भोपाल की नेहा सैय्यद ने सँवारा महरौली में कुली खान का मकबरा  

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भोपाल की नेहा सैय्यद ने सँवारा महरौली में कुली खान का मकबरा  

छाया : स्व संप्रेषित 

भोपाल के आर्टिस्ट मप्र ही नहीं, बल्कि देशभर में अपनी कला की मिसाल खड़ी कर रहे हैं। इसी कड़ी में भोपाल की नेहा सैय्यद का जीर्णोद्धार का काम भी शामिल हो चुका है। इंदौर के राजवाड़ा, अयोध्या में दशरथ महल के बाद अब इन्होंने महरौली में मुहम्मद कुली खान के मकबरे को नया जीवन दिया है। करीब 17वीं शताब्दी की शुरुआत में बना यह मकबरा इसलिए भी खास है, क्योंकि इसमें खूबसूरती के लिए समरकंद आर्ट का इस्तेमाल किया गया है। यह ईरानी आर्ट फॉर्म देश के किसी और मकबरे या इस्लामिक आर्किटेक्चर में नहीं दिखता।

 चुनौती भरा था, 40 फीट ऊंचे गुंबद की पेंटिंग करना

कुली खान के मकबरे का जीर्णोद्धार पूरा करने वाली नेहा बताती हैं- करीब 1000 फीट एरिया में पेंटिंग को हमें री-स्टोर करना था। इस मकबरे के भीतर गुंबद की ऊंचाई तकरीबन 40 फीट थी। गर्मी के मौसम में इतनी ऊंचाई पर काम करना चुनौतीपूर्ण हो गया था। इस काम को पूरा करने में मेरे भाइयों सैय्यद ईशान अली और सैय्यद फरहान अली ने मदद की।

रेयर आर्ट फॉर्म, जिसमें कर्विंग के साथ है पेंटिंग

मुहम्मद कुली खान असल में, अधम खान के भाई थे, जो मुगल सम्राट अकबर की धात्री माहम अंगा के बेटे थे। अकबर ने ही कुली खान की हत्या करवाई थी। मकबरे में ईरान की समरकंद शैली का आर्ट फॉर्म देखने को मिलता है। इसमें कर्विंग के साथ पेंटिंग का काम होता है। महीन कर्विंग की जाती है, जिसमें उभार वाला हिस्सा सफेद रखा जाता है और गहराई वाले बैकग्राउंड में टर्किश या नीला रंग भरा जाता है। पूरी पेंटिंग स्टोर कलर्स के इस्तेमाल से हुई है।

गवर्नर जनरल ने इसे बनाया था मानसून स्टे 'दिलकुश'

कुली खान के मकबरा को आजादी के पहले भारत के गवर्नर जनरल (1835-53) थॉमस थियोफिलस मेटकाफ ने मानसून के दौरान अपना निवास भी बनाया था। बाड़े को छतों, जलकुंडों और मंडपों वाले बगीचे में बदल दिया, इसे उस समय 'दिलकुश' कहा जाता था। यह मकबरा एक ऊंचे प्लेटफॉर्म पर बना है, जो बाहर से तो अष्टकोणीय (ऑक्टागोनल) है, लेकिन अंदर से चौकोर है। जिस बाड़े में मकबरा खड़ा है, उसे भी गवर्नर जनरल ने छतों, जलकुंडों और मंडपों वाले बगीचे में बदल दिया था, जो आज भी नजर आते हैं।

सन्दर्भ स्रोत : दैनिक भास्कर

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