जबलपुर हाईकोर्ट :  वैवाहिक जीवन बचाने

blog-img

जबलपुर हाईकोर्ट :  वैवाहिक जीवन बचाने
के लिए चुप रहना नेक कार्य

जबलपुर। हाईकोर्ट जस्टिस जी एस अहलूवालिया ने अपने अहम आदेश में कहा कि वैवाहिक जीवन बचाने के लिए पत्नी का चुप रहना नेक कार्य है। इसे पति द्वारा तलाक के लिए दायर आवेदन की प्रतिक्रिया नहीं माना जा सकता है। एकलपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि दहेज की मांग करते हुए महिला को मायके में रहने के लिए मजबूर करना मानसिक क्रूरता है। एकलपीठ ने दर्ज एफआईआर को खारिज करने की मांग को अस्वीकार कर दिया। 

दहेज प्रकरण में दर्ज रिपोर्ट को खारिज करने की मांग

शहडोल निवासी नीरज सराफ,पंकज सराफ तथा उसकी पत्नी सीमा सराफ की तरफ से रीवा महिला थाने में उसके खिलाफ दहेज अपराध में दर्ज एफआईआर को खारिज किये जाने की मांग करते हुए हाईकोर्ट की शरण ली थी। याचिका में कहा गया था कि छोटे भाई सत्येंद्र का विवाह रीवा निवासी शिल्पा से मई 2017 में हुआ था। विवाह के साढ़े 4 साल बाद तलाक का नोटिस मिलने पर शिल्पा ने पति समेत ससुराल के लोगों के खिलाफ महिला थाने में दहेज प्रताड़ना की रिपोर्ट 30 नवंबर 2021 को दर्ज करवाई थी।

हाईकोर्ट ने सुनी महिला की फरियाद

एकलपीठ ने पाया कि महिला ने स्पष्ट आरोप लगाये हैं कि विवाह के 4 माह बाद से ही पति व याचिकाकर्ता 20 तोला सोना तथा फॉर्च्युनर गाड़ी के लिए उसे प्रताड़ित करने लगे थे। उसके साथ मारपीट करते थे और दहेज की मांग पूरी नहीं होने पर 30 अक्टूबर को जबरदस्ती ससुराल से निकालकर उसके माता-पिता को सूचित किया था। माता-पिता उसे लेकर मायके आ गये थे।

एफआईआर निरस्त करने की मांग खारिज

एकलपीठ ने अपने आदेश में कहा कि तलाक का नोटिस मिलने के बाद उसे लगा कि अब समझौते की कोई गुंजाइश नहीं है, इसलिए उसने दहेज के लिए प्रताड़ित किये जाने की रिपोर्ट पुलिस में दर्ज करवाई। एकलपीठ ने अपने आदेश में कहा कि वैवाहिक जीवन को बचाने के लिए चुप रहना नेक कार्य है। इसे तलाक का नोटिस मिलने के बाद की प्रतिक्रिया नहीं माना जा सकता है। एकलपीठ ने दर्ज एफआईआर को खारिज की मांग को अस्वीकार कर दिया।

सन्दर्भ स्रोत : ईटीवी

Comments

Leave A reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *



केरल हाईकोर्ट : केवल कानूनी उत्तराधिकारी ही
अदालती फैसले

केरल हाईकोर्ट : केवल कानूनी उत्तराधिकारी ही , नि:संतान बुजुर्ग के भरण-पोषण के लिए उत्तरदायी

हाईकोर्ट ने मेंटीनेंस ट्रिब्युनल और अपीलीय ट्रिब्युनल का फैसला खारिज करते हुए कहा कि अपीलकर्ता महिला बुआ सास (पति की बुआ...

दिल्ली हाईकोर्ट : यातना की सही तारीख न बताने
अदालती फैसले

दिल्ली हाईकोर्ट : यातना की सही तारीख न बताने , का मतलब यह नहीं कि घरेलू हिंसा नहीं हुई

पत्नी 'आर्थिक शोषण' के कारण मुआवज़ा पाने की हकदार है, अदालत ने पत्नी और नाबालिग बच्चे को क्रमशः 4,000 रुपये प्रति माह भर...

बॉम्बे हाईकोर्ट : पति के दोस्त के खिलाफ
अदालती फैसले

बॉम्बे हाईकोर्ट : पति के दोस्त के खिलाफ , नहीं हो सकता 498A का मुकदमा

बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि पति के मित्र पर क्रूरता के लिए IPC की धारा 498 A के तहत कोई मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है। क्यो...

इलाहाबाद हाईकोर्ट -लखनऊ बैंच :  विवाहित
अदालती फैसले

इलाहाबाद हाईकोर्ट -लखनऊ बैंच : विवाहित , महिला से शादी न करना अपराध नहीं

हाईकोर्ट ने कहा- विवाहिता के प्रेमी पर दुराचार का आरोप नहीं, निचली अदालत का फैसला सही

हिमाचल हाईकोर्ट : तीसरे बच्चे की मां
अदालती फैसले

हिमाचल हाईकोर्ट : तीसरे बच्चे की मां , बनने के बाद भी मातृत्व अवकाश का हक

मामले में स्वास्थ्य विभाग में कार्यरत एक स्टाफ नर्स ने हाईकोर्ट में मातृत्व अवकाश को लेकर रिट याचिका दाखिल की थी।