूर ही था। हालांकि बी.ए. के दौरान उनका एक विषय सितार - जो उनका घराना वाद्य है, भी था।
पहला मंचीय प्रदर्शन
दोनों बहनों ने अपनी पहली जुगलबंदी चंडीगढ़ में पेश की। तब संस्कृति दूसरी और प्रकृति पहली कक्षा में थीं, उस समय लोकेश जी ने अपनी शागिर्द बेटियों की हौसला अफ़ज़ाई के लिए उनके साथ संगत की थी। 11 वर्ष की उम्र में पद्मश्री तालयोगी पं. सुरेश तलवलकर जी के मार्गदर्शन में दोनों बहनों ने अल्लारखा खाँ साहब जयंती समारोह, पुणे में वादन प्रस्तुत किया।
पढ़ाई और संगीत के बीच तालमेल
पढ़ाई के दौरान संगीत जारी रखना दोनों के लिए थोड़ा मुश्किल ज़रूर रहा, लेकिन लोकेश जी ने पढ़ाई से ज़्यादा संगीत को अहमियत दी। उन्होंने बच्चियों पर पढ़ाई या अच्छे नम्बरों के लिए कभी दबाव नहीं बनाया। हालांकि इस मामले में दोनों ने उन्हें कभी निराश भी नहीं किया। किसी कार्यक्रम के लिए छुट्टी देने में जब स्कूल की प्राचार्य आनाकानी करतीं तो लोकेश जी मंजूरी की परवाह किये बिना एक आवेदन स्कूल में दे दिया करते। प्राचार्य अक्सर नाराज़ होते हुए कहतीं “म्यूज़िक करने से क्या होता है, इन्हें पढ़ाई करने देना चाहिए।” हालांकि स्कूल में दूसरी प्राचार्य ने आने के बाद दोनों बहनों के हुनर को पहचाना और स्कूल के वार्षिक उत्सवों में दोनों को अवसर दिया। उस समय तक स्कूल के विद्यार्थी, यहाँ तक कई शिक्षक भी दोनों बहनों की इस प्रतिभा से अनजान थे।
दंगल के आमिर खान की तरह सख्त हैं पिता
उनके गुरु लोकेश जी तालीम के प्रति अत्यंत नियमबद्ध हैं, जिसके परिणामस्वरूप दोनों बहनों को संगीत शिक्षा के कठिन दौर से गुजरना पड़ा। तालीम के समय यदि एक गलती करती तो डांट दोनों खाती थीं। दोनों ने डांट के साथ कई बार मार भी खाई है। दोनों बहनें बताती हैं कि दंगल फिल्म के आमिर खान की तरह हमारे पापा ने हमें बहुत कड़े अनुशासन में रखा। वे चोट लगने के डर से हमें बाहर खेलने तक नहीं जाने देते थे। उन्हें लगता था चोट की वजह से कहीं रियाज़ प्रभावित न हो जाए। और बच्चे जब बाहर खेल रहे होते, हमें रियाज़ करने बैठा दिया जाता। चोटी बाँधने में समय बर्बाद न हो, इसके लिए हमारे बाल कई वर्षों तक बॉब कट ही रहे। पिताजी का मिजाज़ ऐसा कि चाहे कुछ हो जाये, रियाज़ वक्त पर ही होगा।
उनकी सख्ती का पता इस बात से लगता है कि एक बार संस्कृति को 102 डिग्री बुखार होने पर उन्होंने ठंडे पानी की पट्टियाँ रख-रख कर और दवाई देकर उसे समय पर रियाज़ करवाने बैठाया। वे कहती हैं पापा का इतनी बंदिशों में रखना, हमें कतई पसंद नहीं था। लेकिन पापा कहते थे, यह चीज़ तुम्हें आज नहीं, आज से दस साल बाद समझ आयेगी। वे कहती हैं पापा नारियल की तरह ऊपर से सख्त और अंदर से बेहद नरम हैं, तालीम देते समय वे केवल गुरु होते थे, लेकिन बाद में पिता के रूप में हमें बहुत स्नेह के साथ-साथ हमारी मांगें भी पूरी करते थे।
