प्रक्षाली देसाई : शिक्षा के लिए अलख जगाना

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प्रक्षाली देसाई : शिक्षा के लिए अलख जगाना
ही जिनके जीवन का मकसद है  

छाया: स्वसंप्रेषित

 

• सारिका ठाकुर 

एक बच्चा आगे चलकर कैसा इंसान बनेगा, शायद यह पारिवारिक पृष्ठभूमि और बचपन से ही तय हो जाता है। समाज सेविका प्रक्षाली देसाई के संदर्भ में यह बात शत प्रतिशत सही साबित होती है।  

प्रक्षाली के नाना और नानी ‘नमक सत्याग्रह’ के दौरान गांधी जी के साथ थे। उनकी दादी कांग्रेस सेवादल की कार्यकर्ता थीं और पिता श्री महेंद्र भाई देसाई विनोबा भावे के साथ भूदान आन्दोलन में शामिल थे। बाद में वे सरकारी विभाग के कारकून के पद से उन्नति पाते हुए बिक्रीकर अधिकारी के पद से सेवानिवृत्त हुए। प्रक्षाली की माँ श्रीमती सुधा बहन देसाई घर में रहकर ही हींग का व्यवसाय करती थीं। यह उनके लिए जरूरी भी था क्योंकि महेंद्र भाई पूरी तरह भूदान आन्दोलन में व्यस्त रहते थे। इसके अलावा रंगोली कला और गरबा इत्यादि में भी उन्हें महारत हासिल थी।  

प्रक्षाली चार बहनों में सबसे बड़ी हैं। उनका गांधीवादी परिवार सीमित साधन में खुश रहना जानता था। इसके अलावा परिवार में अनुशासन और पढ़ाई को बहुत ज्यादा महत्त्व दिया जाता था। प्रक्षाली अपने बचपन में कुछ इस तरह की घटनाओं की गवाह भी बनीं जिसकी वजह से उनमें समाज के प्रति संवेदनशील विचारधारा का विकास हुआ। उस समय समाज में छुआछूत की भावना बहुत ज्यादा थी। दातुन बेचने वाले या जूता बनाने वालों को अछूत समझा जाता था। यहाँ तक कि उन्हें पैसे भी फेंककर दिए जाते थे। इसके उलट प्रक्षाली की नानी न केवल उनके पास जाती थीं बल्कि सहज स्वाभाविक व्यवहार करते हुए पानी के लिए भी पूछती थीं।  

8 सितंबर 1964 को गुजरात के नवसारी कस्बे में जन्मी प्रक्षाली की स्कूली शिक्षा की शुरुआत कामरेज, तहसील वल्थान में गुजराती माध्यम से हुई। यह स्कूल नवसारी के नजदीक ही स्थित था। पांचवी के बाद उनकी पढ़ाई पारसियों द्वारा संचालित सेठ आरजे हाई स्कूल नवसारी से गुजराती माध्यम से हुई। वहां बुनियादी शिक्षा पद्धति के माध्यम से पढ़ाई होती थी और छात्रों को रोजगार मूलक कौशल सिखाए जाते थे जैसे बिजली का काम आम, लकड़ी का काम, सिलाई आदि। जीव विज्ञान विषय लेकर हायर सेकेंडरी करने के बाद बी.पी. बारिया महाविद्यालय, नवसारी से उन्होंने 1984 में स्नातक की उपाधि स्वर्ण पदक के साथ हासिल की।  

इस दौरान प्रक्षाली नाट्य संस्था उदय आर्ट और जन नाट्य मंच से जुड़ गईं। अभिनय के साथ मंच सज्जा, मेकअप, नाट्य लेखन और निर्देशन में भी खुद को आजमाया। बचपन में कुछ वर्ष भरतनाट्यम भी सीखा लेकिन वह शिक्षा पूरी नहीं हो सकी। ग्रेजुएशन के बाद सूरत में स्थित रायचंद दीपचंद कन्या शाला में वे पढ़ाने लगीं। माता पिता ने भी अनुमति दे दी लेकिन उनकी दिनचर्या व्यस्त हो गयी। वे सुबह छह बजे घर से स्कूल के लिए ट्रेन पकडती फिर शाम को ट्रेन से ही लौटती और घर में ट्यूशन पढ़ातीं। दरअसल उनकी तीन छोटी बहनें थीं और वे माता-पिता का आर्थिक बोझ कम करना चाहती थीं। 1985-86 की बात है, सभी विद्यालय के शिक्षकों के लिए बीएड करना अनिवार्य कर दिया गया। विद्यालय प्रबंधन ने कहा, “आप बीएड कर लें हम आपको दोबारा नियुक्ति दे देंगे। उन दिनों बीएड का पाठ्यक्रम नौ महीनों का हुआ करता था।  

