'दिव्यांग सुदामा' के जज्बे और जूनून पर फिल्म बना रहे जर्मन फिल्मकार

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'दिव्यांग सुदामा' के जज्बे और जूनून पर फिल्म बना रहे जर्मन फिल्मकार

छाया:  आंचलिक ख़बरें डॉट कॉम

• दृष्टिबाधित सुदामा ने जूडो की ब्लाइंड राष्ट्रीय स्पर्धा में जीता था स्वर्ण

कटनी। जन्म से ही आंखों की रोशनी खो देने वाली कटनी की दिव्यांग बेटी सुदामा का लोहा दुनिया ने माना है। जूडो की राष्ट्रीय ब्लाइंड स्पर्धा में स्वर्ण समेत कई अन्य मुकाबलों में पदक जीते हैं। जर्मनी के फिल्मकार उन पर मोटिवेशनल फिल्म बना रहे हैं। लेकिन यहां सुदामा को कोई मदद नहीं मिल रही है। इससे वह पिछड़ रही हैं।

• अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर एक दिन का कलेक्टर बनाया गया था। लेकिन मदद किसी ने नहीं की।

मूलत: ढीमरखेड़ा के दशरमन गांव की दिव्यांग सुदामा चक्रवर्ती बचपन से ही प्रतिभाशाली हैं। अभावों में परिवार ने आगे बढ़ाया। उसने 2017 में गुरुग्राम हुई 5वें राष्ट्रीय जूडो ब्लाइंड स्पर्धा में स्वर्ण, 2018 व 2021 में कांस्य सहित देश के अलग-अलग शहरों में हुई स्पर्धाओं में कई पदक जीते। पिता छोटेलाल चक्रवर्ती मजदूरी कर परिवार चलाते हैं। इसी से बेटी का खर्च भी निकालते हैं।

• एक साल से लैपटॉप के लिए भटक रही

सुदामा ने बताया कि पढ़ाई के लिए वह दो साल से लैपटॉप का इंतजार कर रही हैं। सामाजिक न्याय विभाग में आवेदन दिया, लेकिन उसे जबलपुर स्थानांतरित कर दिया गया। एक साल बाद भी इस पर ध्यान नहीं दिया जा रहा। सुदामा का कहना है कि दूसरे राज्यों में जिन खिलाडिय़ों को गोल्ड मेडल मिलता है उन्हें 2-3 लाख प्रोत्साहन राशि मिलती है, मप्र में नहीं मिलती। जर्मनी के फिल्मकार सुदामा पर 'आजादी’ नाम से फिल्म बना रहे हैं। इसमें दिव्यांग बेटियों का दर्द और सुदामा के माता-पिता के उत्साह बढ़ाने की कहानी है।

• विशेष पहल करेंगे

जिले की होनहार बेटी की प्रतिभा को पूरा सम्मान मिलेगा। सीएसआर मद से हर संभव मदद की जाएगी। विश्व दिव्यांग दिवस पर बतौर अतिथि बुलाएंगे। इसके अलावा पढ़ाई और जूडो प्रैक्टिस के लिए भी विशेष पहल करेंगे, ताकि बेटी आगे बढ़कर लोगों के लिए मिसाल बने। अवि प्रसाद कलेक्टर

• प्रवेश नहीं मिला, अब आइएएस का सपना

सुदामा बीए फाइनल ईयर की छात्रा हैं। श्याम सुंदर अग्रवाल कॉलेज सिहोरा से पढ़ाई करते हुए कटनी से कम्प्यूटर कोर्स कर रही हैं। सुदामा ने कहा, पहली कक्षा में जब प्रवेश लेने गईं तो शिक्षक ने न देख पाने की बात कहकर लौटा दिया था। अब वह सिर्फ आइएएस बनने का सपना देख रही हैं।

 संदर्भ स्रोत-पत्रिका

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