दरबार फेस्टिवल से बुलावा स्वर्णिम पल
संस्कृति और प्रकृति बताती हैं “दरबार महोत्सव से बुलावा आना, परिवार के लिए सबसे खुशी का मौका था। वहां तक पहुंचने की घटना भी कम रोचक नहीं है। दरअसल वर्ष 2016 में संस्कृति का एक वीडियो खूब वायरल हुआ था इसमें उसने ‘रागेश्री’ की तान बजाई थी। जब दरबार फेस्टिवल के निदेशक संदीप बिरदी तक यह वीडियो पहुंचा, तो उन्होंने संस्कृति को गूगल पर तलाशना शुरू किया, तब उन्हें पता चला कि संस्कृति की एक बहन भी है प्रकृति, जो साथ में संगत करती है। 6 वर्षों तक दोनों बहनों की प्रतिभा को परखने के बाद वर्ष 2022 में जब उन्होंने पापा से सम्पर्क किया तो शुरू में फर्जी कॉल समझ कर उन्होंने इसे अनदेखा कर दिया। तीन-चार दिन बाद जब यह सुनिश्चित हो गया कि यह मैसेज और कॉल संदीप बिरदी जी ने ही उन्हें भेजा है, तो हमारी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा।”
लंदन में प्रति वर्ष आयोजित होने वाला दरबार फेस्टिवल एक भारतीय शास्त्रीय संगीत महोत्सव है, जहां केवल भारत और विदेशों में रह रहे भारत के प्रसिद्ध और उभरते सितारे ही हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की प्रस्तुति देते हैं। फेस्टिवल के मापदंड और चयन प्रक्रिया अत्यंत कठिन हैं। वे बताती हैं - “इस मंच पर प्रदर्शन करना हमारे लिए किसी चुनौती से कम नहीं था। क्योंकि यहां तक पहुंचना जितना मुश्किल है, उससे कहीं कठिन है, वहां खुद को सबसे बेहतर साबित करना। लेकिन हमें वहां भी संगीत प्रेमियों से बहुत तारीफें और मोहब्बत मिली।”
प्रतिद्वंद्वी नहीं, सहयोगी
सितार और संतूर की जुगलबंदी के खूबसूरत नमूने पेश करने वाली प्रकृति और संस्कृति मंच पर एक-दूसरे का भरपूर साथ देतीं हैं। वे कभी भी अपने को प्रतिद्वंद्वी नहीं मानतीं। वे कहती हैं मंच पर एक-दूसरे को सम्भालते हुए ही हम बेहतर जुगलबंदी कर पाते हैं।
पिता ने सिखाया जमीन से जुड़े रहना
बकौल संस्कृति कन्सर्ट में मिलने वाली तारीफों को लेकर पापा ने हमें एक मंत्र दिया है। वे कहते हैं लोग चाहें कितनी ही तारीफ करें, अपने पैर हमेशा ज़मीन पर ही रखना और बुराई-कमियां सुनकर निराश होने के बजाए बेहतर से बेहतर करने की कोशिश करते रहना है। पापा इसके लिए हमारे पुराने वीडियो देखकर बताते हैं कि स्टेज पर हमने कहां, क्या गलती की है। हम उनकी अपेक्षाओं पर कभी भी सौ प्रतिशत खरे नहीं उतरे हैं। वे हमारी किसी भी उपलब्धि पर बहुत जल्दी खुश नहीं होते, लेकिन जब ऑल इंडिया रेडियो से हमें ‘ए ग्रेड’ मिला, तब जरूर उन्होंने हमें शाबाशी देते हुए कहा था, तुम दोनों ने कम उम्र में बड़ी उपलब्धि हासिल की है।
