सुप्रीम कोर्ट : 'यौन उत्पीड़न की नाबालिग पीड़िता को बार-बार नहीं बुला सकते

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सुप्रीम कोर्ट : 'यौन उत्पीड़न की नाबालिग पीड़िता को बार-बार नहीं बुला सकते

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यौन उत्पीड़न की नाबालिग पीडि़ता को ट्रायल कोर्ट में गवाही देने के लिए बार-बार नहीं बुलाया जाना चाहिए। जस्टिस सुधांशु धूलिया की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि यौन अपराध के दर्दनाक अनुभव से पीडि़त बच्चे को एक ही घटना के बारे में गवाही देने के लिए बार-बार नहीं बुलाया जाना चाहिए।

नाबालिग लड़की से कर ली थी शादी

अदालत उड़ीसा हाईकोर्ट और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पोक्सो) अधिनियम के तहत नयागढ़ के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश-सह-विशेष न्यायालय के आदेशों को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसने एक नाबालिग पीडि़ता को गवाह के रूप में फिर से बुलाने से इनकार कर दिया था। इस मामले में आरोपित ने नाबालिग लड़की का अपहरण करके उससे मंदिर में शादी कर ली थी और उसे यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर किया था। बाद में पीड़िता को उसके माता-पिता ने पुलिस की मदद से बचाया था।

दोबारा बुलाने के लिए दायर आवेदन को खारिज

आरोपितों पर 2020 में आइसीपी, पोक्सो अधिनियम और बाल विवाह निषेध अधिनियम की संबंधित धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था। सुनवाई के दौरान विशेष अदालत ने आरोपित द्वारा पीड़िता को गवाह के रूप में दोबारा बुलाने के लिए दायर आवेदन को खारिज कर दिया। ट्रायल कोर्ट ने पोक्सो अधिनियम की धारा-33(5) पर भरोसा किया, जिसमें कहा गया है कि बच्चे को गवाही के लिए अदालत में नहीं बुलाया जाएगा। निर्णय को बरकरार रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ''पोक्सो अधिनियम एक विशेष कानून है, जिसे बच्चों को यौन अपराधों से बचाने व उनके हितों की रक्षा करने तथा अधिनियम के तहत अपराधों के मुकदमे के प्रत्येक चरण में बच्चे की भलाई सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया था। अधिनियम की धारा-33(5) में विशेष अदालत पर यह सुनिश्चित करने का दायित्व है कि बच्चे को अदालत के समक्ष गवाही देने के लिए बार-बार न बुलाया जाए।''

दो बार जिरह का मौका दिया जा चुका है

पीठ ने कहा कि धारा-33(5) पीडि़ता को गवाह के रूप में दोबारा बुलाने पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं लगाती, लिहाजा प्रत्येक मामले को उसके अलग तथ्यों और परिस्थितियों के संदर्भ में देखा जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि घटना के समय पीडि़ता की उम्र लगभग 15 वर्ष थी और बचाव पक्ष के वकील को नाबालिग लड़की से दो बार जिरह का मौका दिया जा चुका है। उसे वापस बुलाने की अनुमति देना कानून के मूल उद्देश्य को ही विफल कर देगा।

सन्दर्भ स्रोत : दैनिक जागरण

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