ग्वालियर हाईकोर्ट की एकल पीठ ने एक महत्वपूर्ण आदेश में स्पष्ट किया है कि यदि दो वयस्कों के बीच आपसी सहमति से लंबे समय तक संबंध रहे हों और बाद में विवाह न हो, तो इसे दुष्कर्म नहीं माना जा सकता। न्यायालय ने ऐसे ही एक मामले में दर्ज एफआईआर को रद्द करते हुए कहा कि इस प्रकार की आपराधिक कार्रवाई न्याय प्रक्रिया का दुरुपयोग है।
यह मामला एक शिकायतकर्ता से संबंधित था, जिसने आरोप लगाया था कि आरोपी ने विवाह का झूठा वादा कर शारीरिक संबंध बनाए, नशा देकर दुष्कर्म किया, अश्लील तस्वीरें खींचीं और उन्हें वायरल करने की धमकी दी। हालांकि, रिकॉर्ड से यह स्पष्ट हुआ कि दोनों वयस्क थे और दो से तीन साल तक स्वेच्छा से संबंध में रहे थे। न्यायालय ने टिप्पणी की कि यह मामला झूठे वादे से दुष्कर्म का नहीं, बल्कि आपसी सहमति से बने संबंध का है।
न्यायालय ने महिला के ब्लैकमेलिंग के आरोपों में भी विरोधाभास पाया। अभिलेखों के अनुसार, आरोपी ने स्वयं शिकायतकर्ता को तीन लाख रुपए का चेक दिया था। कोर्ट ने कहा कि ऐसी परिस्थितियों में आपराधिक प्रकरण चलाना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा। इन तथ्यों के आधार पर, न्यायालय ने दुष्कर्म, धमकी, धोखाधड़ी और आईटी एक्ट के तहत दर्ज सभी धाराओं सहित एफआईआर को रद्द कर दिया।



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