भोपाल मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि पत्नी के व्हाट्सएप चैट को तलाक के मामले में सबूत के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है, भले ही उसे बिना सहमति के हासिल किया गया हो। अदालत ने कहा कि निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार, निजता के अधिकार से ऊपर है। जस्टिस आशीष श्रोती की बेंच ने यह फैसला सुनाया। अदालत ने यह भी कहा कि पारिवारिक न्यायालयों के पास किसी भी सबूत को स्वीकार करने की शक्ति है, भले ही वह भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत स्वीकार्य न हो।
अदालत ने यह फैसला एक महिला की याचिका पर दिया, जिसने पारिवारिक न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें उसके पति को निजी चैट को सबूत के तौर पर पेश करने की अनुमति दी गई थी। पति ने पत्नी पर क्रूरता और व्यभिचार का आरोप लगाते हुए तलाक की अर्जी दाखिल की थी। उसने व्हाट्सएप चैट को सबूत के तौर पर पेश किया था, जिसे उसने कथित तौर पर पत्नी के मोबाइल डिवाइस पर गुप्त रूप से इंस्टॉल किए गए एक ऐप के माध्यम से प्राप्त किया था। पत्नी ने इन चैट को अवैध रूप से प्राप्त करने का विरोध किया था, लेकिन अदालत ने उसके तर्कों को खारिज कर दिया।
दंपती की सात साल की बेटी
इस दंपती की शादी 1 दिसंबर 2016 को हुई थी और उनकी एक सात साल की बेटी है। पति ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 के तहत तलाक के लिए अर्जी दी। उसने आरोप लगाया कि उसकी पत्नी क्रूर है और उसका किसी और के साथ संबंध है।
पत्नी पर पति के आरोप
अपने आरोपों को साबित करने के लिए, पति ने व्हाट्सएप चैट का इस्तेमाल किया। उसने कहा कि ये चैट उसे उसकी पत्नी के फोन पर एक गुप्त ऐप के जरिए मिले थे। इन मैसेज में कथित तौर पर पत्नी के किसी और के साथ संबंध होने की बात सामने आई थी। पत्नी ने भी अपने वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए एक अलग अर्जी दाखिल की।
पत्नी ने जताई आपत्ति
जब पति ने व्हाट्सएप चैट को सबूत के तौर पर पेश करने की कोशिश की, तो पत्नी ने इसका विरोध किया। उसने कहा कि ये चैट गैरकानूनी तरीके से हासिल किए गए हैं और यह उसकी निजता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। पत्नी के वकील ने तर्क दिया कि पति ने चैट हासिल करने के लिए जो तरीका अपनाया, वह सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम का उल्लंघन करता है।
हाईकोर्ट का कहना
उच्च न्यायालय ने पत्नी के तर्कों को नहीं माना। अदालत ने कहा कि पारिवारिक न्यायालय अधिनियम की धारा 14 के तहत, न्यायालयों को किसी भी सबूत को स्वीकार करने की स्वतंत्रता है। भले ही वह भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत स्वीकार्य न हो, अगर इससे विवादों को प्रभावी ढंग से हल करने में मदद मिलती है तो। जस्टिस श्रोती ने कहा कि पारिवारिक न्यायालय एक विशेष कानूनी ढांचे के तहत काम करते हैं। इसका मकसद संवेदनशील वैवाहिक मामलों में सबूतों के नियमों को सरल बनाना है। अदालत के अनुसार, यह व्यापक शक्ति इसलिए दी गई है क्योंकि परिवार से जुड़े कई विवादों में निजी और अंतरंग विवरण शामिल होते हैं। इन्हें अक्सर पारंपरिक कानूनी तरीकों से नहीं पकड़ा जा सकता है।
सन्दर्भ स्रोत : विभिन्न वेबसाइट
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