राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार की चयन प्रक्रिया जारी है। शिक्षक दिवस पर मिलने वाले इस प्रतिष्ठित पुरस्कार के लिए प्रदेश भर से 120 शिक्षकों ने आवेदन किए थे, जिनमें से 6 शिक्षकों के नाम राज्य सरकार ने भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय को भेजे। वहां से विभिन्न मापदंडों पर छंटनी के बाद छह शिक्षकों के नाम राष्ट्रीय स्तर पर साक्षात्कार के लिए चयनित हुए, जिनमें से 3 महिलाएं हैं। भोपाल आगर मालवा, दमोह, छिंदवाड़ा, शहडोल और खरगोन जिलों के इन शिक्षकों ने अपने नवाचारों से स्कूल में सीखने-लिखने की प्रक्रिया की आसान बना दिया है। 8 अगस्त को पुरस्कार के लिए बने राष्ट्रीय निर्णायक मंडल ने सभी छह शिक्षकों का ऑनलाइन साक्षात्कार लिया। बताया जा रहा है कि इनमें से कम से कम दो शिक्षकों को राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार के लिए चुना जायेगा, जो देश भर से चुने जाने वाले 52 शिक्षकों में शामिल होंगे। चुने हुए शिक्षकों को यह सम्मान राष्ट्रपति प्रदान करती हैं।
इन खूबियों के लिए हुए हैं चयनित
• डॉ. अर्चना शुक्ला
भोपाल के भेल स्थित शासकीय महात्मा गांधी सांदीपनि विद्यालय की जीव विज्ञान की शिक्षिका डॉ. शुक्ला ने स्कूल परिसर में स्थित सभी पेड़ों की क्यूआर कोडिंग कराई है। इसको स्कैन करने पर पेड़ से संबंधित पूरी जानकारी मिलती है। उन्होंने गौरैया के लिए कृत्रिम घोसला बनाने की मुहिम शुरू की है। वे विद्यार्थियों को पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रेरित कर रही है। वे कहती हैं “यह विषय किताबों में पढ़ाने का है ही नहीं, क्यों किताब खोलकर बच्चों को वर्गीकरण पढ़ाया जाए। मैं अक्सर बच्चों को टास्क देती हूं कि अपने स्कूल कैंपस की वायोडायवर्सिटी पता करें। इसमें वे कैंपस में दिखने वाले पक्षियों, पौधों से लेकर कीड़े-मकोड़ों तक सबको खोजते हैं, इन्हें रिकॉर्ड करते हैं और इनके बारे में भी पढ़ते हैं। ऐसे ही एक प्रोजेक्ट्स में बच्चों ने पाया कि गौरैया अब स्कूल में नहीं दिखती। मैंने टास्क दिया, पता करो क्यों? तो पता चला उनके पास घोंसले की जगह नहीं है, टाइल्स पर उनका घोंसला टिकता नहीं और अंडे टूट जाते हैं। बस, फिर क्या था बच्चों ने गौरैया के लिए कार्डबोर्ड से घोंसले बनाए, 200 घरों में बांटे और इनकी मॉनिटरिंग की। अब 187 घोंसलों में गौरैया आ चुकी हैं।“
• शीला पटेल
दमोह की इस शिक्षिका ने छोटे बच्चों के स्वास्थ्य और पोषण के ऊपर कार्य किया है। वे गाना और कविता के माध्यम से बच्चों को पोषण की जानकारी देती हैं। शीला पटेल का पढ़ाने का तरीका औरों से अलग है। उनमें नवाचार करने और बच्चों को समझने की विशेष प्रतिभा है। स्कूल में स्वच्छता, देशभक्ति और आपसी सदभाव के गुण बच्चों में लाना उनका पहला मकसद रहा। इसी तरीके पर काफी समय से पढ़ाई कराते आ रही हैं। शीला बताती हैं “बच्चों के प्रति आत्मीय भाव, उनकी रुचि के अनुसार पढ़ाई कराना, खेल-खेल में बच्चों को शिक्षित करना, नवाचार में ऐसे तरीकों को खोजना जिससे बच्चे स्कूल आने तत्पर रहें।”
• भावना शर्मा
छिंदवाड़ा की यह शिक्षिका नवाचार के लिए पहचानी जाती है। भावना शर्मा ने कोविड काल में मोहल्ला क्लास शुरू की थी। उन्होंने जरूरतमंद बच्चों को शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए एक मोबाइल बैंक बनाकर उन्हें ऑनलाइन शिक्षा उपलब्ध कराकर सराहनीय कार्य किया था। सक्षम परिवारों के बच्चों के अभिभावकों से संपर्क कर उनके अतिरिक्त मोबाइल फोन जरूरतमंद बच्चों को उपलब्ध कराए थे जिससे कोरोना काल में भी वे अध्यापन से जुड़े रहे। भावना की इस पहल का अच्छा प्रतिसाद देखने को मिला वही उन्हें सराहना भी मिली। भावना द्वारा बनाया गया मोबाइल बैंक लाइब्रेरी की तरह ही काम करता है. भावना शर्मा के साथ कुछ सहयोगी के मोबाइल और ऐसे बच्चे जो सक्षम है वे अपनी पढ़ाई के बाद अपने मोबाइल बैंक में जमा करते हैं, ताकि दूसरे बच्चे पढ़ाई कर सकें. मोबाइल जमा होने के बाद जरूरतमंद बच्चे उन मोबाइल से पढ़ाई करते है और वापस कर देते हैं. जिस तरह लाइब्रेरी से पुस्तक पढ़ने के बाद वापस कर दी जाता है वैसे ही मोबाइल बैंक काम करता है।
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