आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट : सिर्फ कागज़ों पर मौजूद विवाह किसी भी पक्ष पर थोपा नहीं जा सकता

blog-img

आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट : सिर्फ कागज़ों पर मौजूद विवाह किसी भी पक्ष पर थोपा नहीं जा सकता

आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में तलाक की डिक्री को चुनौती देने वाली अपील को खारिज करते हुए कहा कि यदि विवाह पूरी तरह टूट चुका है और केवल कागज़ों पर अस्तित्व में है, तो इसे किसी भी पक्ष पर जबरन थोपा नहीं जा सकता। न्यायमूर्ति रवि नाथ तिलहरी और न्यायमूर्ति चल्ला गुणारंजन की खंडपीठ ने यह फैसला सुनाते हुए संका श्रुति सुजाता और उनके पति संका अनिल कुमार के बीच हुए तलाक को बरकरार रखा। अदालत ने मानसिक क्रूरता और दांपत्य जीवन में असहमति को तलाक के लिए पर्याप्त आधार माना।

यह है मामला

यह विवाद संका अनिल कुमार (अपीलकर्ता) और संका श्रुति सुजाता (प्रतिवादी) के बीच वैवाहिक विवाद से उत्पन्न हुआ था। दोनों का विवाह 31 अक्टूबर 2020 को हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार संपन्न हुआ था। बाद में, पत्नी ने 2022 में फैमिली कोर्ट में हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13(1) (ia) के तहत तलाक की मांग करते हुए आरोप लगाया कि यह विवाह कभी भी संपूर्ण नहीं हुआ और उनके पति ने वैवाहिक जीवन में कोई रुचि नहीं दिखाई।

फैमिली कोर्ट ने पत्नी के पक्ष में फैसला सुनाया और तलाक की डिक्री जारी कर दी। इसके बाद, पति ने इस फैसले को आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट में चुनौती दी। उनका तर्क था कि कोई ठोस सबूत नहीं था जिससे यह साबित हो सके कि उन्होंने क्रूरता की थी उन्होंने दांपत्य अधिकारों की पुनर्स्थापना के लिए भी याचिका दायर की थी।

अदालत का निर्णय

हाईकोर्ट ने पाया कि पत्नी ने पुनर्विवाह अपील की समय-सीमा समाप्त होने से पहले ही कर लिया था। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के लीला गुप्ता बनाम लक्ष्मीनारायण (1978) और कृष्णवेणी राय बनाम पंकज राय (2020) जैसे मामलों का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा कि इस तरह के विवाह शून्य (void) नहीं होते, लेकिन वे अपीलीय अदालत के फैसले पर निर्भर रहते हैं। दूसरे मुद्दे पर, न्यायालय ने मानसिक क्रूरता के विभिन्न पहलुओं पर ध्यान दिया। कोर्ट ने कहा कि यदि कोई व्यक्ति बिना किसी ठोस कारण के लंबे समय तक दांपत्य संबंध स्थापित करने से इनकार करता है, तो इसे मानसिक क्रूरता माना जा सकता है।

कोर्ट ने यह भी पाया कि दोनों पक्षों ने एक-दूसरे पर वैवाहिक जीवन में रुचि नहीं लेने का आरोप लगाया था और वे जनवरी 2021 से अलग रह रहे थे, जिससे उनके बीच दांपत्य संबंध पूरी तरह समाप्त हो चुके थे। ऐसे में जब विवाह पूरी तरह से टूट चुका हो और किसी भी पक्ष के लिए अनावश्यक पीड़ा का कारण बन रहा हो, तो उसे जारी रखना कानूनी और नैतिक रूप से उचित नहीं है।

सन्दर्भ स्रोत : लॉ ट्रेंड

Comments

Leave A reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *



केरल हाईकोर्ट : पति द्वारा लगातार निगरानी
अदालती फैसले

केरल हाईकोर्ट : पति द्वारा लगातार निगरानी , और निराधार संदेह तलाक का आधार

अदालत ने कहा कि ऐसे रिश्ते में बने रहना महिला के सम्मान और मानसिक स्वास्थ्य दोनों के लिए घातक हो सकता है।

बॉम्बे हाईकोर्ट : नाना की संपत्ति
अदालती फैसले

बॉम्बे हाईकोर्ट : नाना की संपत्ति , में नातिन का जन्मसिद्ध अधिकार नहीं

हाईकोर्ट ने हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम को किया स्पष्ट-कहा कि 2005 के हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम ने बेटियों को सहदायिक अधिक...

दिल्ली हाईकोर्ट : दोस्ती दुष्कर्म का लाइसेंस नहीं है
अदालती फैसले

दिल्ली हाईकोर्ट : दोस्ती दुष्कर्म का लाइसेंस नहीं है

आरोपी की जमानत याचिका रद करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने की सख्त टिप्पणी

राजस्थान हाईकोर्ट : दूसरी शादी शून्य घोषित
अदालती फैसले

राजस्थान हाईकोर्ट : दूसरी शादी शून्य घोषित , न होने पर भी महिला भरण-पोषण की हकदार

दूसरी शादी-मेंटेनेंस विवाद, हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट का आदेश पलटा  महिला के भरण-पोषण पर मामला वापस भेजा फैमिली कोर्ट में...

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट : लंबे समय तक
अदालती फैसले

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट : लंबे समय तक , पति-पत्नी का अलग रहना मानसिक क्रूरता

हाईकोर्ट ने कहा -47 साल का रिश्ता टूटा, पत्नी को 10 लाख देना होगा, तलाक की अर्जी मंजूर

राजस्थान हाईकोर्ट : बिना तलाक लिए दूसरी शादी
अदालती फैसले

राजस्थान हाईकोर्ट : बिना तलाक लिए दूसरी शादी , करने वाली माँ से छीनी बच्चे की  कस्टडी

कोर्ट ने फैसले में कहा- महिला सहानुभूति की हकदार नहीं, अब दादा के पास रहेगा पोता