नौकरी छोड़कर उन्होंने सूरत के वी.टी. चौकसी महाविद्यालय में बीएड किया। इस दौरान वे लड़कियों के छात्रावास दयालजी आश्रम में रहती थीं। छात्रावास का निर्माण पढ़ने वाली लड़कियों को ध्यान में रखकर ही करवाया गया था, वहां सभी काम छात्राओं को ही करना होता था जैसे खाना पकाना, साफ सफाई आदि। इसी दौरान प्रक्षाली ने खाना पकाना सीखा। बीएड के बाद नौकरी की तलाश शुरू हुई लेकिन सफलता नहीं मिली। प्रक्षाली अब एमएससी करने का मन बनाने लगीं। उन दिनों गुजरात में लड़कियों की शिक्षा को निःशुल्क कर दिया गया था इसलिए मात्र फॉर्म भरने के ढाई सौर रूपये लगे और साउथ गुजरात यूनिवर्सिटी में उनका नामांकन हो गया। इसके बाद माता-पिता शादी के लिए पूछने लगे। प्रक्षाली जी ने कहा, “शादी से मना नहीं कर रही लेकिन जैसा बहते पानी सा अपना घर रहा है, मुझे वैसा ही परिवार चाहिए। मुझे दस से पांच की नौकरी करने वाला इंसान नहीं चाहिए। ”

इस अनोखी शर्त के दायरे में कोई भी रिश्ता नहीं आ रहा था। माता-पिता भी परेशान हो गए। लेकिन किसी रिश्तेदार ने नीलेश देसाई के बारे में बताया। नीलेश मूल रूप से वलसाड़ के रहने वाले हैं, लेकिन उनका परिवार मध्यप्रदेश के रतलाम में रहता था। नीलेश के पिता जॉर्ज फर्नाडिस के सहयोगी रह चुके थे तो परिवार में भी समाजवादी विचारधारा रच-बस गई थी। नीलेश खुद एमएसडब्ल्यू की पढ़ाई करके अरुणा रॉय और बंकर रॉय के साथ तिलोनिया, अजमेर में SWERC के साथ जुड़े हुए थे।  

यह रिश्ता प्रक्षाली जी को भी पसंद आया और दोनों 25 दिसंबर 1988 को विवाह बंधन में बांध गए। नीलेश जी झाबुआ में अपनी संस्था स्थापित करना चाहते थे और इसके लिए शादी के पहले सी प्रयत्नशील थे। वे तिलोनिया गाँव में बनकर रॉय और अरुणा राय की संस्था एसडबल्यूआरसी संस्था के लिए काम कर रहे थे। शादी के बाद प्रक्षाली और नीलेश जी झाबुआ के पास स्थित गांव रायपुरिया में रहने लगे। वहीं उन्होंने अपनी संस्था 'संपर्क' की स्थापना की जिसका औपचारिक पंजीयन 1992 में हुआ। संस्था का कार्यालय पेटलावद में रखा गया।  

प्रक्षाली और नीलेश दोनों सुशिक्षित थे और उनका मानना था कि उनके पास अगर शिक्षा है तो ग्रामीणों के पास जीवन का अनुभव है वे कतई मूर्ख नहीं है। अगर शिक्षा और अनुभव दोनों में तालमेल बनाकर कुछ किया जाए तो उसके परिणाम भी सार्थक होंगे। इस लिहाज से सबसे पहले महिलाओं के स्वास्थ्य पर उन्होंने अपना ध्यान केंद्रित किया। इसके अंतर्गत मातृत्व से पूर्व और पश्चात की देखभाल, मासिक धर्म को लेकर किशोरियों में जागरूकता जैसे विषय पर काम किया। इसके बाद उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में काम करना शुरू किया। इसके लिए दस रात्रि शालाओं की स्थापना की गयी क्योंकि दिन में ज्यादातर ग्रामीण मजदूरी या खेतों में व्यस्त रहते थे। इन शालाओं में पच्चीस वर्ष की आयु से लेकर पांच वर्ष की आयु तक के छात्र हुआ करते थे। ग्रामीण भी इस पहल से खुश थे और संस्था को अपना सहयोग दे रहे थे।  

सर्वशिक्षा अभियान के तहत जब सभी बच्चों को अनिवार्य शिक्षा देने की बात आई तो प्रक्षाली और नीलेश जी ने अपनी संस्था के माध्यम से पढ़ाई छोड़ चुके बच्चों पर ध्यान केन्द्रित किया और एक ब्रिज कोर्स की परि कल्पना की। यह छः सात महीने का पाठ्यक्रम है जिसमें तैयारी करने के बाद छात्र छठवीं में दाखिला लेने के काबिल हो जाते थे। इस पाठ्यक्रम के लिए सरकार और अन्य गैर सरकारी संगठनों से भी मदद ली गई। बच्चों की शिक्षा के लिए काम करने वाली संस्था एकलव्य के विशेषज्ञों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। स्व. विनोद रैना, रश्मि पालीवाल, अरविन्द गुप्ता और राकेश दीवान जैसे जानकारों की मदद से पाठ्यक्रम निर्मित हुआ। प्रक्षाली बताती हैं, कि लगभग पचास प्रतिशत पढ़ाई छोड़ चुके बच्चों ने दुबारा अपनी पढ़ाई शुरू कर दी।  

