प्रदेश में छात्राओं के ड्रापआउट की स्थिति

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प्रदेश में छात्राओं के ड्रापआउट की स्थिति

छाया : पत्रिका डॉट कॉम

शिक्षा-विमर्श

बच्चियों के स्कूल तक पहुंचने एवं पढ़ाई पूरी करने के बीच हजारों अगर-मगर होते हैं। कुछ राज्यों की शासन व्यवस्था और समाज दोनों में तालमेल बन जाने के कारण स्थिति संभल जाती है तो कहीं सारे प्रयास धरे के धरे रह जाते हैं। यह जानना कि मध्यप्रदेश उन तीन राज्यों में से एक है जहां पढ़ाई बीच में छोड़ने वाली छात्राओं की संख्या सबसे ज्यादा है अत्यंत निराशाजनक है। हालाँकि यह एएसईआर(एनुअल स्टेटस ऑफ़ एजुकेशन रिपोर्ट)2016 की रिपोर्ट में दर्ज स्थिति है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 11-14 वर्ष की आयु की बच्चियों द्वारा सबसे ज्यादा स्कूल छोड़ने के मामले उत्तर प्रदेश में 9.9 प्रतिशत, राजस्थान में 9.7 प्रतिशत और मध्य प्रदेश में 8.5 प्रतिशत है ।

मध्यप्रदेश में 1.22 लाख स्कूल हैं जिनमें 83962 प्राथमिकशाला, 30449 माध्यमिकशाला एवं 3849 हायर सेकेंडरी स्कूल एवं 4764 हाई स्कूल हैं। इनमे सूदूर ग्रामीण क्षेत्रों की स्थिति अत्यंत भयावह है। रिपोर्ट के अनुसार 2.9 प्रतिशत 7-10 वर्ष की आयु की बच्चियों के नाम तक शालाओं में दर्ज नहीं है। उसी प्रकार पिछले वर्ष (2015) में 15-16 वर्ष आयु की 29 प्रतिशत छात्राओं ने पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी। प्रदेश में ऐसी बच्चियों का प्रतिशत 2014 में 6.2 था जो कभी स्कूल नहीं गईं जो अब बढ़कर 8.5 हो गया है।

चार साल पुरानी रिपोर्ट होने के बावजूद नए और खूबसूरत आंकड़ों की प्रतीक्षा हमें कतई नहीं करनी चाहिए क्योंकि वर्ष 2019 के सितम्बर में मानसून सत्र के दौरान लोकसभा में टीएचआर(टेक होम राशन) के तहत छात्रों की संख्या से सम्बंधित पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में यह स्वीकार किया गया कि विगत 3 वर्षों में अर्थात 2016-17 से 2018-19 के दौरान स्कूल छोड़ने वाली छात्रों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हुई है। दरअसल टेक होम राशन स्कीम उन बच्चियों के लिए है जिन्हें स्कूल छोड़ देने के बाद मिड दे मील का लाभ नहीं मिलता। इस दौरान सम्बंधित विभाग के मंत्री ने यह भी स्वीकार किया कि 2017-18 में इस स्कीम के तहत राशन प्राप्त करने वाली 11 से 14 वर्ष आयु की छात्राओं की संख्या 1,25,452 थी जो वर्ष 2018-19 में बढ़कर 3.05,000 हो गई।

ज्यादातर मामलों में इसके पीछे महत्वपूर्ण कारणों में माता-पिता में स्कूल भेजने के प्रति उदासीनता की भावना के साथ हाई स्कूल का घर से आधिक दूर होना पाया गया। हालांकि निःशुल्क साइकिल योजना का असर कुछ इलाको में देखा गया, परन्तु दुर्गम भौगोलिक स्थिति वाले क्षेत्रों और रूढ़िवादी परिवारों में आज भी बच्चियां मिडिल स्कूल से आगे नहीं बढ़ पा रही हैं।

संदर्भ स्रोत: टाइम्स ऑफ़ इंडिया एवं एएसइआर की रिपोर्ट

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