भले ही संस्कृति और प्रकृति अपने-अपने वाद्य यंत्र बजाने में माहिर हैं लेकिन दोनों की तालीम एक साथ होने से संस्कृति संतूर तो प्रकृति सितार की तकनीकी चीजों की समझ भी रखती हैं। प्रकृति और संस्कृति के परिष्कृत हाथों से सितार और संतूर के तारों से झंकृत होती आवाज जब रागों में गूंजती है तो किसी भी संगीत समारोह में चार चांद लग जाते हैं, भारतीय शास्त्रीय संगीत की धरोहर को संभाले दोनों बहनें समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित और बढ़ावा देने के लिए प्रयासरत हैं।
पिता की छत्रछाया में दोनों बहनों की प्रतिभा लगातार निखर रही है। वे कहती हैं "माँ हमारी रीढ़ हैं, वे हमेशा हमारे साथ पीछे खड़ी रहती हैं, इसलिए हम तीनों अपना-अपना सौ प्रतिशत दे पाते हैं। उनके बिना हमारा यहाँ तक पहुँचाना मुश्किल होता।
उपलब्धियां/पुरस्कार
• दोनों बहनें क्रमशः वर्ष 2018 और 2019 में राष्ट्रीय युवा महोत्सव का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं
• वर्ष 2022 में दरबार फेस्टिवल-लंदन में जुगलबंदी
• वर्ष 2024 में संस्कृति को आकाशवाणी, दिल्ली द्वारा 'सितार' में तथा प्रकृति को 'संतूर' में 'ए' ग्रेड से सम्मानित किया गया
मुख्य मंचीय प्रदर्शन
• पं.बालासाहेब पूछवाले संगीत समारोह, ग्वालियर-2018
• त्रिवेणी संग्रहालय, उज्जैन -2019
• भारत भवन, भोपाल-2019
• उस्ताद अली अकबर खान संगीत श्रद्धांजलि, मैहर-2019
• पंडित भीमसेन जोशी संगीत समारोह, पुणे-2019
• जितेंद्र अभिषेकी संगीत समारोह, पुणे-2019
• भवितव्या, पुणे-2019
• एएआई फाउंडेशन और आईकेएसवी द्वारा आयोजित सुरता-सुनीता, खैरागढ़-2020
• आर्ट हब द्वारा ‘गर्ल पॉवर’ कार्यक्रम सीसीआरटी, हैदराबाद में -2020
• कुनरास पिया संगीत सभा, रायपुर 2020
• गायन सभा, मैसूर 2020
• सप्त संगीत संगीत समारोह, राजकोट 2021
• निनाद संगीत महोत्सव, आगरा 2021
• चरण महोत्सव, दिल्ली 2021
• दरबार उत्सव, लंदन-2022
• तानसेन समारोह पूर्वरंग गमक, दतिया, ग्वालियर-2022
• अखंड हरिनाम समारोह, पुणे-2022
• भारत भवन, भोपाल-2022
• देव गंधर्व महोत्सव, कल्याण-मुंबई, 2023
• सप्तक, संगीत संकल्प सप्ताह, अहमदाबाद, 2023
• संगीत नाटक अकादमी, चंडीगढ़-2023
• संगीत नाटक अकादमी, मुंबई -2023
• गुणीजन संगीत समारोह, इंदौर-2023
• बज़्म-ए-खास, दिल्ली-2024
• डोवर लेन संगीत सम्मेलन, कोलकाता
• यशवंत राव चौहान स्मृति समारोह, महाराष्ट्र
• स्वर-मल्हार संगीत महोत्सव, बेलगाम, कर्नाटक
• उस्ताद अब्दुल करीम खान समारोह, मिराज
• सारा बाकल कैलगरी, कनाडा आदि
सन्दर्भ स्रोत : सीमा चौबे की संस्कृति और प्रकृति से हुई बातचीत पर आधारित
© मीडियाटिक
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