प्रक्षाली और नीलेश का ध्येय मात्र बच्चों को स्कूल तक पहुँचाना ही नहीं था बल्कि वे यह भी सुनिश्चित करना चाहते थे कि स्कूल में उन्होंने स्तरीय शिक्षा मिले। इसके लिए उन्होंने सरकारी स्कूल के शिक्षकों के साथ मिल कर प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाया, साथ ही गणित और भाषा शिक्षण पर नई शैली विकसित करने पर जोर दिया। प्रक्षाली इस सन्दर्भ में महात्मा गांधी को उद्धृत करते हुए कहती हैं - गांधीजी कहते थे कि मातृभाषा माँ का दूध है, इसलिए शुरुआती और बुनियादी शिक्षा तो मातृभाषा में ही होनी चाहिए। इसके साथ ही गणित जटिल सूत्रों के माध्यम से समझाने की बजाय रोज़मर्रा के उदाहरणों से जोड़कर सिखाना चाहिए ताकि समझ विकसित होने में दिक्कत न आए। उल्लेखनीय है कि झाबुआ के क्षेत्र में रहने वाले आदिवासी हिन्दी नहीं जानते हैं। ऐसे में यह प्रयोग उस क्षेत्र में अत्यधिक सफल रहा।  

इसके बाद वर्ष 2001 में मैपकास्ट के सहयोग से ग्यारहवीं और बारहवीं के बच्चों के लिए प्रक्षाली और नीलेश ने मिलकर अपनी संस्था संपर्क के परिसर में विज्ञान क्लब की स्थापना की। इस केंद्र में दो-दो दिन के कार्यशाला में बच्चे आकर रहते हैं और उन्हें जटिल वैज्ञानिक सूत्र दैनिक जीवन के उदाहरणों से समझाया जाता है। वे यहाँ उपलब्ध उपकरणों की मदद से खुद प्रयोग करते हैं और मॉडल तैयार करते हैं। इस कार्य में अहमदाबाद के डॉ. विक्रम साराभाई विज्ञान केंद्र से बौद्धिक सहयोग प्राप्त हुआ।  

वर्ष 2004 में संपर्क संस्था के परिसर में ही ‘संपर्क बुनियादी शाला’ की स्थापना हुई, जिसमें छात्रावास, पुस्तकालय जैसे सभी साधन मौजूद हैं। शाला के लिए भवन निर्माण में जापानी दूतावास की मदद मिली।  आज इस शाला में लगभग तीन सौ बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। ग्यारहवीं और बारहवीं के छात्रों को अलग-अलग कौशल से जोड़ने के लिए जैविक खेती सिखाने के साथ मोमबत्ती बनाने, जड़ी-बूटी से दवाई बनाने, सिलाई और ब्यूटी पार्लर और हेयर कटिंग जैसे कोर्स भी करवाए जाते हैं।  

हाल ही में प्रक्षाली जी की शिवना प्रकाशन से प्रकाशित गुजराती से हिंदी में अनूदित पुस्तक ‘गांधीकथा’ का दिल्ली पुस्तक मेला-2023 में लोकार्पण हुआ.  

शादी के बाद प्रक्षाली को नीलेश का साथ मिला और दोनों एक ही मकसद को लेकर आगे बढ़े। इसलिए प्रक्षाली की चर्चा नीलेश के बिना और नीलेश की चर्चा प्रक्षाली जी की चर्चा के बिना संभव ही नहीं। दोनों की एक बेटी है जवनिका, जो अमरीका में रहती हैं और सूचना टेक्नोलॉजी (आईटी ) विशेषज्ञ हैं।  

पुरस्कार और सम्मान

• लायंस क्लब ऑफ़ पेटलावद ग्रेटर द्वारा तेजस्विनी नारी नेतृत्व सम्मान-2022

• डॉ. जयकिरण शोध/शिक्षण संस्थान, बडनगर द्वारा स्व. प्रभाकर मोरे स्मृति सम्मान -2013

• यंगमेंस गांधियन एसोसिएशन, राजकोट द्वारा चंपा बहन गोंधिया अवार्ड-2010

सन्दर्भ स्रोत: सारिका ठाकुर से प्रक्षाली देसाई की बातचीत पर आधारित 

© मीडियाटिक

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