छाया : डॉ. रुचि खरे
भोपाल। देश के शहरी जल वितरण नेटवर्क लंबे समय से पानी के अत्यधिक दबाव और लीकेज की समस्या से जूझ रहे हैं। ज्यादा प्रेशर के कारण पाइपलाइनों से होने वाला रिसाव ना सिर्फ जल की बर्बादी करता है, बल्कि अतिरिक्त पंपिंग की आवश्यकता के चलते ऊर्जा की खपत और कार्बन उत्सर्जन भी बढ़ाता है।
इस जटिल समस्या का समाधान मौलाना आज़ाद राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (मैनिट), भोपाल की प्रो. डॉ. रुचि खरे और उनकी शोधार्थी डॉ. प्रियांशु जैन ने खोज निकाला है। इनकी विकसित तकनीक को ‘इन-लाइन वाटर टर्बाइन’ नाम दिया गया है, जिसे अब 20 वर्षों के लिए भारतीय पेटेंट भी मिल गया है।
दोहरे फायदे वाली तकनीक
शोधकर्ताओं का मानना है कि यदि बड़े शहरों के जल वितरण नेटवर्क में सही स्थानों पर इन-लाइन वाटर टर्बाइन लगाई जाएं, तो दोहरा लाभ मिल सकता है— पहला यह टर्बाइन जल आपूर्ति में अत्यधिक दबाव को नियंत्रित कर लीकेज की मात्रा को कम करेगी। दूसरा टर्बाइन से उत्पन्न बिजली का उपयोग जल आपूर्ति पंपों को चलाने में किया जा सकेगा। इससे न केवल पानी की बचत होगी, बल्कि ऊर्जा दक्षता में सुधार और परिचालन लागत में भी गिरावट आएगी।
भारत जैसे देशों के लिए कारगर समाधान
यह तकनीक खासतौर पर भारत जैसे देशों के लिए बेहद उपयोगी मानी जा रही है, जहां जल वितरण व्यवस्था में लीकेज के कारण बड़े पैमाने पर पानी बर्बाद होता है। मैनिट द्वारा प्रस्तुत यह मॉडल जल प्रबंधन को ज्यादा स्मार्ट, टिकाऊ और लागत-कुशल बनाने में सहायक होगा। फिलहाल इसे देश-विदेश के कुछ शहरी नेटवर्क पर प्रयोगात्मक तौर पर लागू किया गया है और आने वाले समय में बड़े भारतीय शहरों के जल वितरण नेटवर्क पर भी लागू करने की योजना है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से विकसित प्रणाली
डॉ. रुचि और डॉ. प्रियांशु ने इस तकनीक को विकसित करने के लिए गैर-पैरामीट्रिक राव एल्गोरिद्म पर आधारित मल्टी ऑब्जेक्टिव ऑप्टिमाइजेशन मॉडल का उपयोग किया है। यह प्रणाली हाइड्रोलिक सिमुलेशन और प्रेशर एनालिसिस को एकीकृत करती है, जिससे लीकेज नियंत्रण और ऊर्जा पुनर्प्राप्ति के बीच संतुलन स्थापित किया जा सके। इस प्रणाली को लागू करने के लिए सबसे पहले जल नेटवर्क का पूरा डिज़ाइन तैयार किया जाता है, जिसमें पाइपलाइन, जंक्शन, वाल्व, रिज़र्वायर और पंपों की स्थिति शामिल होती है। इसके बाद हाइड्रोलिक मॉडल तैयार कर जल मांग के पैटर्न का विश्लेषण किया जाता है और फिर उपयुक्त स्थानों पर टर्बाइन की क्षमता और स्थिति तय की जाती है।
650 किलोवाट प्रतिदिन तक बिजली उत्पादन संभव
शोध में यह भी सामने आया है कि यदि इस तकनीक को 25 जंक्शन वाले जल वितरण नेटवर्क में लागू किया जाए, तो प्रतिदिन 650 किलोवाट-घंटा बिजली उत्पन्न की जा सकती है। हालांकि यह आंकड़ा उस क्षेत्र की जल आपूर्ति और मांग के अनुसार बदल सकता है।
डॉ. रुचि का कहना है कि जल आपूर्ति नेटवर्क को लेकर दुनियाभर में रिसर्च हो रही है, लेकिन इन-लाइन वाटर टर्बाइन का इस प्रकार उपयोग एक नया और व्यावहारिक विचार है। जब तक शहरी जल वितरण में दबाव और लीकेज की समस्या नहीं सुलझेगी, तब तक जल और ऊर्जा दोनों की बर्बादी होती रहेगी।
सन्दर्भ स्रोत : डॉ. रुचि खरे द्वारा प्रेषित सामग्री
सम्पादन : मीडियाटिक डेस्क
Comments
Leave A reply
Your email address will not be published. Required fields are marked *